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दिव्यांगजनों के जीवन की समस्याओं को लेकर हमारे समाज में न जाने कितने विमर्श हुए, लेकिन उनकी स्थिति में कोई खास बदलाव आया है, कहना मुश्किल है। सामाजिक जीवन में हम जिन्हें दिव्यांग या विकलांग कहते हैं, उनके प्रति उपेक्षा और घृणा से मिला-जुला दयाभाव आज भी दिखाई पड़ता है।
हम अक्सर भूल जाते हैं कि सूरदास की बंद आंखों ने हमें कितना कुछ पढ़ने के लिए दिया है। हम मिल्टन को भूल जाते हैं जिन्होंने ‘पैराडाइज लॉस्ट’ की रचना की थी।
इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण बिखरे हुए हैं, फिर भी हमारी धारणा दिव्यांगजनों के प्रति अत्यंत उपेक्षापूर्ण ही रही है। उनकी आकृति तथा अंग-संचालन का उपहास आज भी आम बात है।
आज हमें उनकी चिंताओं को समझने की जरूरत है। हमें समझना होगा कि शरीर से विकलांग हो जाने से, जिंदगी थम नहीं जाती है।
आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अपने आँखों की रोशनी लगभग छिन जाने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी, और जिंदगी में एक नए जुनून के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया।
यह कहानी है महाराष्ट्र के पुणे के रहने वाले 34 वर्षीय गोपाल डागोर की। गोपाल के आँखों का रेटिना बचपन से ही खराब था, लेकिन डॉक्टरों को लगा कि आगे चलकर यह ठीक हो जाएगा। लेकिन साल 2016 में उनकी 90% दृष्टि बाधित हो गई। इस घटना से गोपाल की नौकरी चली गई और उनका जीवन काफी कठिन हो गया।
हँसी-खुशी बीता रहे थे जीवन
गोपाल ने द बेटर इंडिया को बताया, “मेरी आँखें बचपन से ही खराब थीं, लेकिन पहले ज्यादा दिक्कत नहीं होती थी। 1998 में, लोनावला के एक स्कूल से 12वीं पास करने के बाद मैं छोटा-मोटा जॉब करता था। आगे चलकर मुझे बीवीजी इंडिया के साथ काम करने का मौका मिला। इस तरह मैं अपने परिवार के साथ हँसी-खुशी जीवन बीता रहा था।”
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नहीं हारे हिम्मत
गोपाल बताते हैं, “मेरी आँखों का इलाज साल 1995 से चल रहा है। मैं देश के कई बड़े डॉक्टरों से इलाज करा चुका हूँ। इसमें मेरे अंकल ने काफी मदद की, लेकिन बाद में खर्च उठाना मुश्किल हो गया और साल 2012 के बाद से मेरी आँखों में दिक्कत बढ़ने लगी और 2016 में लगभग रोशनी चली गई।”
इस घटना के बाद जिंदगी हर मोड़ पर गोपाल का इम्तहान लेने लगी। वह बताते हैं, “मैं उस वक्त बीवीजी इंडिया में बतौर ऑपरेशन मैनेजर काम कर रहा था, लेकिन इस घटना के बाद मुझे अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी और मैं महीनों तक घर पर बैठा रहा। लेकिन, ऐसा कब तक चलता। मेरे दो बच्चे हैं। मुझे उनकी चिंता सता रही थी। इसलिए मैंने कुछ अपना शुरू करने का फैसला किया।”
इसके बाद, गोपाल ने कुछ कंपनियों में बात कर लोगों को नौकरी दिलाने का काम शुरू किया।
गोपाल बताते हैं, “यह मेरे लिए बेहद मुश्किल वक्त था और मेरे पास कमाई का कोई जरिया नहीं था। इसलिए मैंने अपने 10 वर्षों के इंडस्ट्रियल एक्सपीरियंस का सही इस्तेमाल करने का फैसला किया और जरूरतमंदों को मामूली शुल्क पर नौकरी दिलाने लगा।”
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वह बताते हैं, “मैं आगे चलकर लोगों को इंटरव्यू क्रैक करने की ट्रेनिंग भी देने लगा। मेरी इस लड़ाई में, मेरी पत्नी भी पूरा साथ देतीं। उन्होंने घर-घर जाकर साफ-सफाई का काम शुरू कर दिया। इसके अलावा, वह समय मिलने पर हैंडमेड हैंगिंग क्राफ्ट भी बनातीं, ताकि घर अच्छे से चल सके।”
शुरू किया हाउस क्लिनिंग बिजनेस
अपने रिक्रूटमेंट सर्विस को लेकर गोपाल कहते हैं कि उनके पास फिलहाल कोई ऑफिस नहीं है और वह अखबारों में विज्ञापन जारी कर लोगों को भर्ती के बारे में जानकारी देते हैं। वह उम्मीदवारों से किसी रेस्टोरेंट में मिलते हैं, जिस वजह से उम्मीदवारों को उन पर भरोसा नहीं होता और वह अपने कदम वापस खींच लेते हैं।
गोपाल बताते हैं, “मेरे ऊपर अभी तक बहुत कम लोगों ने भरोसा जताया है और अभी तक 7-8 लोगों को नौकरी दिलवा चुका हूँ। लेकिन, इससे घर चलाना मुश्किल है। इसलिए मैंने 2 साल पहले हाउस क्लिनिंग का काम शुरू किया।”
इसके तहत गोपाल, फिलहाल छोटे पैमाने पर हाउस क्लिनिंग का काम करते हैं, जिससे उन्हें महीने में करीब 10 हजार रुपए की कमाई होती है। लेकिन, घर की जरूरतें इससे कहीं ज्यादा है। इसलिए वह अपने इस बिजनेस को आगे बढ़ाने की योजना बना रहे हैं।
गोपाल बताते हैं, “हाउस क्लीनिंग के लिए जल्द ही, अपने वेंचर जीके मेंटेनेंस की शुरूआत करने वाला हूँ। इसके तहत फ्लैट से लेकर सोसायटी तक की, साफ-सफाई का ध्यान रखूँगा।”
लोगों से करते हैं अपील
अपने इस बिजनेस को शुरू करने के लिए गोपाल को कई मशीनों को खरीदने की जरूरत है और वर्तमान आर्थिक हालातों को देखते हुए उनके लिए इतना संसाधन जुटाना आसान नहीं है।
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गोपाल कहते हैं, “मैं अपनी जिंदगी में फिर से आगे बढ़ना चाहता हूँ। मेरे पास आँख और पैसा नहीं है, लेकिन मेरे पास टैलेंट और स्किल है। बहुत लोगों को यह लगता है कि आँख नहीं है, तो मैं कुछ नहीं कर सकता, लेकिन मैं जिंदगी में आगे बढ़ते हुए कुछ करना चाहता हूँ।”
जीवन में लगातार संघर्ष कर रहे गोपाल को हम सबकी मदद की जरूरत है। यदि आप गोपाल की मदद करना चाहते हैं तो उनसे 7038053544 पर संपर्क कर सकते हैं।
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संपादन: जी. एन. झा
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