कार को मोबाइल क्लिनिक बना, अब तक 36,000+ ग्रामीणों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने वाला डॉक्टर!

जहाँ फिलीपिंस जैसा देश अपने नागरिकों को स्वास्थ्य का अधिकार देता है और अमेरिका अपनी जीडीपी का लगभग 18% स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च करता है, तो वहीं भारत की गिनती उन देशों में हैं जो हेल्थकेयर के क्षेत्र में अपनी जीडीपी का 3% से भी कम भाग खर्च करते हैं।

“हमारे संविधान में देश के सभी नागरिकों को जीवन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, समानता का अधिकार, सुचना का अधिकार जैसे मूल अधिकार और हक़ दिए गये हैं। लेकिन यहाँ स्वास्थ्य का अधिकार नहीं दिया जाता है। मेरा उद्देश्य गरीब और ज़रूरतमंद लोगों को सही स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के साथ-साथ, देश में स्वास्थ्य के अधिकार पर भी एक जन-अभियान शुरू करना है,” – डॉ. सुनील कुमार हेब्बी

उत्तर कर्नाटक के बीजापुर में एक किसान परिवार में जन्में सुनील कुमार हेब्बी ने बचपन से ही अपने गाँव में लोगों को मुलभुत सुविधाओं के लिए संघर्ष करते देखा। उन्होंने अपनी मेडिकल की पढ़ाई भी लोन लेकर की। जब वे डॉक्टर बने और बंगलुरु के एक अच्छे निजी अस्पताल में उन्हें नौकरी मिली, तो उनका और उनके परिवार की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। क्योंकि सबको लगा कि घर का बेटा अब अच्छे से कमाएगा और उन्हें कोई परेशानी नहीं झेलनी होगी।

डॉ. सुनील अपनी नौकरी अच्छे से कर रहे थे। दिन-रात की मेहनत ने उन्हें एक अच्छी पहचान दी और साथ ही, उनकी आर्थिक हालत भी सुधरने लगी। एक दिन सुनील अस्पताल से ड्यूटी करके वापिस लौट रहे थे कि होसुर रोड पर उन्होंने दुर्घटना में घायल एक बच्चे को सड़क पर बेहोश देखा। कोई उसकी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था। ऐसे में, वे खुद को रोक नहीं पाए और तुरंत जाकर उस बच्चे को प्राथमिक उपचार दिया और उसे हॉस्पिटल पहुँचाया।

डॉ. सुनील कुमार हेब्बी

इस घटना के कुछ दिन बाद उन्हें बच्चे के माता-पिता ने फ़ोन किया और अपने घर खाने पर आने के लिए कहा। “मैंने मना भी किया कि मैंने तो सिर्फ़ अपना फ़र्ज़ निभाया। लेकिन उस बच्चे की माँ ने बहुत आदर और सम्मान के साथ मुझे बुलाया। उनकी आँखों से आंसू बह रहे थे और उन्होंने कहा कि बेटा अगर तुम न होते तो शायद ये मर जाता। उस दिन मुझे अहसास हुआ कि न जाने कितने लोग हमारे देश में सही समय पर उपचार न मिलने के कारण मर जाते हैं। ख़ासकर कि गरीब और ज़रूरतमंद लोग जो कि अस्पतालों के महंगे खर्चे नहीं उठा सकते,” द बेटर इंडिया से बात करते हुए डॉ. सुनील ने बताया।

इस घटना का डॉ. सुनील पर काफ़ी गहरा असर हुआ और उन्होंने अपने स्तर पर ही कुछ करने की ठानी। वे अपनी नौकरी नहीं छोड़ सकते थे, क्योंकि उन्हें घर को भी संभालना था और गरीबों की मदद करने के लिए भी उन्हें फंड्स की ज़रूरत होती ही। इसलिए उन्होंने अपने छुट्टी वाले दिनों को ज़रूरतमंद और ग्रामीणों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। जैसे ही उन्हें हफ्ते में उनकी छुट्टी मिलती, वे बंगलुरु के आस-पास के ग्रामीण इलाकों में जाकर मेडिकल कैम्पस करते।

मोबाइल डॉक्टर क्लिनिक

शुरू के दो-तीन महीनों में और भी कुछ दोस्तों ने उनका साथ दिया। लेकिन फिर सभी अपने कामों में व्यस्त हो जाते। “मुझे समझ में आ गया था कि इस तरह के काम के लिए आपको अकेले ही आगे बढ़ना होता है और इसलिए मैंने अपनी कार को ही मोबाइल क्लिनिक के रूप में तब्दील कर लिया। उसमें मैं सभी ज़रूरी मेडिकल टूल, फर्स्ट ऐड किट, और दवाइयां आदि रखता और फिर छुट्टी वाले दिन अलग-अलग जगहों पर मेडिकल सर्विस करने के लिए निकल पड़ता,” उन्होंने आगे कहा।

साल 2007 में उन्होंने ‘मातृ श्री फाउंडेशन’ की शुरुआत की। इस फाउंडेशन का उद्देश्य देश के कोने-कोने तक अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएँ पहुँचाना है। उन्होंने स्कूल, कॉलेज, स्लम, गाँव आदि से संपर्क किया और इन जगहों पर मेडिकल कैंप करना शुरू किया।

साल 2014 में डॉ. सुनील ने निजी अस्पताल से अपनी नौकरी छोड़कर स्वयं को पूरी तरह से समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने बंगलुरु के सर्जापुर में ‘आयुष्मान भव क्लिनिक’ के नाम से एक छोटा-सा स्वास्थ्य केंद्र शुरू किया।

यहाँ शाम के 6 बजे से लेकर रात के 10 बजे तक वे लोगों का इलाज करते हैं। “इस क्लिनिक पर आने वाले ज़्यादातर लोग गरीब समुदायों से होते हैं। मेरी कोशिश यही रहती है कि कम से कम पैसे में, मैं उन्हें अच्छी सुविधाएँ दूँ। यहाँ मेरी कंसल्टेशन फीस 30 रूपये है और बाकी दवाई आदि के साथ ज़्यादा से ज़्यादा 100-150 रूपये मरीजों को देने होते हैं।”

और जो लोग इतने पैसे देने में भी समर्थ नहीं हैं उन्हें डॉ. सुनील बिना किसी पैसे के ट्रीटमेंट देते हैं। पिछले इतने सालों में और भी बहुत से समाज सेवी लोग उनके साथ जुड़े हैं। अब तक वे बंगलुरु और आस-पास के क्षेत्रों में स्थित सरकारी स्कूल, झुग्गी-झोपड़ी, अनाथ आश्रम, वृद्धाश्रम आदि में लगभग 720 मेडिकल कैंप लगवा चुके हैं।

साथ ही, उन्होंने 6 सरकारी स्कूलों और 2 वृद्धाश्रमों को गोद लिया है। यहाँ वे पूरे साल नियमित रूप से स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करते हैं। उनके साथ लगभग 150 मेडिकल स्वयंसेवक जुड़े हुए हैं और लगभग 1200 नॉन-मेडिकल स्वयंसेवक भी काम कर रहे हैं। जो कैम्पस लगवाने, जागरूकता फैलाने और लोगों को डॉ. सुनील से जोड़ने का काम करते हैं। उनकी मदद अब तक 36, 000 से भी ज़्यादा लोगों तक पहुंची है।

“भारत में हर दिन 400 से भी ज़्यादा दुर्घटनाएं होती हैं लेकिन तुरंत मेडिकल केयर न मिल पाने के कारण, इनमें से बहुत ही कम लोगों को डॉक्टर बचा पाते हैं। यदि दुर्घटना के ‘गोल्डन ऑवर’ मतलब कि दुर्घटना के 30-40 मिनट में ही मरीज़ को फर्स्ट ऐड मिल जाये, तो उनके बचने की सम्भावना बढ़ जाती है। अब सब तो डॉक्टर या नर्स नही हो सकते। पर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को फर्स्ट ऐड की बेसिक ट्रेनिंग ज़रूर दी जानी चाहिए। इसलिए हम स्कूल-कॉलेज में जाकर बच्चों से मिलते हैं,” डॉ. सुनील ने बताया।

‘राईट टू हेल्थ यात्रा’

वैसे तो अच्छी स्वास्थ्य सेवाएँ हर एक देश में मूलभूत मानवाधिकार है, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। बाकी मूल अधिकारों जैसे कि शिक्षा का अधिकार, समानता का अधिकार, सूचना का अधिकार आदि की तरह हमारा संविधान स्वास्थ्य का अधिकार नहीं देता है। और डॉ. सुनील का संघर्ष इसी दिशा में है कि हमारे देश में सभी लोगों को समान रूप से अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं का अधिकार मिले।

डॉ. सुनील कहते हैं कि आज भी भारत में ज़्यादातर लोग ज़रूरी स्वास्थ्य सुविधाओं से महरूम हैं। जहाँ फिलीपिंस जैसा देश अपने नागरिकों को स्वास्थ्य का अधिकार देता है और अमेरिका अपनी जीडीपी का लगभग 18% स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च करता है, वहीं भारत की गिनती उन देशों में हैं जो हेल्थकेयर के क्षेत्र में अपनी जीडीपी का 3% से भी कम भाग खर्च करते हैं।

”राईट टू हेल्थ’ की मुहीम

और सरकार द्वारा जो स्वास्थ्य योजनायें आज चलाई जा रही हैं, उनके बारे में ग्रामीण भारत तो क्या, शहरी क्षेत्रों में भी पूर्ण जागरूकता नहीं है। हिंदुस्तान टाइम्स की साल 2016 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, हमारे देश में 1, 674 मरीज़ों के लिए सिर्फ़ 1 डॉक्टर उपलब्ध है।

इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए डॉ. सुनील पूरे देश में स्वास्थ्य को लेकर एक चर्चा शुरू करना चाहते हैं। और इसीलिए वे अपने मोबाइल डॉक्टर क्लिनिक में पूरे देश में ‘राईट टू हेल्थ यात्रा’ कर रहे हैं। इस यात्रा के सबसे पहले चरण में वे बंगलुरु से कन्याकुमारी जायेंगें और फिर कन्याकुमारी से कश्मीर।

300 दिन तक चलने वाली इस यात्रा में वे लगभग 300 जगहों पर जायेंगें। यहाँ पर स्थानीय सरकारी स्कूल, एनजीओ, वृद्धाश्रम, कॉलेज, यूनिवर्सिटी आदि में जाकर मेडिकल कैम्पस करने के साथ ही जागरूकता अभियान भी करेंगें। उन्होंने आधार कार्ड की ही तरह सभी नागरिकों के लिए एक ज़रूरी हेल्थ कार्ड बनाने का भी प्रस्ताव रखा है।

“इस हेल्थ कार्ड पर व्यक्ति का नाम, उम्र, ब्लड ग्रुप, ब्लड प्रेशर, किसी दवाई से एलर्जी है या नहीं जैसी जानकारी लिखी जाएगी। ताकि कोई व्यक्ति दुर्घटनाग्रस्त भी हो जाये और उसका कोई जानकर उपस्थित न हो, तब भी अस्पताल में उसका इलाज शुरू हो सके। हम फ़िलहाल जिन भी लोगों से मिलेंगें उन्हें यह कार्ड देने की कोशिश करेंगें। पर प्रयास यही है कि इस तरह की चीज़ों को स्वास्थ्य पॉलिसी में जोड़ा जाये,” डॉ. सुनील ने कहा।

इस यात्रा के बाद डॉ. सुनील अपनी एक रिपोर्ट स्वास्थ्य मंत्रालय, दिल्ली को प्रस्तुत करेंगें। ताकि उनका शोधकार्य प्रशासन के लिए इस मुद्दे पर काम करने में सहायक हो।

डॉ. सुनील के इस अभियान से आज देश भर से अच्छे-अच्छे डॉक्टर जुड़ रहे हैं और इन सभी कोई लगता है कि नागरिकों के लिए स्वास्थ्य का अधिकार होना चाहिए। क्योंकि हेल्थकेयर कोई बिज़नेस नहीं बल्कि सेवा होनी चाहिए।

डॉ. सुनील कुमार हेब्बी से जुड़ने के लिए और उनकी ‘राईट को हेल्थ यात्रा’ में अपना किसी भी तरह का सहयोग करने के लिए 9741958428 पर व्हाट्सअप मेसेज करें!

संपादन – मानबी कटोच 


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