/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2020/07/04132700/Wood-Fire-Pizza-compressed.jpg)
कोविड-19 महामारी ने पूरे विश्व की स्थिति को बदल दिया है और आने वाला भविष्य कैसा होगा, इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता। लगभग 3 महीने के लॉकडाउन के बाद जून, 2020 से भारत का अनलॉक फेज शुरू हुआ है। लेकिन लॉकडाउन के दौरान जिस तरह से आर्थिक व्यवस्था डगमगाई है, उसे संभालना बहुत ही मुश्किल है।
इन मुश्किल हालातों में एक तरफ जहाँ लोग निराशा से घिरते जा रहे हैं, वहीं कुछ लोगों के हौसले प्रेरणा की मिसाल बन रहे हैं। आज हम आपको ऐसे ही दो भाइयों की कहानी से रू-ब-रू करा रहे हैं, जो न सिर्फ अपने गाँव के लिए बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा हैं। इन दोनों ने साबित किया है कि आपको सिर्फ एक सही सोच के साथ कदम उठाने की देरी है और आप बुरे से बुरे वक़्त में भी अपनी राहें बना सकते हैं।
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के सनाही गाँव के रहने वाले दो चचेरे भाई, विपिन कुमार शर्मा और ललित कुमार शर्मा पिछले कई बरसों से होटल इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं। गाँव में ही स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, विपिन नौकरी की तलाश में दिल्ली पहुँच गए। वहां उन्होंने पहले तो छोटी-मोटी नौकरियां की और फिर साल 1997 में ओबरॉय होटल से जुड़ गए। उनकी शुरुआत काफी छोटे पद से हुई लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने चीजें सीखीं और इतने सालों में खुद को मैनेजमेंट लेवल तक पहुँचाया। अपने करियर में विपिन ने भारत के बाहर मालदीव जैसे देशों में भी होटल व रिसोर्ट के साथ काम किया है।
वह बताते हैं, "मैंने अपने करियर में कई जॉब बदलीं। एक होटल के बाद दूसरे होटल, फिर बड़े-बड़े रिसोर्ट आदि के साथ काम किया। इस बीच दो-तीन बार एक-एक साल का ब्रेक लेकर घर-परिवार के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियाँ भी निभाई। मेरा परिवार हमेशा गाँव में ही रहा। हमारी थोड़ी-बहुत ज़मीन है जिसे पहले पिताजी देखते थे। लेकिन उनके देहांत के बाद यह सब ज़िम्मेदारी भी हम पर आ गईं।"
लॉकडाउन में लौटे घर
साल 2019 के अंत में ही उन्होंने रोजवुड होटल्स की चेन को ज्वाइन किया था और वहां उनके एक नए होटल में बतौर डायरेक्टर नियुक्त हुए थे। लेकिन मार्च 2020 में उन्हें कोविड-19 के चलते भारत वापस लौटना पड़ा। वहीं, दूसरी तरफ उनके चचेरे भाई, ललित कुमार शर्मा ने साल 2003 में होटल इंडस्ट्री में अपना करियर शुरू किया। वह किचन में शेफ के साथ काम करते थे। ललित कहते हैं कि इतने सालों में उन्होंने भारत के अच्छे नामी होटल्स के साथ-साथ बाहर चीन जैसे देशों में भी काफी समय तक काम किया है।
/hindi-betterindia/media/post_attachments/2020/07/04105524/Wood-Fire-Pizza-1-compressed-1.jpg)
"इस दौरान मैंने शेफ रणवीर बरार के साथ भी काम किया और कई होटल्स के लिए नयी-नयी रेसेपीज भी तैयार कीं। लॉकडाउन से पहले तक मैं अमृतसर में एक मशहूर होटल चेन के साथ काम कर रहा था। पर फिर कोविड-19 की वजह से होटल्स बंद होने लगे और मुझे भी नौकरी छोड़कर घर लौटना पड़ा," उन्होंने आगे कहा।
विपिन और ललित जब घर लौटे तो उन्हें लगा था कि एक-दो महीने में स्थिति सुधर जाएगी। लेकिन जब हर दिन स्थिति बिगड़ने लगी और लॉकडाउन बढ़ता ही गया तो दोनों परेशान हो गए। ललित बताते हैं, "शुरुआत में तो फिर भी ठीक था लेकिन जैसे-जैसे समय बीता तो लगने लगा कि बिना नौकरी के कब तक गुज़ारा होगा। इसके अलावा, घर में रहना भी खलने लगा था। हम दोनों भाई एक-दूसरे से बात करते और सोचते कि आखिर क्या किया जाए?"
उन्होंने पहले गाँव के नजदीक के बाज़ार में दुकान खोलने की सोची। लेकिन फिर लगा कि उसमें कामयाबी मिलना मुश्किल है। इसके बाद बातों-बातों में उन्हें पिज़्ज़ा का काम शुरू करने का ख्याल आया। लेकिन सारी बात ओवन पर आकर अटक गई। क्योंकि ओवन खरीदने में काफी खर्च था और अगर कभी वह खराब हो गया तो उसे ठीक कराना बहुत मुश्किल था।
मिट्टी से बनाया देशी ओवन
/hindi-betterindia/media/post_attachments/2020/07/04105808/83586431_2881892271911068_7230351550137062951_n-compressed.jpg)
"एक दिन यूट्यूब पर रैंडम वीडियो देखते हुए मैंने मिट्टी के ओवन की वीडियो देखी। इसके बाद, हमने इस बारे में और रिसर्च किया तो मिट्टी का ओवन बनाने की विधि पर भी वीडियो मिल गई," उन्होंने आगे कहा। दोनों भाइयों ने घर पर ही खुद मिट्टी का ओवन बनाने की ठान ली। उन्होंने लोहे का फ्रेम बनवाया और उसे पर मिट्टी का ओवन बनाया।
ओवन तैयार करने में उन्हें लगभग 20-25 दिन लगे। विपिन कहते हैं कि वह दोनों ही यह काम पहली बार कर रहे थे। इसलिए कई ट्रायल भी उन्होंने किए और अंत में उनकी मेहनत रंग लाई। उनका मिट्टी का ओवन बनकर तैयार हो गया तो उन्होंने गाँव के पास ही खाली पड़ी एक छोटी-सी दुकान के मालिक से बात की।
"जब हमने उन्हें बताया कि हम ऐसा कुछ करने की सोच रहे हैं और उन्होंने हमारी मेहनत और लगन देखी तो उन्होंने हमें अपनी दुकान दे दी। फ़िलहाल तो वह हमसे किराया भी नहीं ले रहे क्योंकि उन्हें भी पता है कि हम बस अपने स्तर पर कुछ अच्छा करने की कोशिश कर रहे हैं," विपिन ने कहा।
ललित खाना बनाने में माहिर हैं लेकिन यहाँ उन्होंने पिज़्ज़ा की रेसिपी में बहुत-से बदलाव किए। उन्हें पता था कि उन्हें अपने गाँव और आस-पास के गाँव के लिए पिज़्ज़ा बनाना है इसलिए उन्होंने मैदे और आटे, दोनों को मिक्स करके डौघ के लिए इस्तेमाल किया। साथ ही, कुछ स्थानीय हर्ब्स डालकर अपनी सॉस तैयार की। वह कहते हैं, "हमने पिज़्ज़ा बनाने का ज़्यादातर सामान स्थानीय बाज़ार से ही लिया। यहाँ तक कि पहली बार हम लगभग 500 रुपये का ही सामान लाए और वह भी उधार पर। इससे हमने 10-12 पिज़्ज़ा बनाकर बेचे। इस तरह धीरे-धीरे हमारी शुरुआत हुई।"
शुरू हुआ वुड फायर ओवन पिज़्ज़ा
12 जून से दोनों भाईयों ने अपने आउटलेट की शुरुआत की और इसे नाम दिया, 'वुडफायर अवन पिज़्ज़ा' और उन्हें पहले दिन से ही लोगों से काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली। विपिन कहते हैं कि जब वह मिट्टी का ओवन बना रहे थे तो काफी लोगों ने नकारात्मक बातें भी की। "देखो, होटल में लाखों की कमाई करने वाले अब पिज़्ज़ा बेचने पर आ गए हैं। खुद को इतना बर्बाद कर लिया है क्या? इतने बुरे दिन आ गए, और भी न जाने क्या-क्या? लेकिन हमारा मुख्य उद्देश्य पैसा नहीं है बल्कि हम आत्म-निर्भरता की एक मिसाल अपने आस-पास के बच्चों को देना चाहते हैं कि अपने गाँव-शहर में रहकर भी अपने पैरों खुद को सशक्त किया जा सकता है," उन्होंने आगे कहा।
उनके आउटलेट को खुले अभी एक महिना भी नहीं हुआ है और उन्हें दिन के 80 से 100 ऑर्डर मिलते हैं। आउटलेट के 5 किमी की रेडियस में आने वाले सभी गाँव से उन्हें ऑर्डर मिल रहे हैं। डिलीवरी के लिए उन्होंने गाँव के ही एक और आदमी को रखा हुआ है, जिसे वह सैलरी देते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में वह सभी सुरक्षा के नियमों का पालन कर रहे हैं और दूसरों को भी यही करने के लिए प्रेरित करते हैं।
/hindi-betterindia/media/post_attachments/2020/07/04110725/97917578_2777775108989452_7390147216008019968_n.jpg)
"हम सब्ज़ियाँ भी गाँव से ही लेते हैं। हमने अपनी ज़मीन का थोड़ा-सा भाग एक श्रमिक के परिवार को दिया हुआ है। वह खुद सब्ज़ी उगाते हैं और फिर ठेला लगाते हैं। लेकिन लॉकडाउन में उनका जब यह काम बंद हो गया था तो हमने उनके घर का पूरा ध्यान रखा और राशन भिजवाते रहे। अब जब हमने यह काम शुरू किया तो हम उनसे ही सब्जियां खरीद रहे हैं," उन्होंने कहा।
इस तरह से अपने इस छोटे-से कदम से वह और दो लोगों को रोज़गार दे पा रहे हैं। वाकई, विपिन और ललित इस मुश्किल समय में आत्मनिर्भरता की मिसाल है। विपिन के मुताबिक, उनकी सफलता को देखकर अब गाँव के और भी युवा उनके पास आते हैं। उनसे सलाह मांगते हैं कि वे क्या कर सकते हैं? युवाओं की दिलचस्पी और हौसला देखकर, दोनों भाईयों ने तय किया है कि वह और भी आउटलेट खोलें ताकि दूसरे लोगों को रोज़गार मिल सके।
जल्द शुरू होगा एक और आउटलेट
कुछ दिन पहले उन्होंने एक और मिट्टी का ओवन तैयार किया है और जल्द ही, उनका दूसरा आउटलेट भी शुरू होगा।
अंत में दोनों भाई लोगों के लिए बस यही सन्देश देते हैं, "हमारे देश की संस्कृति हमें नए रास्ते खोजना सिखाती है। मुश्किलें चाहें कोई भी हों लेकिन आगे बढ़ने का रास्ता हम खोज ही लेते हैं। हमने भी खुद पर यह विश्वास था कि हम कुछ न कुछ तो कर ही लेंगे। नकारात्मक लोग हर जगह आपको मिलेंगे पर आपको इससे ऊपर उठाकर अपने लिए और अपनों के लिए काम करना होगा। हाथ पर हाथ रखकर बैठने से स्थिति काबू में नहीं आएगी। इसके लिए हम सबको प्रयास करने होंगे। तो आज ही अपने आइडिया पर काम करें और आत्मनिर्भर बनें!"
द बेटर इंडिया विपिन और ललित के हौसले को सलाम करता है। सही मायनों में ये दोनों भाई आत्मनिर्भर भारत की पहचान हैं। उम्मीद है इनकी कहानी देश के और भी युवाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी।
विपिन और ललित से 9816031093 पर संपर्क कर सकते हैं!
यह भी पढ़ें: #DIY: घर पर बनाएं गोबर की लकड़ी और पेड़ों को कटने से बचाएं!