देशव्यापी लॉकडाउन और कोरोना महामारी की वजह से जिंदगी थम-सी गई है। ऐसे कठिन समय में भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी मेजर प्रदीप शौर्य आर्य बेंगलुरु में फँसे हजारों प्रवासी श्रमिकों और अन्य जरूरतमंद लोगों के लिए एक मसीहा के रूप में उभरे हैं।
मुंबई के अतिरिक्त आयकर आयुक्त मेजर आर्य 2017 में एलओसी पर आतंकवादियों के खिलाफ मुठभेड़ में अपनी बहादुरी का परिचय कराने के लिए शौर्य चक्र से भी नवाजे जा चुके हैं। इतना ही नहीं, उनकी झोली में पीएचडी, कमर्शियल पायलट लाइसेंस जैसे कई अन्य तमगे भी हैं।
कोविड-19 के इस संकट की घड़ी में 47 वर्षीय इस अधिकारी ने जरूरमंद लोगों और बेजुबान पशुओं की मदद के लिए वह सब कुछ किया, जो वह कर सकते थे।
गत 25 मार्च को लागू लॉकडाउन 1.0 से पहले मेजर आर्य, बेंगलुरु स्थित अपने घर आए थे। लेकिन, अंतरराज्यीय यातायात प्रतिबंधों के कारण वह मुंबई वापस नहीं जा पाए। हालाँकि, इसके तुरंत बाद, बेंगलुरु प्रशासन ने मेजर आर्य के असाधारण निर्णय लेने की क्षमता को जानते हुए, उनसे कई मानवीय कार्यों में मदद की अपील की।
द बेटर इंडिया के साथ एक विशेष बातचीत में, मेजर आर्य ने लॉकडाउन के दौरान बेंगलुरु में अपने कार्यक्रमों के बारे में विस्तार से बताया कि उन्होंने कैसे झुग्गियों में रहने वाले गरीबों और जरूरतमंदों से लेकर सड़क पर भटकते पशुओं की हरसंभव मदद की।
कमजोर समुदायों की पूरी मदद की
मेजर आर्य कहते हैं, “कहानी हमारी अविश्वसनीय टीम शी वारियर्स से शुरू होती है। मैंने कोरोना योद्धा के रूप में काम करने वाली 80 महिलाओं का एक समूह बनाया, जिन्होंने शहर के कमजोर वर्गों की महिलाओं, लड़कियों और बच्चों की जरूरतों को सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया। इन महिलाओं ने बेंगलुरु के सभी 8 डीसीपी क्षेत्रों में आयरन और विटामिन की गोलियों से लेकर सेनेटरी पैड तक की आपूर्ति सुनिश्चित की।”
मेजर आर्य ने संगमा एनजीओ की मदद से ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए भोजन और राशन की व्यवस्था भी की।
हर क्षेत्र में शी वारियर्स की एक टीम तैनात थी, जो अपने क्षेत्र में महिलाओं और बच्चों की देख-भाल करती थी। इस दौरान उन्होंने उत्तर-पूर्वी राज्यों के साथ-साथ अफ्रीका के फँसे हुए छात्रों की भी पूरी मदद की, जिन्हें अक्सर नस्लभेद का सामना करना पड़ता है।
लाखों प्रवासी मज़दूरों को करा रहे हैं भोजन उपलब्ध
आर्य ने प्रवासी मजदूरों के लिए सूखे राशन किट के साथ गर्म भोजन के नियमित वितरण को सुव्यवस्थित करने में भी मदद की। हेल्पलाइन पर आने वाले अनुरोधों के तहत, उनकी स्वयंसेवकों की टीम ने कमर्शियल पायलट कैप्टन राधाकृष्णन के साथ मिलकर पीड़ित परिवारों के बीच 3 लाख राशन किट और 2.2 लाख फूड पैकेट की व्यवस्था की।
मेजर आर्य ने सही लाभार्थियों की पहचान के लिए अतिरिक्त सावधानी बरती। इस बारे में वह कहते हैं, “हालाँकि, अधिकांश लोगों के पास पहचान पत्र नहीं थे, लेकिन जिंदा रहने के लिए भोजन जरूरी है। इसलिए, हमने हर क्षेत्रों के लोगों, जैसे – मान्यता प्राप्त ट्रेड यूनियनों, प्रशासनिक अधिकारियों और हर क्षेत्र में एक स्थानीय प्रतिनिधि के साथ भागीदारी की – ताकि वितरण प्रक्रिया में कोई राजनीतिक या व्यक्तिगत संबद्धता न हो। इसके अलावा, कुछ क्षेत्रों में फूड बैंक भी बनाए गए थे, जहाँ प्रवासी श्रमिक एक निश्चित समय पर मुफ्त में इसका लाभ उठा सकते थे।”
पशुओं की भी इंसानों जैसा देख-भाल
कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए सामाजिक दूरी एकमात्र उपाय है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि सार्वजनिक स्थानों पर लॉकडाउन नियमों का सख्ती से पालन हो रहा है, मेजर आर्य की मदद से पब्लिक अनाउंसमेंट सिस्टम की नींव रखी गई। इसके जरिए, बेंगलुरु पुलिस ने नियमों के पालन के लिए संदेश और चेतावनी फैलाई। इसके फलस्वरूप, लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में वायरस के विस्तार को काफी हद तक नियंत्रित कर लिया गया।
इतना ही नहीं, पुलिस द्वारा सार्वजनिक स्थानों और रेड जोन की निगरानी के लिए कैमरे से लैस ड्रोन भी लगाए। इसकी बागडोर करीब 20 तकनीकी विशेषज्ञों और स्वयसेवकों के हाथों में थी। फुटेज का निरीक्षण सीधे पुलिस कंट्रोल रूम से किया गया।
इसके साथ ही, आपातकालीन स्थिति में 600 ग्राम तक का भार उठाने में सक्षम इन ड्रोनों का इस्तेमाल दवाई पहुँचाने में भी किया गया।
दवाओं की डिलीवरी के अलावा, मेजर आर्य की टीम ने सुनिश्चित किया कि लॉकडाउन के दौरान शारीरिक और मानसिक रोगों से ग्रसित लोगों को भी समय पर मदद मिले। इसके लिए बेंगलुरु में एक 24×7 हेल्पलाइन सेवा शुरू की गई, जहाँ डॉ. भास्कर राजकुमार ने लोगों को महामारी के दौरान स्वास्थ्य संबंधी विषयों, क्वारंटाइन हाइजीन आदि के बारे में जरूरी सलाह दी। वहीं, मनोवैज्ञानिक डॉ. ज्योति की देखरेख में एक और हेल्पलाइन जारी की गई, जहाँ उन्होंने लॉकडाउन से संबंधित अवसाद, तनाव और चिंता को कम करने के लिए मुफ्त में परामर्श दिया।
मेजर आर्य के प्रयासों से, लॉकडाउन के दौरान पशुओं का भी विशेष ध्यान रखा गया। बीबीएमपी के सहयोग से, कोरोना योद्धाओं ने उनके मार्गदर्शन में भटकते कुत्तों, बिल्लियों और मवेशियों को नियमित रूप से खाना खिलाया। यहाँ तक कि बचाव दल ने आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए पशु एम्बुलेंस की भी व्यवस्था की।
बेंगलुरु में, मेजर आर्य के प्रशासनिक अधिकारियों की ब्रिगेड के एक अपरिहार्य अंग के रूप में अथक प्रयासों ने विपदा की इस घड़ी में सैकड़ों जिंदगियों को बचाने में जो भूमिका निभाई, उसके लिए कोई शब्द नहीं हैं।
लॉकडाउन में मिली छूट के बाद, मेजर आर्य मुंबई लौट गए हैं, लेकिन उन्होंने अपने सेवा कार्यों को यहाँ भी जारी रखा। इस समय वह धारावी स्लम में सेक्स वर्कर्स और ट्रांसजेंडर समुदाय के बीच राशन, मास्क जैसे जरूरी चीजों की सुविधा सुनिश्चित कर रहे हैं। इस प्रयास में, उरी सर्जिकल स्ट्राइक में शामिल कप्तान नील शाजी वीएसएम, मेजर संजय राउले और आईपीएस अधिकारी वीरेश प्रभु, मेजर आर्य का भरपूर साथ दे रहे हैं।
मेजर आर्य कश्मीर के बारामूला, शोपियां के सुदूरवर्ती और अत्यंत पिछड़े इलाकों के साथ-साथ लद्दाख में भी राहत कार्यों की निगरानी कर रहे हैं।
साक्षात्कार के दौरान, मेजर आर्य ने उन सभी अधिकारियों और प्रतिनिधियों का उल्लेख किया, जिन्होंने बेंगलुरु में लॉकडाउन के दौरान उनके साथ काम किया था। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ मेरे प्रयासों के बदौलत नहीं हुआ है, यह हम सब ने मिलकर किया है।”
द बेटर इंडिया मेजर आर्य के जज्बे को सलाम करता है।
मूल लेख-SAYANTANI NATH
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