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Home प्रेरक बिज़नेस 80 प्रतिशत दिव्यांग हैं लेकिन किसी पर निर्भर नहीं, खुद स्कूटर से जाकर बेचती हैं अचार-पापड़

80 प्रतिशत दिव्यांग हैं लेकिन किसी पर निर्भर नहीं, खुद स्कूटर से जाकर बेचती हैं अचार-पापड़

गुजरात की चेतनाबेन पटेल भले ही 80 प्रतिशत दिव्यांग हैं लेकिन, वह किसी पर निर्भर नहीं हैं। उन्हें चलने में कठिनाई है, इसके बावजूद वह अपने घर पर अचार का बिजनेस करतीं हैं और खुद ही ग्राहकों तक इसे पहुंचातीं हैं।

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Chetna Patel Pickle Papad Business

गुजरात की मेहसाणा में रहने वाली चेतनाबेन पटेल चार साल की उम्र में ही पोलियो की शिकार हो गईं और उनके लिए दो कदम भी चलना मुश्किल हो गया। उनकी उम्र के सभी बच्चे चलकर स्कूल जाते थे, तब नन्हीं चेतना हाथ और पैर दोनों के सहारे एक किलोमीटर चलकर पढ़ने जाती थीं। छोटी सी उम्र में ही उन्हें समझ में आ गया था कि आगे उनके लिए बहुत सारी मुश्किलें खड़ीं हैं। लेकिन उन्होंने भी कमर कस ली थी। उन्हें यकीन था कि अच्छी शिक्षा के साथ उनका भविष्य जरूर बेहतर होगा।  

आठवीं तक इसी तरह पढ़ने के बाद उन्हें तीन पहिये वाली साइकिल मिली और स्कूल जाना थोड़ा आसान हो गया। उन्होंने इसी साइकिल की मदद से एमए तक की पढ़ाई पूरी की। चेतना को लगा कि पढ़ने के बाद नौकरी मिलना आसान होगा, लेकिन दिव्यांगता के कारण उन्हें कोई नौकरी देने को तैयार नहीं होता था। 

इसके बाद, उन्होंने एक NGO से कंप्यूटर का कोर्स किया। साल 2009 में उसी संस्था में उन्हें कंप्यूटर ऑपरेटर की नौकरी भी मिली। चेतनाबेन को लगा कि उनके जीवन की चुनौतियां ख़त्म हो गई हैं। उन्होंने नौकरी से कमाए पैसों से अपने लिए एक स्कूटी भी खरीदी।  

Chetna Patel using scooty for pickle delivery for her achar papad business

लेकिन कुछ निजी कारणों के चलते साल 2017 में उन्हें मेहसाणा से अपने गांव तरंगा आना पड़ा। उनकी नौकरी भी चली गई। यहां उन्हें बड़ी कोशिशों के बाद भी जब कोई काम नहीं मिला, तब उन्होंने अपनी भाभी की मदद से अचार का बिज़नेस शुरू करने का फैसला किया। 

उन्होंने लॉकडाउन के समय तक़रीबन दो किलो आम का अचार बनाकर आस-पास के गांव में फ्री में हीं बांट दिया। लोगों को उनके अचार पसंद आए। कुछ लोगों ने उन्हें फोन पर ही ऑर्डर दिए और इस तरह उनका बिजनेस चल पड़ा।

धीरे-धीरे वह फ़ोन पर ऑर्डर लेकर स्कूटी पर डिलीवरी करने जाने लगीं। आज चेतनाबेन आचार के साथ-साथ पापड़ के भी ऑर्डर्स लेती हैं। उन्हें फ़ोन पर आसपास के शहरों से भी ऑर्डर मिलते हैं, जिन्हें वह कूरियर की मदद से भिजवाती हैं।  

भले ही 43 वर्षीया चेतनाबेन 80 प्रतिशत दिव्यांग हैं, लेकिन उनके हौसले किसी चट्टान से कम नहीं। उनके इस जज़्बे को द बेटर इंडिया का सलाम!

संपादन- जी एन झा

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