जिस उम्र में लोग जीवन में ऊंचाई हासिल करने के लिए महानगरों का रूख कर लेते हैं, उस उम्र में यह युवा अपने गाँव लौट आता है और पर्यावरण की रक्षा के लिए वृक्षारोपण शुरू करता है। यह कहानी उत्तराखंड के एक ऐसे युवक की है जिसने महज 26 साल की उम्र में 40 हजार से अधिक पौधे लगा चुका है।
नैनीताल जिला के ओखलकांडा ब्लॉक के नाई गाँव के रहने वाले चंदन सिंह नयाल की उम्र कम है, लेकिन उनके इरादे बेहद ऊंचे। चंदन ने जब देखा कि चीड़ और बुरांश के जंगलों में आग लग रही है और जमीन सूख रही है तो उन्होंने अपनी लगन से चामा तोक इलाके में बांज का जंगल तैयार कर दिया।
बांज एक ऐसा पेड़ है जो भूस्खलन रोकने में मददगार साबित होता है। यह जल संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाता है। यह पेड़ जमीन में नमी बचाए रखता है। इसके साथ ही वह औषधीय पौधों का भी संरक्षण कर रहे हैं।
चंदन पर्यावरण को लेकर कितने जागरूक हैं इसका एक उदाहरण यह भी है कि उन्होंने हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज को अपना देहदान कर दिया है। उनका कहना है कि उनकी मौत के बाद किसी पेड़ को ना काटना पड़े इसलिए उन्होंने देहदान करने का निर्णय लिया है।
अकेले तोक चामा में लगाए 15 हजार पौधे
चंदन ने बेटर इंडिया को बताया, “मैंने जो जंगल तैयार किया है, उनमें से 15 हजार पौधे गाँव के तोक चामा में लगाए हैं। बाकी, इसके आस-पास के इलाकों में। इस काम में ग्रामीणों ने भी सहायता की है। मवेशी के लिए चारा जुटाने के लिए महिलाएं अक्सर जंगल में जातीं हैं। ऐसे में जंगली जानवरों का खतरा रहता है। ऐसे में जब गाँव में ही अपना जंगल तैयार हो जाएगा तब उन्हें सुदूर जंगल नहीं जाना पड़ेगा।”

इसके अलावा चंदन ने जंगली जानवरों के पीने के पानी के लिए जंगलों में चाल–खाल का भी निर्माण किया है। वह कहते हैं, “यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम जीवों का भी ख्याल रखें। जंगलों पर पहला हक उन्हीं का है। चाल खाल का एक फायदा यह भी है कि इनसे भी पेड़ों को नमी मिलती है।”
खेती से चलाते हैं घर
चंदन के मुताबिक उनके पास खेती की 70 नाली जमीन है। इस पर वह आलू के साथ ही अखरोट, माटा आदि उगाते हैं। वह कहते हैं, “मेरी अपनी आजीविका खेती से आराम से चल रही थी, लेकिन मुझे इस बात का मलाल जरूर था कि पहाड़ से पलायन नहीं रूक रहा। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि रोजगार के अवसर बेहद सीमित हैं।”
वह आगे कहते हैं, “पहाड़ों पर औषधीय पौधे रोजगार का एक बेहतर जरिया साबित हो सकते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए मैंने औषधीय पौधों का संरक्षण शुरू किया। इसके साथ ही रिंगाल, भीमल जैसे पौधे खास तौर पर लगाए हैं। रिंगाल से जहाँ टोकरियां बनती हैं, वहीं भीमल के रेशे से चप्पल आदि बनाई जा सकती है।”
चंदन बताते हैं कि भीमल के पौधे करीब तीन साल के हो चुके हैं। अभी इन्हें करीब आठ साल और लगेगा। रिंगाल जल्द ही इस लायक हो जाएगा कि उससे उत्पाद तैयार किए जा सकें।
बांटते हैं पौधे
चंदन फलदार जैसे कि आडू, प्लम, सेब, अखरोट, माल्टे और नींबू समेत और बांज के पौधों का वितरण करते हैं। इसके लिए उन्होंने अपनी नर्सरी भी तैयार की है। उनसे मिलने जो भी आता है, वह भेंट के तौर पर पौधा पाता है।
वह कहते भी हैं, किसी के जन्मदिन या अन्य समारोह में पौधों के उपहार से बड़ा कोई तोहफा नहीं। वह करीब 150 स्कूलों में जा जाकर बच्चों को पौधे रोपने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण का भी पाठ पढ़ा चुके हैं।
वह कहते हैं, “भविष्य में पर्यावरण और समाज को बचाने की जिम्मेदारी इन्हीं छात्र छात्राओं पर हैं, इन्हें अभी से इसका बोध कराया जाना आवश्यक है, ताकि यह प्रकृति हित में रहें और प्रकृति का भरपूर प्रेम भी पा सकें।”
चंदन सिंह नयाल बताते हैं कि वह अपने चाचा के साथ पढ़ाई के लिए रामनगर आए। उन्होंने लोहाघाट से इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। इसके बाद कुछ समय रूद्रपुर में बतौर शिक्षक कार्य भी किया।
उन्होंने बताया, “मैं चाहता तो दिल्ली या किसी और बड़े शहर का रूख कर सकता था। नौकरी करके एक आराम की जिंदगी जी सकता था। लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। पौधा रोपण मेरा जुनून था और इसी जुनून के साथ मैं अपने गाँव लौट आया और पर्यावरण को बचाने की मुहिम छेड़ दी।”
चंदन चाहते हैं कि सभी लोग इस मुहिम से जुड़ें ताकि समय रहते भविष्य को सुरक्षित किया जा सके। पहाड़ों पर खास तौर पर इस तरह के पौधों की जरूरत है, जो पारिस्थितिकी को मजबूत करने के साथ ही स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का जरिया बन सकें। वह पौधरोपण को उसी दिशा की ओर एक कदम करार देते हैं।
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संपादन – जी. एन झा
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