Army Hero: 27 साल पहले आतंकवादी मुठभेड़ में खाई सीने पर गोलियाँ, आज बदल दी गाँव की तस्वीर

1994 में, मणिपुर के सुदूरवर्ती गाँव लांगदाईपबरम में एक आतंकवादी मुठभेड़ में कप्तान डीपीके पिल्लई ने जांबाजी और नेकदिली का परिचय दिया, जब वह मौत के बिल्कुल करीब थे। उनकी वजह से दो मासूम बच्चों की जान बची। आज 27 वर्षों के बाद, वह उस गाँव के लोगों को एक नया जीवन देने में सफल हो रहे हैं।

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25 जनवरी 1994 को मणिपुर के सुदूरवर्ती गाँव लांगदाईपबरम में हथियारों से लैस उग्रवादी, हमले की फिराक में थे। लेकिन, भारतीय सेना के बहादुर जवान (Army Hero) कप्तान डीपीके पिल्लई ने अपनी जान पर खेल कर, उग्रवादियों के मंसूबों को नाकाम कर दिया।

वह गाँव में खुफिया जानकारियों के आधार पर एक गश्त टीम की अगुवाई कर रहे थे। उन्हें सूचना मिली कि विद्रोही गुट 'नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड' (इसाक-मुइवा) के चार आतंकवादी वहाँ छिपे हुए हैं। 

इन आतंकवादियों की योजना एक पुल और कम्यूनिकेशन टॉवर को उड़ाने की थी। जिससे भारतीय सेना की गतिविधियां बाधित हो जाये। लेकिन पिल्लई ने उन्हें ऐसा कोई मौका नहीं दिया।

गाँव के प्रधान अतानबो, करीब 27 साल पहले हुई घटना को आज तक नहीं भूले हैं।

वह कहते हैं, “जब एनएससीएन (IM) के चार हथियारबंद आतंकवादी गाँव में एक दिन पहले आए तो मैंने उनसे पास के जंगलों में छिपने की गुहार लगाई। मुझे पता था कि भारतीय सेना उनका पीछा करते हुए यहाँ जरूर आयेगी। हमारा गाँव सेना के रडार पर था क्योंकि यहाँ के सात लोग इसी समूह के सदस्य थे।”

वह बताते हैं, “आतंकवादियों ने हमारी एक न सुनी और रात में गाँव के आठ बच्चों को सेना की निगरानी के लिए लगा दिया। फिर वे एक घर में घुस गए। लेकिन, भारतीय सेना की टीम गाँव पहुँची और सभी लड़कों को पकड़ लिया। फिर कप्तान पिल्लई ने मुझसे पूछा कि ये बच्चे रात में यहाँ क्या कर रहे थे?”

डर के मारे अतानबो ने कह दिया, अपने माता-पिता के सोने के बाद, ये लड़के गाँव के किनारे अपनी प्रेमिकाओं से मिलने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन, कुछ ही पल के बाद, सेना को गाँव में छिपे आतंकवादियों के बारे में पता चल गया और इसे पूरी तरह से घेर लिया।

इस विषय में 2017 में, कर्नल के पद से रिटायर होने वाले पिल्लई कहते हैं, “हमें ‘एजुकेशन कॉर्प’ में काम करने वाले हवलदार मदन ने एक घर को लेकर सतर्क किया। उन्होंने हमें वहाँ आने के लिए इशारा किया और हमने घर को चारों ओर से घेर लिया।”

घर के मालिक को कई बार पुकारने के बावजूद, किसी ने दरवाजा नहीं खोला। इसके बाद पिल्लई ने बलपूर्वक घर में घुसने का फैसला किया।

वह कहते हैं, “घर में घुसने पर आतंकवादियों ने अपनी एके-47 से गोलियाँ दागनी शुरू कर दी। मेरे सीने और बाँह में गोलियाँ लगीं। इसके अलावा, मेरे दाहिने पैर पर ग्रेनेड ब्लास्ट हो गया। यह मुठभेड़ करीब डेढ़ घंटे तक चली। अंततः जब हमने रॉकेट लॉन्चर से घर उड़ाने की धमकी दी तो आतंकवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया।”

वहाँ छिपे हुए चार आतंकवादियों में से एक भाग निकला था। जबकि, उनका कमांडर मौके पर ही मारा गया। शेष दो ने आत्मसर्मपण कर दिया।

जब मुठभेड़ खत्म हुई तो घर से दो घायल बच्चे बाहर निकले। कैप्टन पिल्लई को पता नहीं था कि घर के अंदर बच्चे हैं। एक छह साल का लड़का था, जिसे पैर में गोली लगी थी और उसकी 13 साल की बहन को पेट में गोली लगी थी।

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मुठभेड़ में घायल कप्तान पिल्लई

इसके बाद, पिल्लई को इलाज के लिए हेलिकॉप्टर से ले जाने की तैयारी थी। लेकिन उन्होंने अपनी जगह इन दो बच्चों को हेलिकॉप्टर से ले जाने पर जोर दिया। 

वह कहते हैं, “हेलिकॉप्टर पायलट मेरे दोस्त थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं मदर टेरेसा बनने की कोशिश क्यों कर रहा हूँ और अगर मुझे कुछ हुआ तो वह मेरी माँ को क्या जवाब देंगे? मैंने जवाब दिया कि मेरी माँ को गर्व होगा कि मैंने दो बच्चों की जान बचाई।”

अतानबो के अनुसार, गाँव वालों को डर था कि सैनिक उनके गाँव को जला देंगे। लेकिन सेना ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया और गिरफ्तार बच्चों को भी छोड़ दिया। कर्नल पिल्लई कहते हैं, “हथियार हमारे दुश्मनों को खत्म करने के लिए हैं, अपनों को नहीं।”

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घायल दिन्गामंग पमेई

पिल्लई, ऐसी जांबाजी और नेकदिली का परिचय उस वक्त भी दे रहे थे, जब वह मौत के बिल्कुल नजदीक थे। वह कहते हैं, “मैं मौत के बहुत करीब था। लेकिन ग्रामीणों की दुआ से मुझे एक नया जीवन मिला।” 

1995 में पिल्लई को उनकी इस बहादुरी के लिए शौर्य चक्र से भी नवाजा गया।

लेकिन केरल के कन्नूर शहर के इस नायक का लांगदाईपबरम गाँव से जुड़ाव खत्म नहीं हुआ। 

इंडियन आर्मी के ADGPI (एडिशनल डायरेक्टरेट जनरल ऑफ़ पब्लिक इनफार्मेशन) पेज, 2015 के एक फेसबुक पोस्ट के अनुसार, “करीब 16 साल बाद, 2010 में ब्रिगेड कमांडर, ब्रिगेडियर एन जे जॉर्ज, जिन्हें इस घटना के बारे में पता था, ने इस ऑपरेशन के बारे में पूछताछ करने के लिए गाँव में एक टीम भेजी। इससे ग्रामीणों को पता चला कि कप्तान पिल्लई अभी जीवित हैं। इसके बाद, गाँव वालों ने उनसे मिलने की माँग की। अब तक पिल्लई एक कप्तान से ‘कर्नल’ बन चुके थे और आर्मी द्वारा ‘राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय’ में कार्य करने के लिए उनका चयन हो चुका था।”

पिल्लई कहते हैं, “मुझे वह दिन याद है, जब मेरे अच्छे दोस्त मेजर जनरल (रिटायर्ड) जॉर्ज ने मुझे नई दिल्ली में फोन किया था। उन्होंने मुझे बताया कि गाँव के लोग मुझे अब भी याद करते हैं और उन्होंने मेरा एक स्मारक भी बनवाया है। क्योंकि उन्होंने सोचा कि उस घटना के बाद, मेरी मौत हो गई। जब अतानबो को पता चला कि मैं जीवित हूँ तो वह मुझसे मिलना चाहते थे। 8 मार्च 2010 को मैं वापस उस गाँव में गया।”

इसके बाद, जब वह गाँव पहुँचे तो लोगों ने उनका जोरदार स्वागत किया। यह एक बहुत ही भावुक पल था। इस दौरान वह दिन्गामंग पमेई और उनकी बड़ी बहन मसलियु थईमई से भी मिले। ये वही दोनों भाई-बहन थे, जिन्हें पिल्लई ने उस मुठभेड़ में बचाया था।

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वह कहते हैं, “मैं उन बच्चों के माता-पिता से मिला। यह बहुत भावुक कर देने वाला समय था। जब मैं उनकी माँ से मिला तो उन्होंने मुझे गले लगा लिया। हालांकि मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कह रही हैं, लेकिन मैंने उनके स्नेह को महसूस किया।”

इस यात्रा के दौरान, ग्रामीणों ने उन्हें यहाँ घर बनाने के लिए 100 एकड़ जमीन उपहार के रूप में देने का फैसला किया। लेकिन कर्नल पिल्लई ने, इस उपहार को काफी विनम्रता से मना कर दिया और कहा कि उन्हें सिर्फ लोगों के दिलों में जगह चाहिये।

इसके बाद पिल्लई ने इस इलाके का कई बार दौरा किया और यहाँ की स्थिति को देखकर, उन्होंने गाँव की तकदीर को बदलने का फैसला किया।

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2010 में उन बच्चों से मिलते कर्नल पिल्लई, जिन्हें उन्होंने मुठभेड़ में बचाया था

उनके प्रयासों के कारण ‘बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन’ के जरिये साल 2012 में, यहाँ एक सड़क के निर्माण के लिए नीव पत्थर रखा गया। साथ ही, 2016 में केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय द्वारा तामेंगलॉन्ग को नागालैंड के पेरेन से जोड़ने के लिए 100 किलोमीटर लंबे एक स्पेशल हाइवे के निर्माण के लिये मंजूरी दे दी गई।

इतना ही नहीं, उनके प्रयासों से यहाँ के 25 छात्रों को 2017 से बेंगलुरु स्थित ‘नारायण हृदयालय’ में नर्सिंग की ट्रेनिंग भी मिल रही है। 

स्कूल भी कर रहे विकसित

अपने इस प्रयास में पिल्लई को अपने दोस्त बालगोपाल चंद्रशेखर से भी काफी मदद मिल रही है। बालगोपाल 1977 बैच के पूर्व आईएएस अधिकारी हैं और फिलहाल ‘टेरुमो पेनपोल लिमिटेड’ के मालिक हैं, जो दुनिया की सबसे बड़ी बायोमेडिकल मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में से एक है। 

दोनों मिलकर लांगदाईपबरम गाँव में बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए एक स्कूल और हॉस्टल का निर्माण कर रहे हैं ताकि आस-पास के बच्चों को भी बेहतर मौका मिल सके।

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इसके साथ ही, उन्होंने गाँव में सौर ऊर्जा की भी व्यवस्था की। यहाँ संतरे की खेती बड़े पैमाने पर होती है और उनका मानना है कि इससे लोगों को ‘कोल्ड स्टोरेज इंफ्रास्ट्रक्चर’ विकसित करने में मदद मिल सकती है। जिससे लोगों की आमदनी को बढ़ावा मिलेगा।

दोस्त और पिता के समान

इम्फाल के निजी बैंक में काम करने वाले 33 वर्षीय दिन्गामंग पमेई, जिनकी हाल ही में शादी हुई है, कहते हैं, “पिल्लई अंकल मेरे दोस्त, मेंटर तथा मेरे परिवार के सदस्य की तरह हैं। वह हमसे मिलने के लिए 2010 में आये थे। हालांकि, मुझे 1994 की पूरी घटना याद नहीं है क्योंकि उस वक्त मैं बहुत छोटा था। मुझे सिर्फ इतना याद है कि मैं घायल होकर फर्श पर पड़ा था और मुझे हेलीकॉप्टर से अस्पताल ले जाया जा रहा था और फिर मेरी आँखें आरआईएमएस (RIMS) अस्पताल में खुलीं।”

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वह आगे कहते हैं, “उन्होंने मेरी पढ़ाई के लिए काफी आर्थिक मदद की। मैं जो भी करना चाहता था, उन्होंने ठीक वैसे ही मुझे मदद की जैसे एक पिता अपने बच्चों को मदद करता है।”

अंत में पिल्लई कहते हैं, “मैं उन लोगों का आभारी हूँ, जिन्होंने गाँव के प्रति इन प्रयासों में मेरी मदद की। सिर्फ एक चीज जो हमें एक सूत्र में पिरोती है, वह है मानवता। दुनिया का कोई भी हथियार लोगों को वश में नहीं कर सकता है। यदि आप खुशी से उन्हें प्रेरित करते हैं तो लोग शांति और प्रेम को स्वीकार करेंगे। हमें उस प्रेम और विश्वास पर खरा उतरने की कला सीखनी चाहिये। मेरे लिए सबसे अधिक यही मायने रखता है कि ये ग्रामीण मुझे याद करेंगे कि मैंने उनके जीवन को कैसे छुआ है।”

मूल लेख – रिनचेन नोरबू वांगचुक  
संपादन- जी एन झा

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