साइंस या मनोरंजन : 250+ हैंड्स ऑन एक्टिविटी से विज्ञान सिखा रहे हैं सरकारी स्कूल के यह शिक्षक!

साइंस या मनोरंजन : 250+ हैंड्स ऑन एक्टिविटी से विज्ञान सिखा रहे हैं सरकारी स्कूल के यह शिक्षक!

"दुनिया में कुछ भी चमत्कार नहीं होता है और अगर कुछ चमत्कार जैसा हुआ है, तो वह सिर्फ़ तब तक चमत्कार है, जब तक कि उसके पीछे का रहस्य या वजह सामने नहीं आ जाती"- दर्शन लाल बवेजा

हरियाणा में यमुनानगर जिले के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल, कैंप में विज्ञान के अध्यापक के पद पर कार्यरत दर्शन लाल बवेजा को शिक्षक के साथ-साथ विज्ञान संचारक के रूप में भी जाना जाता है। 50 वर्षीय बवेजा को बचपन से ही विज्ञान में दिलचस्पी रही है। उन्होंने कभी भी विज्ञान को रटा नहीं, बल्कि विज्ञान के हर एक नियम और सिद्धांत को अलग-अलग तरह की गतिविधियों और प्रयोगों से समझा।

उनका कहना है कि हमारी दुनिया में जो कुछ भी होता है, उस सबके पीछे कोई न कोई लॉजिक है और इस लॉजिक को समझना ही विज्ञान है।

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दर्शन लाल बवेजा

"मैं अक्सर अपने आस-पास होने वाली घटनाओं के पीछे की वजह ढूंढा करता था। कभी नहाते समय पानी में जैसे ही मग तिरछा होता, तो पानी से बुलबुले उठने लगते या फिर क्यों जीवित व्यक्ति पानी में डूब जाता है और उसी इंसान का मृत शरीर पानी पर तैरता है? ये सब सवाल अक्सर हम सबके मन में आते हैं। मेरे भी मन में आते और जब मुझे विज्ञान से इन सब सवालों का जवाब मिलने लगा, तो मेरी दिलचस्पी इस विषय में बढ़ती ही गयी," बवेजा ने कहा।

अपने स्कूल के समय से ही विज्ञान के विषय में अव्वल रहे बवेजा ने बचपन से ही ठान लिया था कि उन्हें विज्ञान का ही शिक्षक बनना है और वह भी एक ऐसा शिक्षक, जो सिर्फ़ इस विषय को पढ़ाये नहीं बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी का इसे हिस्सा बना दे।

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बीएससी, बीएड करने के बाद साल 1994 में उन्हें विज्ञान शिक्षक के रूप में यमुनानगर के टोपराकला के राजकीय माध्यमिक स्कूल (अब वरिष्ठ स्कूल है) में पहली नियुक्ति मिली। यहाँ जब उन्होंने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया, तो उन्हें एहसास हुआ कि ज़्यादातर सभी विद्यार्थी साइंस के नाम से भी डरते हैं। इस विषय के प्रति बच्चों का डर देखकर उन्हें बहुत बुरा लगा।

बवेजा आगे बताते हैं, "जब भी मैं क्लास में आता, तो बच्चों के चेहरे पर चिंता और डर के भाव होते थे। अगर बच्चे किसी भी विषय से इतना डरेंगे तो उसमें सफ़ल कैसे होंगें? मेरे लिए पढ़ाना सिर्फ़ नौकरी नहीं है बल्कि तपस्या है। शिक्षक के हाथ में उसके छात्रों का पूरा भविष्य होता है और उसके साथ हम खिलवाड़ नहीं कर सकते। इसलिए मैंने निर्णय किया कि इस विषय को बच्चे सिर्फ़ पढ़ेंगे नहीं, बल्कि जियेंगें।"

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बच्चों को विभिन्न एक्टिविटी करवाते हुए

पिछले 25 सालों से दर्शन लाल निरंतर यही कर रहे हैं। अब तक जिन भी स्कूलों में उन्होंने पढ़ाया है, वहां के बच्चों ने विज्ञान विषय में अनेकों उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। उन्होंने बच्चों को इस विषय को सिर्फ़ किताबों से नहीं पढ़ाया, बल्कि हर एक चैप्टर के लिए उन्होंने ढ़ेरों गतिविधियाँ तैयार की,ताकि बच्चों को हर एक कॉन्सेप्ट न सिर्फ़ अच्छे से समझ में आये, पर उन्हें लॉजिक और अंधविश्वास के बीच का अंतर भी पता चले।

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"मैं जितनी भी गतिविधियाँ बच्चों से करवाता हूँ, उनके लिए कोई सामान हमें अलग से बाज़ार से जाकर खरीदने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। मेरी पूरी कोशिश है कि मैं उन्हें ज़ीरो लागत या फिर कम से कम लागत में सभी एक्टिविटी और प्रोजेक्ट करवा दूँ। एयर प्रेशर के सिद्धांत से संबंधित क्लास हो या फिर फूलों और पेड़ों पर, सभी के लिए बच्चों को क्लास से बाहर ले जाकर एक्टिविटी करवाई जाती है। और सिर्फ़ बच्चे ही नहीं बल्कि स्कूल के अन्य शिक्षक भी मेरी क्लास का हिस्सा बनते हैं। क्योंकि विज्ञान के सभी सिद्धांत हमारे आम जीवन का हिस्सा हैं और इनका ज्ञान होना बेहद ज़रूरी है, बवेजा ने कहा।

दर्शन लाल बवेजा ने अब तक 250 से भी ज़्यादा ऐसी गतिविधियाँ तैयार की हैं, जिनकी मदद से वे बच्चों के लिए विज्ञान को मनोरंजन का विषय बना देते हैं।

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अलग-अलग हैंड्स ऑन एक्टिविटी

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उनकी सोच और समझ को देखते हुए हरियाणा के शिक्षा विभाग ने अन्य स्कूलों के विज्ञान शिक्षकों को ट्रेनिंग देने का ज़िम्मा भी उन्हें दिया है। जिला प्रशिक्षण संस्थान में उन्होंने लगभग 280 शिक्षकों को ट्रेनिंग भी दी है।

"मैं शिक्षकों से सिर्फ़ एक ही बात कहता हूँ कि छात्रों को कामयाब बनाने के लिए, हम अध्यापकों को उनके स्तर पर जाकर उन्हें पढ़ाना होगा। हर एक बच्चा दूसरे से अलग है, उनके सोचने-समझने का स्तर भी अलग-अलग है। इसलिए यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हमारे छात्र खुद को कमतर महसूस न करके हर एक विषय को जिए," उन्होंने आगे कहा।

बवेजा का पूरा ध्यान बच्चों के पूर्ण विकास पर रहता है। वे उन्हें स्कूल की चारदीवारी के बाहर की समस्याओं पर गौर करने के लिए भी प्रेरित करते हैं। उनके मार्गदर्शन में इन सरकारी स्कूल के बच्चों ने अलग-अलग राज्य और केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में होने वाली विज्ञान प्रतियोगिताएं, सेमिनार, कॉन्फ्रेंस आदि में भाग लिया है। पिछले कई सालों से उनके बहुत से छात्र नेशनल लेवल पर आयोजित होने वाली 'चिल्ड्रेन साइंस कांग्रेस' में भी हिस्सा ले रहे हैं।

"अब तक मेरे 50 से भी ज़्यादा छात्रों को राज्य स्तर पर चिल्ड्रेन साइंटिस्ट, तो लगभग 25 छात्रों को राष्ट्रीय स्तर पर चिल्ड्रेन साइंटिस्ट होने का ख़िताब मिला है।"

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बच्चों द्वारा बनाये गये प्रोजेक्ट्स

बवेजा के लिखे हुए लेख बहुत-सी साइंस जर्नल्स में छपते हैं। स्कूल में भी बच्चों के लिए उन्होंने लगभग 27 साइंस जर्नल्स का सब्सक्रिप्शन लिया है, ताकि लाइब्रेरी में बच्चों के लिए ज्ञान के साधनों की कोई कमी न रहे। किसी भी प्रोजेक्ट और एक्टिविटी के लिए वे बच्चों को इंटरनेट से ज़्यादा किताबों से पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि यदि आज के बच्चे अच्छे पाठक होंगें, तभी अच्छे लेखक बनेंगें और यदि वे अच्छा लिख पायेंगें तो भविष्य में अच्छे वक्ता बन सकते हैं।

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दर्शन लाल बवेजा का लक्ष्य सिर्फ़ स्कूल में ही नहीं बल्कि आम लोगों में भी विज्ञान के प्रति एक समझ बनाना है। उन्होंने कई बार गांवों में फैलने वाली अफवाहों और अंधविश्वासों को भी दूर किया है।

वे बताते हैं, "एक बार यमुनानगर नहर में कुछ पत्थर पौंठा साहिब की तरफ से बहकर करनाल तक आ रहे थे। गाँव के लोगों में अफवाह उड़ गयी कि ये पत्थर राम जी के समय के पत्थर हैं, जो पानी पर तैर रहे हैं। उन्होंने इन पत्थरों को इकट्ठा करके, इन्हें पूजना शुरू कर दिया।"

जब बवेजा को इस घटना का पता चला, तो उन्होंने तुरंत इस बारे में जानकारी इकट्ठा की। उन्होंने पता लगाया कि ये पत्थर किस जगह से आ रहे हैं और क्या वजह है, जो ये पानी पर तैर रहे हैं।

"ढंग से इस बारे में पता लगाने पर सामने आया कि ये प्यूमिक स्टोन थे। प्यूमिक स्टोन ऐसे पत्थर होते हैं, जो ज्वालामुखी के समय बनते हैं और उनमें हवा फंस जाती है। हवा होने के कारण ये पत्थर आसानी से पानी पर तैर सकते हैं। लोगों को इकट्ठा करके हमने यह जानकारी दी और इस अफवाह का खंडन किया," उन्होंने आगे बताया।

ज़रूरत पड़ने पर बवेजा अपने छात्रों के साथ मिलकर गाँव-गाँव जाकर लोगों को ऐसे अंधविश्वासों के प्रति जागरूक करने के लिए रैली भी निकालते हैं।

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अलग-अलग विज्ञान मेलों में जाकर प्रदर्शनी लगाना

दर्शन लाल बवेजा को पढ़ाने की उनकी नवीन तकनीकों के लिए कई बार सम्मानित भी किया जा चूका है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब से लेकर गुजरात और राजस्थान तक उन्हें विज्ञान के विषयों पर लेक्चर और ट्रेनिंग देने के लिए बुलाया जाता है। इतना ही नहीं, राष्ट्रपति भवन में चलने वाले स्कूल में भी उन्होंने ट्रेनिंग दी है।

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"पिछले इतने सालों में शिक्षा व्यवस्था में भी बदलाव हुआ है। मेरे तरीकों को और फिर बच्चों की कामयाबी को देखते हुए, अब शिक्षा विभाग बच्चों की ज़रूरत के हिसाब से हर एक स्कूल में सुविधा उपलब्ध करवा रहा है। पर अब ज़रूरत है कि हमारे शिक्षकों में भी सुधार आये। मैं बार-बार यही कहूँगा कि विज्ञान के शिक्षक खुद को न सिर्फ़ शिक्षक के तौर पर बल्कि एक विज्ञान संचारक के तौर पर विकसित करें," द बेटर इंडिया से बात करते हुए बवेजा ने कहा।

आगे वे कहते हैं कि छटी क्लास में जिस तरह गणित के लिए बच्चों को ज्योमेट्री बॉक्स दिया जाता है। वैसे ही अगर बच्चों को एक साइंस बॉक्स भी दिया जाये, तो उनकी रूचि इस विषय में और भी बढ़ेगी। हर एक बच्चे के पास जैसे अपना कंपास, डी, स्केल आदि होता है, वैसे ही उनके पास लेंस या प्रिज़्म जैसी लगभग 40 ज़रूरी चीज़ें होनी चाहियें, जो कि छात्रों के लिए विज्ञान को बेहद आसान बना सकती हैं।publive-image

उन्होंने इस साइंस बॉक्स के लिए अपना एक मॉडल भी तैयार किया है। उनका प्रयास है कि शिक्षा विभाग उनके इस मॉडल पर गौर करे और कोई उचित फ़ैसला करे।

अंत में, वे केवल इतना सन्देश देते हैं, "बच्चे स्कूल में पढ़ने नहीं, बल्कि सीखने आते हैं। पढ़ना तो वे घर से ही शुरू कर देते हैं। पर हम शिक्षकों की ज़िम्मेदारी है कि हम उन्हें वे चीज़ें सिखाएं जो जिंदगी भर उनके काम आए। और यह तभी होगा जब शिक्षक खुद भी कुछ नया सीखने के लिए तत्पर होंगें।"

दर्शन लाल बवेजा द्वारा करवाई जाने वाली साइंस गतिविधियों के बारे में आप उनके ब्लॉग, 'क्यों और कैसे विज्ञान में,' 'हर रोज़ एक प्रश्न?' और फेसबुक पेज पर देख-पढ़ सकते हैं। दर्शन लाल बवेजा से संपर्क करने के लिए 7404241300 डायल करें!

संपादन - मानबी कटोच 


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