नागालैंड के कोहिमा जिले के खुजमा गाँव से होकर एशियन हाइवे 2 गुजरती है। यहाँ लगे स्ट्रीट लैंप्स, लाल, हरे, काले, सफेद, पीले, नारंगी और कई अन्य रंगों से रंगे गए हैं। जो स्थानीय अंगामी जनजाति की समृद्धता को दर्शाती है।
“यहाँ नागालैंड के कुल 16 समुदाय रहते हैं और हर किसी की अपनी अलग भाषा है। इस कारण हम एक-दूसरे की बातों को नहीं समझ पाते हैं,” खुजमा गाँव में रहनेवाले केसेतो ठाकरो हँसते हुए कहते हैं। ऐसे में, खुजमा गाँव के लिए ये स्ट्रीट लैंप्स एकजुटता का प्रतीक हैं।
केसेतो NIT नागालैंड के मैकेनिकल डिपार्टमेंट में एक तकनीशियन के रूप में काम करते हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से उन्हें अपने गाँव लौटना पड़ा।
इसके बाद, खुजमा स्टूडेंट्स केयर यूनियन (KSCU) के सदस्य होने के नाते, कसेतो ने छात्रों को ई-लर्निंग की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रयास करना शुरू किया। इसी क्रम में एक क्लास के दौरान, उन्हें एक अनोखा विचार आया।
“इस दौरान मुझे एक ‘हाइड्रोजर’, यानी मिनी-हाइड्रो जनरेटर स्थापित करने का विचार आया। मैंने अपने इस विचार को यूनियन से साझा किया और सभी इसके लिए मान गए। फिर, हमने ‘प्रोजेक्ट ब्राइटर खुजमा’ की शुरुआत की,” उन्होंने बताया।
वह आगे बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट के लिए सभी जरूरी संसाधनों को जुटाकर, महज दो महीने में इसे अंजाम दिया गया।
क्या था उद्देश्य
31 वर्षीय केसेतो बताते हैं, “हमारे इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य सिर्फ बिजली उत्पादन कर, उससे लाभ प्राप्त करना नहीं है। बल्कि, छात्रों और स्थानीय लोगों को ग्रीन एनर्जी के बारे में जागरूक करना भी है।”
वह बताते हैं, “हम जल स्त्रोत को बनाए रखने के लिए जंगलों की रक्षा सुनिश्चित कर रहे हैं। इस दौरान छात्रों ने हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट के बुनियादी सिद्धांतों को भी सीखा है।”
हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्लांट में करीब 6 वर्षों तक एक तकनीशियन के रूप में काम करने के बाद, केसेतो ने अपने जानकारों के जरिए, जून में एक मिनी-हाइड्रो जेनरेटर की व्यवस्था की। इसके बाद, मशीन की मरम्मत की गई और एक ही दिन में इसे असेंबल किया गया।
“शुरुआती दिनों में, हमारे पास कोई फंड नहीं था। इसलिए, हमने दुर्घटना-ग्रस्त क्षेत्र में सिर्फ एक स्ट्रीट लैम्प में बिजली देने का विचार किया,” वह कहते हैं।
केसेतो की देख-रेख में, छात्रों ने मेवोबोक (Mewoboke) नदी पर बने एक पुल के नीचे प्लांट को स्थापित किया और लैंप को पुल पर लगाया गया। फिर, छात्रों ने एक वीडियो जारी करते हुए, लोगों से मदद की अपील की। इसके बाद कई लोग उनकी मदद के लिए आगे आए।
इस पहल का है बड़ा असर
इस परियोजना को पूरा करने के लिए तीन हफ्ते का समय पर्याप्त है। लेकिन, यूनियन को पैसे जुटाने के लिए इंतजार करना पड़ा, इसलिए इसे पूरा करने में 2 महीने का समय लगा।
केसेतो बताते हैं, “प्रोजेक्ट ब्राइटर खुजमा को समान विचारधारा वाले स्थानीय लोगों से मदद मिली है और इसमें सरकार से कोई सहायता नहीं ली गई है। हमने करीब 85 हजार रूपये इकठ्ठा किये और कुल खर्च 80 हजार रूपये ही आया।”
एक स्थानीय अखबार के मुताबिक यहाँ की 90 फीसदी आबादी, खेती-किसानी पर निर्भर है और उनकी सिंचाई का मुख्य साधन मेवोबोक नदी है।
केसेतो कहते हैं, “यहाँ की अधिकांश आबादी खेती पर निर्भर है, इसलिए वहाँ स्ट्रीट लाइट लगाने का फैसला किया गया। दूसरी लाइट गाँव के उप-स्वास्थ्य केंद्र में लगाई गई, ताकि इमरजेंसी में भी लोगों को मदद मिल सके।”
वह आगे बताते हैं कि मशीन की क्षमता 3 किलोवाट है। लेकिन, इस वक्त करीब 550 वाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। इससे 23 स्ट्रीट लैंप (7 फीट लंबा) और 9 स्ट्रीट लाइट (20 फीट लंबा) को बिजली मिल रही है। ये हाइवे के 300 मीटर के दायरे में लगे हुए हैं।
सामुदायिक प्रयास
नोफ्रेनु थापरू, जिन्होंने पिछले साल अंग्रेजी साहित्य में मास्टर्स किया है और अब केएससीयू में महासचिव हैं, कहते हैं, “अधिकांश भारी काम लड़कों ने किये। जबकि, महिलाओं ने उनके लिए नाश्ता और खाना बनाकर दिया, जिससे काफी मदद मिली।”
“मेरे एक दोस्त ने लैंप को पारंपरिक रंगों से रंगने का विचार साझा किया, ताकि इससे अंगामी जनजाति की पहचान को दर्शाया जा सके। उन्होंने खुद से कुछ लैंप को पेंट भी किया,” वह आगे कहते हैं।
वीडियो देखें –
यूनियन के बारे में और अधिक बताते हुए, इसके एजुकेशनल और स्टेटिकल सेक्रेटरी, सेदी ठाकरो कहते हैं, “इस यूनियन की स्थापना 1963 में हुई थी। इसके तहत 23 सदस्य, 2 वर्षों के लिए चुने जाते हैं। यह एक ग्राम आधारित संगठन है। जो छात्रों की बेहतरी की दिशा में प्रयासरत है। ‘प्रोजेक्ट ब्राइटर खुजमा’ किसी छात्र संगठन द्वारा राज्य में अपनी तरह की पहली पहल है।”
अंत में केसेतो कहते हैं, “हमारी टीम के हर सदस्य ने अपना भरपूर सहयोग और योगदान दिया। इसी का नतीजा है कि यह परियोजना सफल रही।”
निश्चित रूप से, अपने गाँव को आत्मनिर्भर बनाने के लिए केसेतो और उनकी टीम ने जो प्रयास किया है, वह सराहनीय है। उम्मीद है कि इससे देश के अन्य युवाओं को भी इस तरह के प्रयासों को आगे बढ़ाने की प्रेरणा मिलेगी।
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मूल लेख – YOSHITA RAO
संपादन – मानबी कटोच
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