शिक्षा हम सभी के जीवन का एक अभिन्न अंग है। शिक्षा के बिना जीवन की कल्पना मुश्किल है। इसके बावजूद समाज का एक वर्ग है, जिसे आसानी से शिक्षा प्राप्त नहीं होती और यदि हो भी पा रही हो तो सामाजिक पिछड़ापन उन्हें रोक देता है। ऐसे ही पिछड़े तबके के कुछ छोटे बच्चों के जीवन में एक रौशनी का दीपक बन कर उभरी है ‘धूमा’ की पायल रॉय।
एक 24 वर्षीय युवा के मन में क्या आता होगा? एक अच्छी नौकरी हो, कुछ पैसे कमाए जाए और जीवन का भरपूर आनंद लिया जाए इत्यादि। ऐसे ही कुछ सपने पायल के मन में भी है, लेकिन इन सपनों की संकल्पनाएँ अलग है। उसके लिए बस्ती के बच्चों को शिक्षित करना सबसे अच्छा काम है, उसने बच्चों की पायल दीदी बन कर कई रिश्ते कमाए हैं और इन बच्चों को अपने ‘शिक्षा’ अभियान के माध्यम से शिक्षित कर वह जीवन का भरपूर आनंद ले रही हैं।
पायल का बचपन मध्यप्रदेश के जबलपुर-नागपुर मार्ग पर बसे ‘धूमा’ गाँव में गुजरा है। बचपन से ही इस गाँव में सुविधाओं की कमी थी। घर तो होते थे, लेकिन सामाजिक दबाव के चलते घरों में शौचालय नहीं होते थे। शौच के लिए बारिश में ढाई किमी दूर पैदल चलकर जाना पड़ता था। शिक्षा ग्रहण करना भी आसान नहीं था। पायल ने गाँव की इन परेशानियों और शिक्षा से दूर होते बच्चों को करीब से देखा था। दसवीं कक्षा में विज्ञान के शिक्षक न होने के कारण ‘हड़ताल’ करने वाली पायल ने तभी से अपने नेतृत्व गुणों का परिचय दे दिया था। बायोटेक्नोलॉजी में बैचलर और जूलॉजी में एमएससी करने वाली पायल फ़िलहाल पीएचडी की तैयारी कर रही हैं।
यह सब करते वक्त पायल के मन में हमेशा से एक चाहत थी, कि जो भी समस्याएँ उसे और उसके जैसे बच्चों को झेलनी पड़ रही है, वह आने वाली पीढ़ी को नहीं झेलनी पड़े। इसलिए ऐसा कुछ करना है, जिससे समाज में बदलाव आए। ‘शिक्षा’ अभियान पायल के मन में शायद तभी से घर कर गया था।
12वीं तक धूमा में शिक्षा लेने के बाद पायल जबलपुर पढ़ने आ गयीं और यहीं से उन्हें उनके सपनों को पूरा करने का रास्ता मिलता गया। एक बार ग्वारीघाट पर ठंड में ठिठुरते, बोरा ओढ़े व्यक्ति को देख पायल की संवेदनाएँ जागी और समाज के लिए कुछ करने का जज़्बा बोल उठा। अपने दोस्तों के साथ मिलकर पायल ने ठंड में ठिठुरते लोगों के लिए जनसहभागिता से कपड़े इकट्ठा कर बांटना प्रारम्भ किया।
एक दिन उसे एक गर्ल्स हॉस्टल में कुछ ज़रूरतमंद छात्राओं को पढ़ाने का अवसर मिला तो उसके मन में इससे भी कुछ बड़ा करने की इच्छा जागी। एक मित्र के माध्यम से उन्हें जबलपुर के एक बड़े महाविद्यालय में अपने काम के बारे में बताने का मौका मिला, जिससे अवसरों के दरवाजे खुलने शुरू हो गए और फिर गाड़ी आगे बढ़कर जा पहुंची ‘बरसाना’ की बस्ती में।
बरसाना बस्ती के बच्चों में नशा करना और पढ़ने की उम्र में मज़दूरी का प्रचलन था। पायल यह चित्र बदलना चाहती थी। लेकिन उस ढर्रे को बदलना आसान नहीं था जो लम्बे समय से चला आ रहा था। पायल ने पहले सामान्य तौर पर बच्चों को शिक्षा से जोड़ने की कोशिश की, लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली। उसे समझ आ गया कि यदि बच्चों को सही रास्ते पर लाना है तो उसे बच्चों के साथ घुलना-मिलना होगा और उनके साथ उन्हीं का बन के रहना होगा।
अभिभावकों को विश्वास दिलाना होगा कि वह जो भी कर रही है, बच्चों के भविष्य के लिए कर रहीं हैं। पायल ने इसके लिए उन बच्चों के साथ वक्त बिताना शुरू किया, उनके अभिभावकों को समझाया और वह इसमें सफल रहीं।
पायल कहती है, “शुरुआत में काम करना बहुत मुश्किल था। खासकर लोगों को यह समझाना कि उन्हें अपने बच्चों को क्यों पढ़ने भेजना चाहिए? यह क्यों आवश्यक है? बहुत ही कठिन काम था। इसका कारण था सालों पीछे छूट चुकी मानसिकता।”
पायल ने 2016 में बरसाना बस्ती से ‘शिक्षा’ अभियान की शुरुआत की थी। बरसाना बस्ती में 30 बच्चों के साथ शुरू हुई पायल के ”शिक्षा” अभियान की क्लास आज 122 बच्चों तक पहुँच चुकी है। पायल को हँसते-खेलते पढ़ाने में और बच्चों को ऐसे पढ़ने में आनंद आता है। पायल उन्हें बहुत सारी कहानियाँ सुनाती हैं, कहानियों और खेलों के माध्यम से बच्चों को पढ़ाती हैं। पायल और उनके जैसे कई लोगों की मदद से बच्चे पिकनिक पर जाते हैं, उन्हें जन्मदिन पर या खास मौके पर ट्रीट भी दी जाती है।
महज़ तीन साल में ही सोशल मीडिया के माध्यम से उनके इस अभियान से कई लोग जुड़ चुके हैं। फेसबुक पर ‘‘शिक्षा : एक उज्ज्वल भविष्य की ओर’‘ पेज ने पायल के काम को दुनिया तक पहुँचाया है। पायल के नेतृत्व में कुछ दोस्तों के साथ चालू किया गया यह अभियान आज कई बच्चों की जिंदगी बदल रहा है।
जबलपुर में अपने काम से पहचान बनाने के बाद पायल ने वापस ‘धूमा’ जाने का निर्णय लिया, जहां से वह आई थी। पायल अपने गाँव के जरूरतमंद बच्चों के लिए भी कुछ करना चाहती थी। बरसाना बस्ती में अब ”शिक्षा” से जुड़े युवा बच्चों को पढ़ाते हैं। हालाँकि पायल भी हफ्तीते के तीन दिन बरसाना में रहती हैं।
वह कहती है, “अभी नहीं तो कब? और तुम नहीं तो कौन? यह प्रश्न हमेशा मेरे मन में आते थे। धूमा में अभिभावक बच्चों को पढ़ने भेजने के लिए तैयार तो थे लेकिन सुविधाओं का अभाव था। आज धीरे-धीरे वहाँ तक भी सुविधाएँ पहुँच रही है। ‘शिक्षा’ अभियान की एक बच्ची माधवी परसे का चयन ‘स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ में हुआ है। आज ”शिक्षा” के माध्यम से बरसाना का एक-एक बच्चा पाठशाला जाता है।”

पायल चाहती हैं कि, यह श्रृंखला यूँ ही आगे भी कायम रहे। जिस प्रकार वह ज़रूरतमंद बच्चों को पढ़ा रही हैं, वैसे ही ये बच्चे भी बड़े होकर पढ़ाने का यह अमूल्य और सराहनीय काम करते रहे।
‘शिक्षा’ किसी से भी नगद में डोनेशन नहीं लेता। इस अभियान का एक उसूल है कि जो भी इन बच्चों की मदद करना चाहते हैं वह इन बच्चों को समय दें या फिर जरूरत का सामान लाकर दे, ऐसा इसलिए ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
आज के समय में जहाँ एक ओर युवा अपना घर, गाँव, शहर छोड़ उँचे पगार की नौकरी करने बड़े शहर जा रहे हैं। वही पायल जैसे कुछ युवा अपने ही गांवों में लौटकर वहाँ की नींव मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि आने वाली पीढ़ी को बेहतर शिक्षा मिले। पायल आज की युवा पीढ़ी के लिए एक उदाहरण है।
लेखिका – निहारिका पोल सर्वटे
अगर आप पायल के इस नेक काम में किसी तरह की मदद करना चाहते हैं या उनसे सम्पर्क करना चाहते हैं तो शिक्षा के फेसबुक लिंक पर सम्पर्क कर सकते हैं।
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