दिहाड़ी मज़दूर ने बीमार पत्नी के लिए बनाया ख़ास ‘टॉयलेट बेड’, जीता नेशनल अवॉर्ड!

नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन में इस टॉयलेट बैड आविष्कार को दूसरा स्थान मिला। उन्हें एक ट्रोफी, एक सर्टिफिकेट, 2 लाख रूपये इनाम राशि और 35, 000 रूपये प्रोटोटाइप बनाने में उनकी जो लागत लगी थी, उसके लिए मिले। 

हते हैं कि ज़रूरत आविष्कार की जननी है और यह कहावत एस. सरवनामुथु के जीवन पर बिल्कुल सटीक बैठती है। साल 2014 में उनकी पत्नी कृष्णाम्माल एक सर्जरी के बाद बिस्तर से लग गयीं थीं। रोज़मर्रा के छोटे से छोटे काम के लिए भी उन्हें दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता था।

वे दोनों ही खुद को असहाय महसूस करने लगे। ऐसे में, 40 वर्षीय सरवनामुथु ने एक ख़ास तरह का ‘टॉयलेट बेड’ बनाया, जिसमें बेड के साथ ही टॉयलेट पॉट भी लगा हुआ है और मरीज़ कभी भी बिना किसी और की सहायता के ज़रूरत पड़ने पर इसका इस्तेमाल कर सकता है।

पत्नी के लिए टॉयलेट बैड बनाकर जीता नेशनल इनोवेशन अवॉर्ड

तमिलनाडु में थलवैपुरम के निवासी सरवनामुथु ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया, “मेरी पत्नी के लिए दूसरों पर निर्भर रहना बहुत मुश्किल था, क्योंकि उसने अपनी पूरी ज़िंदगी में ऐसा नहीं किया था। इसलिए लोगों से मदद मांगने की बजाय वह खुद पर कंट्रोल (इमरजेंसी स्थिति में) करती। इससे उसकी तबीयत बिगड़ने लगी और तब मैंने ऐसा बेड बनाने का निश्चय किया जिसमें टॉयलेट का प्रावधान हो।”

सरवनामुथु वेल्डर का काम करते हैं, तो उनके लिए यह बेड बनाना कोई मुश्किल नहीं था। उनका आविष्कार काम कर गया और यह उनकी पत्नी के लिए सबसे बड़ी राहत थी, क्योंकि अब उन्हें किसी से भी मदद नहीं मांगनी पड़ती थी।

कैसे काम करता है यह रिमोट-कंट्रोल बेड?

बेड के साथ 12 वाल्ट की बैटरी फिट की गयी है, जिससे दो गियर की मोटर चल सके। इस मोटर से टॉयलेट पॉट को साइड में और ऊपर-नीचे किया जा सकता है। इस बेड में एक फ्लश टैंक, सफाई का सामान रखने के लिए छोटा सा बक्सा और पाइप के साथ जुड़ा हुआ एक सेप्टिक टैंक भी है। इसके आलावा, उन्होंने इसमें रिमोट से चलने वाला एक फ्लश सिस्टम भी लगाया है, जिसकी मदद से टॉयलेट इस्तेमाल करने के बाद फ्लश किया जा सकता है। रिमोट में सामान के बक्से को खोलने के लिए और टॉयलेट पॉट के शटर को खोलने और बंद करने के लिए भी बटन दिए गए हैं!

टॉयलेट बेड

दिहाड़ी मजदुर से नेशनल अवार्ड विजेता

सरवनामुथु के इस आविष्कार के बारे में एक स्थानीय अख़बार में ख़बर छपी और इसके बाद साल 2015 में उन्हें चेन्नई से उनका पहला ऑर्डर मिला। चेन्नई के किसी व्यक्ति को अपनी माँ के लिए यह बेड बनवाना था, जो पिछले छह सालों से बिस्तर पर थीं। फिर जैसे-जैसे लोगों को पता चला, वैसे-वैसे सरवनामुथु के इस अनोखे आविष्कार की मांग बढ़ती चली गयी।

पर सरवनामुथु एक दिहाड़ी मज़दूर थे और हुनर होने के बावजूद उनमें आत्म-विश्वास की कमी थी। इसके अलावा उनके पास इतने आर्थिक संसाधन भी नहीं थे , जिससे वे और बेड बनाएं।

“जब मैंने लोगों को बताया कि चेन्नई से मुझे इस तरह का ऑर्डर मिला है, तो किसीने मुझे गंभीरता से नहीं लिया। कई लोगों ने मुझे दुत्कारा पर मेरे परिवारवालों ने मेरी हिम्मत बढ़ाई,” सरवनामुथु ने कहा।

इसी हिम्मत के साथ उन्होंने चेन्नई के ग्राहक से एडवांस माँगा और उन्हें बेड बनाकर पहुँचाया।

उन्हें पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम से भी उनके निधन से कुछ माह पहले बात करने का मौका मिला था। कलाम ने ही उन्हें नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन में अपना आविष्कार भेजने के लिए प्रेरित किया था।

नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन में इस आविष्कार को दूसरा स्थान मिला और सरवनामुथु को एक ट्रोफी, एक सर्टिफिकेट, 2 लाख रूपये इनाम राशि और प्रोटोटाइप बनाने में लगाए गए 35, 000 भी मिले।

पूरे परिवार के साथ

क्या इस सम्मान और अवॉर्ड के बाद उनके जीवन में कोई परिवर्तन आया?

“शायद नहीं,” सरवना ने कहा।

बस इतना ही अंतर आया है कि उनके गाँव के लोग अब उन्हें गंभीरता से लेने लगे हैं। जो पहले उनकी आलोचना करते थे, वो भी अब उन्हें सम्मान देते हैं।

जब से उन्हें अवॉर्ड मिला है, उन्हें सारे देश से अलग-अलग ऑर्डर मिलने शुरू हो गये हैं, जिसमें से 350 तो सिर्फ़ चेन्नई से ही हैं। लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से वह आगे कोई और ऑर्डर नहीं ले रहे हैं।

“मैं अभी भी एक दिहाड़ी मज़दूर हूँ, और इतने सारे पैसे एक बार में लगा पाना मुश्किल है। आर्थिक मदद मिले, तो बहुत फ़र्क पड़ेगा,” उन्होंने आगे बताया।

अपने भविष्य के लक्ष्य पर बात करते हुए वे कहते हैं कि उनके सिर्फ़ दो लक्ष्य हैं – एक तो एक ऐसा कार बनाना, जिसे चलाने के लिए पेट्रोल, डीजल या गैस जैसे किसी भी इंधन की ज़रूरत न हो और दूसरा – अपने बच्चों के लिए आदर्श बनना।

उन्होंने पहले से ही अपनी कार पर काम शुरू कर दिया है और उम्मीद है कि वो जल्द ही अपना प्रोजेक्ट पूरा कर लेंगें।

“जिन भी लोगों को लगता है कि उनका आईडिया या उनकी खोज व्यर्थ है, मेरा सुझाव है कि कभी हार न मानें। मैं खुद भी अपनी पत्नी के लिए सही प्रोटोटाइप बनाने से पहले कई बार असफल रहा। अगर मैंने दूसरों से प्रभावित होकर कोशिश करना छोड़ दिया होता, तो मेरी पत्नी को हमेशा ही दूसरों के सामने शर्मिंदगी होती। कड़ी मेहनत का कोई दूसरा विकल्प नहीं है,” सरवनामुथु ने कहा।

अंत में वे बस इतना ही कहते हैं कि जो भी अपने जीवन में कुछ नया बनाने की सोच रहे हैं, उन्हें मेरी तरफ से पहले से ही बधाई!

सरवनामुथु के आविष्कार के बारे में ज़्यादा जानने के लिए या उनकी सहायता करने के लिए आप उनसे 9585475039 पर संपर्क कर सकते हैं!

मूल लेख: गोपी करेलिया

संपादन – मानबी कटोच 


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