आज प्रकृति का व्यवहार निरंतर बदलने के कारण दुनियाभर में मानवता पर संकट गहरा रहा है। प्रकृति पर हमारी निर्भरता इतनी अधिक है कि यदि हमने पर्यावरण संरक्षण के लिए अभी से सार्थक प्रयास करने नहीं शुरू किए, तो हमारा अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान वैश्विक जनसंख्या और विकास की गतिविधियाँ बढ़ने की वजह से औद्योगीकरण और शहरीकरण की रफ्तार भी तेज गति से बढ़ी है।
वहीं, ग्रामीण इलाकों में भी फसलों की सिंचाई के लिए भूजल का अत्यधिक दोहन हुआ है। ऐसे स्थिति में कई क्षेत्रों में भूजल खत्म होने के कगार पर है, जबकि ज्यादातर इलाकों में जलस्तर तेजी से नीचे गिर रहा है।
एक आंकड़े के मुताबिक, दुनिया में 2 अरब से अधिक लोगों को पीने के लिए पानी साफ नहीं मिल पाता है। पेयजल का प्रत्यक्ष संकट तीसरी दुनिया के देशों में सर्वाधिक है।
बता दें कि आज भारत में लगभग 60 करोड़ लोग पीने के लिए साफ पानी के संकट का सामना कर रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक देश में हर साल लगभग 2 लाख लोगों की मौत पीने योग्य पानी नहीं मिल पाने के कारण हो जाती है।
नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्ध जल वितरण से दोगुनी हो जाएगी। इससे सकल घरेलू उत्पाद में 6% तक की गिरावट आने की संभावना है।
ऐसा नहीं है कि भूजल संकट की इस स्थिति को देखते हुए, हम उदासीन हैं। हमारी सरकारें औऱ संस्थाएँ इस निपटने के लिए कई स्तरों पर प्रयास कर रही है। इस कड़ी में, ऐसा ही एक नाम है – आईएएस देवरकोंडा कृष्ण भास्कर का।
कृष्ण, तेलंगाना में 2016 में गठित राजन्ना सिरसिल्ला जिला के पहले जिलाधिकारी थे और उनके प्रयासों से क्षेत्र में जलस्तर को 6 मीटर तक बढ़ाने में सफलता मिली।
यह कैसे संभव हुआ
36 वर्षीय (Telangana IAS) आईएएस कृष्ण कहते हैं, “पानी की किल्लत, जिले के लिए एक कभी न खत्म होने वाला मुद्दा रहा है। आलम यह है कि यहाँ के सभी तालुकाओं और मंडलों को सूखा ग्रस्त क्षेत्र घोषित कर दिया गया था। और, गर्मी के दिनों में लोगों की जिंदगी आसान नहीं होती थी।”
बहुस्तरीय सफलता
“लोगों ने पानी की उपलब्धता के लिए कई शिकायतें दर्ज की और वाटर टैंकर, आरओ संयंत्रों की स्थापना से लेकर जल संचयन के लिए जलाशयों की माँग की। इसके तहत, विभाग द्वारा जल संकट की भीषण समस्या से निपटने के लिए कई प्रयासों को प्राथमिकता के आधार पर शुरू किया गया,” कृष्ण कहते हैं।
टैंकों को अपग्रेड करने से लेकर पाइप्ड वाटर सिस्टम, जलाशय के लिए भूमि अधिग्रहण, जल भंडारण निकायों का निर्माण और स्थानांतरण, जिला प्रशासन द्वारा जल निकायों में जल संरक्षण के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाए गए।
कृष्ण कहते हैं, “पिछले 3 वर्षों में, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) जैसी योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने और जलाशयों के निर्माण से हमें बड़े पैमाने पर बदलाव देखने को मिल रहे हैं।”

2012 बैच के आईएएस अधिकारी (Telangana IAS) अपने इस पहल के बारे में कहते हैं, “कानूनी मुद्दों के कारण करीब एक दशक तक बंद रहने के बाद, श्री राजाराजेश्वर जलाशय परियोजना को शुरू किया गया था। इसकी क्षमता 27 टीएमसी (हजार मिलियन क्यूबिक फीट) है। इस तरह, यह राज्य का सबसे बड़ा जलाशय बन गया।”
कृष्णा कहते हैं कि परियोजना को डेढ़ साल में पूरा करने के बाद, अन्नपूर्णा जलाशय का संचालन भी समानांतर रूप से शुरू हुआ।
इसके अलावा, अन्य उपायों के तौर पर ऊपरी मनेर जलाशय को गादमुक्त करने के साथ ही, कई छोटे जल निकायों और तालाबों को पुनर्जीवित किया गया। इस पहल के तहत छोटे टैंकों को भी पुनर्जीवित किया गया। इससे स्थानीय आबादी सपोर्ट और सस्टेन करने में मदद मिली।
जिले भर ऐसे करीब 699 पानी के टैंक हैं, जिनमें से 450 इस साल काम कर रहे हैं। वह कहते हैं, “हमने गुड़ी चेरुवु नाम के एक अनूठे पहल की शुरुआत की, जिसके तहत मंदिरों में टैंकों की जल क्षमता बढ़ाने और स्थानीय स्तर पर पानी की कमी को दूर करने के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया।”
धीरे-धीरे, लेकिन मजबूती के साथ आगे बढ़े
कृष्ण का कहना है कि उन्होंने मिशन भागीरथ की शुरुआत की, ताकि स्वच्छ पेयजल को हर गाँव तक पहुँचाया जा सके। वहीं, हर स्तर पर, कई प्रयासों के जरिए, जिले के भूजल जलस्तर में 6 मीटर तक की बढ़ोत्तरी हुई है।
वह कहते हैं, “यह स्तर 12 से 18 महीने की अवधि के दौरान निरंतर बढ़ता रहा। इसकी पुष्टि और डॉक्यूमेंटेशन भूजल सर्वेक्षण अधिकारियों द्वारा किया जा चुका है। इसके परिणामस्वरूप, जिले में कृषि गतिविधियों में 150% की वृद्धि हुई। यह एक धीमी, लेकिन मजबूत शुरुआत है।”
अधिकारी कहते हैं कि जल प्रबंधन के इन उपायों को भारत सरकार द्वारा भी रिकॉग्नाइज किया गया था। और, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी ने इस पर अमल करते हुए अपने पाठ्यक्रम में भी शामिल किया।
कृष्णा कहते हैं कि यह सफलता, जिम्मेदारियों को प्राथमिकता देने और उन पर प्रभावी ढंग अमल करने के बाद संभव हुई है।
हमने जो भी पहल किए, वे सभी सरकारी तंत्र में पहले से मौजूद हैं। एक नया जिला होने के कारण, प्रशासन पर सक्रिय होने और चीजों से सही ढंग से करने को लेकर काफी दबाव था। इसलिए हमने प्राथमिकता के तौर पर, उन योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू किया।”
अंत में कृष्ण कहते हैं, “एक अधिकारी के रूप में, हमें एक ही बार में कई चीज़ें करने की ललक होती है। लेकिन, प्राथमिकताओं को तय करना और उन पर ध्यान देना, बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण होता है।”
मूल लेख – HIMANSHU NITNAWARE
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संपादन – जी. एन झा
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