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जब तक जीवन में सफलता न मिले, लोग हर कोशिश करने वाले को पागल ही समझते हैं। बदलाव चाहे छोटा हो या बड़ा शुरुआत में लोग इसे अपनाने से डरते ही हैं। लेकिन इन मुश्किलों से बिना डरे, जो बदलाव को अपनाने की हिम्मत रखते हैं, वहीं आगे चलकर सफलता की नई परिभाषा लिखते हैं। साल 2019 में, जब उत्तर प्रदेश के चिरोड़ी गांव के सचिन बैंसला ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई के बाद खुद का स्टार्टअप करने का फैसला किया था, तब गांव के लोगों को स्टार्टअप का मतलब भी नहीं पता था।
लोगों को लगा कि वह कोई कपड़े या राशन की दुकान ही खोलेंगे। लेकिन जब उन्होंने बताया कि उनका स्टार्टअप, तकनीकी रूप से काम करेगा और बिना किसी दुकान के लोगों की मदद करेगा, तो उनके परिवार के साथ-साथ, सभी ने उन्हें पैसे बर्बाद करने का ताना मारा।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए सचिन बताते हैं, “परिवार के सभी सदस्यों ने मुझे स्टार्टअप के लिए पैसे देने से मना कर दिया। सभी को लगा मैं पैसे बर्बाद कर रहा हूँ।"
कभी शिक्षक बनना चाहते थे सचिन
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सचिन एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं और उनके पिता एक किसान हैं। उनके माता-पिता ज़्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं, न ही घर में पढ़ाई-लिखाई वाला कोई माहौल था। जब सचिन छोटे थे, तो वह एक टीचर बनने का सपना देखते थे। वह पढ़ाई में काफी अच्छे भी थे, दसवीं की परीक्षा के बाद उन्होंने बायोलॉजी विषय के साथ पढ़ाई करना शुरू किया।
वह बताते हैं, “जब मैं ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहा रहा था, तब मैंने महसूस किया कि मेरे पास आगे करियर बनाने के ज़्यादा विकल्प नहीं हैं। डॉक्टरी की पढ़ाई करने के पैसे मेरे पिता के पास नहीं थे, न ही अपनी खुद की लैब खोलने के लिए सुविधाएं थीं।"
सचिन को पैसे कमाने थे, ताकि वह अपने परिवार का सहारा बन सकें। इसलिए उन्होंने विज्ञान की पढ़ाई छोड़कर, आर्ट्स में ग्रेजुएशन करना शुरू किया। साथ-साथ वह अलग-अलग स्टार्टअप आइडियाज़ के बारे में भी सोचते रहते थे। उन्हें हमेशा से पिता की खेती से ज़्यादा टेक्नोलॉजी में रुचि थी। इसलिए उन्होंने सोच लिया था कि वह टेक्नोलॉजी से जुड़ा ही कोई स्टार्टअप करेंगे।
हारने के बाद भी नहीं हुए निराश
ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी होते होते, उन्होंने अपने गांव में एक ऐप बेस्ड सर्विस शुरू की थी। वह बताते हैं, "मेरा पहला स्टार्टअप अर्बन क्लैप के जैसे था, जो गांवों में ज़रूरी सुविधाएं मुहैया कराने का काम करता था। इसके लिए मुझे परिवार या किसी रिश्तेदार से कोई मदद नहीं मिली। मुझे गांव के कुछ दोस्तों ने शुरूआती निवेश करने में मदद की थी।"
क्योंकि, उस स्टार्टअप में सचिन को दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता था, इसलिए यह काम ज़्यादा नहीं चल पाया और उनके लाखों रुपयों का निवेश बर्बाद हो गया। सचिन बताते हैं कि वह आज तक उस स्टार्टअप के पैसों का भुगतान कर रहे हैं।
उस हार के बाद सचिन को पूरे गांव के लोगों से काफी भला-बुरा सुनना पड़ा। वह बताते हैं, “उस वक़्त अगर मैं हार मानकर निराश हो जाता, तो परिवार और गांव के लोगों के सामने कभी सिर उठाकर नहीं चल पाता। मुझे साबित करना था कि मैं स्टार्टअप कर सकता हूँ।"
इसके बाद, उन्होंने साल 2019 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करके ‘हमारा कैफ़े' नाम से एक और स्टार्टअप की शुरुआत की।
सचिन ने बताया, "गांव में अक्सर लोगों को सरकारी योजनाओं या नौकरी आदि के फॉर्म भरने में काफी दिक्क़तें आती हैं। कई बार तो तारीख़ निकल जाने के कारण लोग फॉर्म भर ही नहीं पाते थे। लोगों में इस तकनीकी ज्ञान के आभाव को मैंने अपना काम बनाया।"
दूसरे बच्चों को भी तकनीक सीखने के लिए प्रेरित करते हैं सचिन
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सचिन, ऑनलाइन ही लोगों का डाटा मंगवाकर काम करते थे। इस तरह उनका स्टार्टअप लोगों के काफी काम आने लगा और समय के साथ ‘हमारा कैफ़े’ काफी मशहूर हो गया। इसी दौरान सचिन को उनके मामा ने अपनी दवाई की दुकान में काम करने के लिए बुलाया। सचिन बताते हैं, "वहां करीबन डेढ़ साल काम करने के दौरान मुझे एक और स्टार्टअप आइडिया आया कि क्यों न कोई ऐसा काम किया जाए, जिससे शहर में मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाएं गांव के घर-घर तक पहुंचाई जाएं।"
इस तरह से उन्होंने अपने दोनों बिज़नेस को रजिस्टर करवाया और गांव में रहकर ही काम करने लगे। सचिन कहते हैं कि कई लोगों को समझ ही नहीं आता था कि वह काम क्या कर रहे हैं? लेकिन जब उनके काम से लोगों को मदद मिलने लगी, तब लोग उनपर भरोसा भी करने लगे।
अब सचिन खुद के साथ-साथ गांव के दूसरे युवाओं को भी तकनीक से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके लिए उन्होंने एक संस्था बनाकर युवाओं को तकनीक और स्किल ट्रेनिंग देना शुरू किया है।
अपने फाउंडेशन 'सब होंगे शिक्षित' के ज़रिए, अब वह गांव के बच्चों को ऑनलाइन स्किल ट्रेनिंग देने का काम कर रहे हैं। इस तरह वह अब तक 30 बच्चों को किसी न किसी स्किल में माहिर करके आत्मनिर्भर बना चुके हैं।
वहीं उनके दोनों स्टार्टअप के ज़रिए भी गांव के लोगों को काफी मदद मिल रही है। सबसे अच्छी बात यह है कि उन्होंने यह सब कुछ खुद के दम पर शुरू किया, जिसमें उन्होंने निवेश से लेकर सारे ज़रूरी इंतेजाम खुद ही किए हैं।
गांव की पहचान है यह स्टार्टअप बॉय
सचिन के इन प्रयासों को पहचान तब मिली, जब उन्हें अपने जीवन के संघर्ष और सफलता की कहानी को एक टीवी शो में बताने का मौका मिला। सचिन कहते हैं, "गांव के कई लोगों को काफी समय तक यही लगता था कि मैं कोई यूट्यूब वीडियोज़ बना रहा हूँ। इसलिए मशहूर हो गया हूँ।"
लेकिन, उनके बेहतरीन प्रयासों को सम्मानित करते हुए इसी साल, उनके गांव के प्रधान उधम सिंह ने गांव के मुख्य गेट पर सचिन का बोर्ड लगवाया। स्टार्टअप बॉय के नाम से सचिन अब अपने गांव की पहचान बन गए हैं।
आज उनके गांव के कई लड़के अपने आइडियाज़ लेकर सचिन के पास जाते हैं और सचिन पूरी कोशिश करते हैं कि युवाओं के बेहतरीन आइडियाज़ को बिज़नेस में बदलने में मदद कर सकें। इसके साथ ही सचिन कई गावों में एक मोटिवेशनल स्पीकर बनकर युवाओं को प्रेरित करने का काम भी करते हैं।
उनकी कहानी हमें सिखाती है कि अगर इंसान कोशिश करना न छोड़े और खुद पर भरोसा रखे, तो बिना किसी मदद के भी सफलता हासिल कर सकता है।
संपादनः अर्चना दुबे
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