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मध्यप्रदेश के छतरपुर शहर और आस-पास के कई दूसरे शहरों में कोई भी मानसिक रोगी या सड़क पर घूमता बेसहारा शख्स नज़र आता है, तो लोग उसकी जानकारी पुलिस या अस्पताल में देने के बजाय, छतरपुर के ही एक वकील, संजय शर्मा को देते हैं। हालांकि संजय न तो डॉक्टर हैं और न ही मानसिक रोगियों के लिए कोई NGO चलाते हैं।
इसके बावजूद, शहर के हर एक अस्पताल और पुलिस चौकी में कोई भी ऐसा नहीं, जो उन्हें न जानता हो। ऐसा इसलिए क्योंकि संजय पिछले 30 सालों से मानसिक रोगियों और सड़क पर बेसहारा घूमते लोगों की सेवा का काम कर रहे हैं। संजय को बचपन में उनकी नानी ने सिखाया था कि ऐसे मानसिक रूप से कमजोर लोग, जिन्हें सभी पागल कहकर चिढ़ाते हैं, असल में वे पागल नहीं होते, बल्कि मुसीबत में होते हैं। उन्हें थोड़े ज्यादा प्यार की जरूरत होती है।
बस इसी सीख से, 55 वर्षीय संजय हमेशा प्रभावित रहे हैं और सालों से ऐसे लोगों के लिए काम भी कर रहे हैं। वह कहते हैं, "बचपन में जब भी कोई किसी भिखारी को मारता था या सड़क पर घूमते लोगों को पागल कहता था, तो ऐसे लोगों को देखकर, मेरी नानी बड़ा गुस्सा करती थीं। मैंने उन्हीं से सीखा कि ऐसे लोगों से कैसे बात करनी चाहिए और उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? उनकी तकलीफें दूर करने के लिए उनसे बात करना बेहद जरूरी होता है।"
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संजय को याद भी नहीं है कि उन्होंने इस काम की शुरुआत कब की, लेकिन आज उनका यह काम ही उनकी पहचान बन गया है। वह अब तक 600 से भी ज्यादा लोगों की मदद कर चुके हैं। उन्हें जब भी पता चलता है कि कोई बेबस हालत में सड़कों पर घूम रहा है या कोई ऐसा है, जो बेसहारा है और लोग उसे पागल कहते हैं, तो वह तुरंत वहां पहुंच जाते हैं। उसे खाना और कपड़े देते हैं और खुद से उसे समझाने की कोशिश करते हैं। अगर कोई ज्यादा बीमार हालत में हो, तो उसे हॉस्पिटल पहुंचाते हैं, जो लोग घर वापस जाना चाहते हैं, संजय उनके घरवालों को समझाकर उन्हें वापस घर छोड़कर आते हैं।
संजय पेशे से वकील हैं, इसलिए वह क़ानूनी प्रक्रिया को ध्यान में रखकर, लोगों को उनका हक़ दिलाने का काम भी करते हैं। वह कहते हैं, "हमारे देश में साल 2017 में मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट के तहत, ऐसे बेसहारा लोगों को कई अधिकार दिए गए हैं। इस एक्ट के अंतर्गत, मानसिक रूप से कमजोर इंसान को इलाज और बीमा जैसे अधिकार मिले हैं, साथ ही उन्हें पागल जैसे शब्दों से बुलाना भी जुर्म कहलाता है। इन सभी नियमों और कानूनों को लागु करना सरकार की जिम्म्मेदारी है, लेकिन कोई मानसिक रूप से कमजोर इंसान खुद कैसे अपने अधिकार के लिए लड़ेगा, इस काम में ही मैं उनकी मदद करता हूँ।"
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तक़रीबन 10 साल पहले, छतरपुर के ही एक गोल्डमेडलिस्ट डॉ. पाठक को मानसिक रोगी कहकर नौकरी से निकाल दिया गया था। उनकी मानसिक स्थिति ठीक न होने के कारण उनपर कुछ केस भी चलाए गए थे। उनकी पत्नी भी उन्हें छोड़कर चली गईं, जिसके बाद वह पागलों की तरह शहर में घूमते थे। संजय को जब उनके बारे में पता चला, तब उन्होंने उनका इलाज कराया और उनके केस भी लड़े। इसके बाद डॉ. पाठक ठीक हो गए और आगे चलकर उन्होंने फिर से मेडिकल प्रैक्टिस भी शुरू की। उनके पास मरीजों को आता देखकर, संजय को बेहद ख़ुशी होती थी।
ऐसे ही कहानी शहर के एक युवा लड़के की भी है, जो नशा करता था और चोरी करके खुद ही चोरी कबुल कर लेता था। लोग उसे मारते-पीटते थे, संजय ने उस शख्स का नशा करवाना छुड़वाया और आज वह चोर एक कारपेंटर बन गया है।
ऐसी ही कई कहानियां हैं, जिसमें संजय ने लोगों के जीवन को फिर से आशा से भरने का काम किया है। संजय, आज अपने शहर में ‘मानसिक रोगी के सेवक’ के नाम से मशहूर हैं। उन्हें उनके इस निस्वार्थ सेवा के लिए 50 से ज्यादा अव\र्ड्स और सम्मानपत्रों से नवाजा गया है, जिसमें स्थानीय प्रसाशन से लेकर राज्य सरकार से मिले पुरस्कार और सम्मान शामिल हैं।
आप संजय से बात करने या उनके काम के बारे में ज्यादा जानने के लिए उन्हें फेसबुक पर सम्पर्क कर सकते हैं।
संपादन -अर्चना दुबे
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