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दूर दिखाई देती पहाड़ियां और सामने कल-कल कर बहती नदी, चारों ओर हरियाली से पटे खूबसूरत रास्ते और उन रास्तों की भूल-भुलैया के बीच बसा फीबीज़ फ़ार्म। दरवाज़े से अंदर जाते ही आप देखते हैं एक खूबसूरत तालाब और हरे-भरे पेड़ों के बीच पड़ी चारपाइयां। पैरों के नीचे गोबर से लीपी गई ज़मीन और चिड़ियों की चहचहाट। है न बिलकुल एक खूबसूरत दृश्य! लेकिन ये जगह किसी इंसान के लिए नहीं, बल्कि बनाई गई है रेस्क्यूड जानवरों के लिए। मालिक के घर से निकाले गए, रास्तों पर पत्थर खाते, भूखे-प्यासे और इंसानों की बेरूखी के शिकार बेज़ुबान पालतू जानवरों के लिए ये घर किसी जन्नत से कम नहीं है।
यही वजह है कि इस फार्म का नाम 'फीबीज़ ह्यूमन फ्रेंडली एनीमल फ़ार्म' रखा गया है।
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इस खूबसूरत जन्नत के रचयिता हैं नवी मुंबई के पाम बीच रोड इलाके के रहनेवाले मनूर सचदेव, जो एक एनीमल बिहेवियरिस्ट हैं और सही मायनों में एनीमल लवर भी।
मुंबई के बाहरी इलाके में प्रकृति की गोद में बसा यह फ़ार्म पूरी तरह से ऑर्गनिक तरीकों से चलाया जाता है। यह फार्म किसी एनजीओ के अंतर्गत नहीं बनाया गया है, बल्कि इसे खुद मनूर अकेले संभालते हैं। भरपूर गर्मियों में भी यहां पेड़ों की छांव मिलेगी और प्यास बुझाने के लिए कोल्ड ड्रिंक्स की जगह मिलेगा ठंडा ऑर्गेनिक कोकम और बेल का शरबत या ठंडी छांछ। शहर की भीड़भाड़ से दूर जब लोग यहां जाते हैं, तो अपना मन यहीं छोड़ जाते हैं। लेकिन जिनके लिए ये फ़ार्म बनाया गया है, वो हैं प्यारे और खूबसूरत जानवर, जिनकी गिनती अब 200 से भी ज़्यादा हो चली है।
इस फार्म में आपको पेडिग्रिड कुत्तों के साथ-साथ देसी कुत्तों की भी बड़ी संख्या मिलेगी। साथ ही मिलेंगी खूबसूरत बिल्लियां, बकरे, कछुए, गधे, गायें, बैल, मछलियां, बत्तखें, मुर्गियां, घोड़े और न जाने क्या-क्या। लेकिन चौंकानेवाली बात यह है कि यहां मौजूद हर एक जानवर को किसी क्रूएल्टी यानी कि इंसानी अत्याचार से बचाकर लाया गया है। यहां इन प्यारे जानवरों को किसी बात की न तो कमी है और ना ही किसी बात का गम। क्योंकि ये सभी मनूर की निगरानी में महफूज़ रहते हैं।
दरअसल, मनूर ने अपने चहेते और प्यारे कुत्ते फिबी की याद में इस फार्म को बनाया है। मनूर और उनकी पत्नी फीबी को तब घर लाए थे, जब वो एक छोटी सी बच्ची थी। एक प्यारी सी फीमेल डॉग, जिसने जानवरों के प्रति मनूर का नज़रिया बदल दिया और उन्हें जानवरों से प्यार करना सिखाया।
मनूर कहते हैं, "फीबी के जाने के बाद मैं बेहद दुखी था, लेकिन तब तक जानवरों की ज़रूरतों का ध्यान रखने की और उनसे प्यार करने की वजह थी मेरे पास। फीबी आसपास रहनेवाले जानवरों से बेहद प्यार करती थी और इसलिए मैंने उसका प्यार इस फ़ार्म के ज़रिये उन ज़रूरतमंद जानवरों को देने का फैसला किया। धीरे-धीरे मैंने जानवरों को यहां पनाह दी और आज हमारा परिवार बेहद बड़ा हो चुका है।"
यहां मौजूद जानवरों में कई जानवर बेहद बीमार अवस्था में यहां आते हैं और प्यार से भरे इस वातावरण में ठीक होते हैं।
मनूर कहते हैं, "जानवरों में तो फिर भी दिल होता है, लेकिन इंसान ही इंसानियत भूलता जा रहा है। हमारे फ़ार्म में मौजूद बकरों और गायों को बूचड़खाने से बचाया गया है। और रही कुत्ते और बिल्लियों की बात, तो इंसानों की क्रूरता की हद देखी है हमने। कई क्रूर ब्रीडर्स से पेडिग्रिड कुत्तों को बचाया गया है। अब तो इंसान को ही इंसान नहीं कहा जा सकता।"
ये बात आप खुद देख सकते हैं, जब यहां मौजूद रेस्क्यूड जानवरों के एक्सीडेंट से टूटे हुए पैर देखते हैं या पत्थर की मार से ज़ख्म देखते हैं।
इस फ़ार्म पर आप अपने परिवार के साथ आकर इन जानवरों के साथ रह सकते हैं और जाते हुए इन्हीं में से एक को अपने परिवार का हिस्सा बनाकर ले जा सकते हैं।
यहां छुट्टियां मनाने के लिए आनेवाले लोगों की वजह से इस फ़ार्म का खर्च चलता है। मनूर का मनना है कि जानवरों को इंसानी दया की नहीं, बल्कि इस धरती पर रहने का हक़ मिलना चाहिए। ये जगह उनकी भी उतनी ही है, जितनी हमारी। मनूर इस फ़ार्म की देखभाल के लिए बेहद मेहनत करते हैं और इसलिए वे जानवरों को लेकर यहां आनेवाले लोगों का रवैया बदलने की कोशिश करते हैं। देश में जानवरों के प्रति बढ़ती क्रूरता को कम करने के लिए वे यहां आनेवाले लोगों से बात कर उनकी सोच बदलने की कोशिश करते हैं। वे चाहते हैं कि फीबीज़ फ़ार्म पर जो भी आए, वो जानवरों के प्रति मन में की भावना लेकर जाए। अपनी मेहनत के ज़रिये अब वे इस काम में सफल होते नज़र भी आ रहे हैं।
इस फ़ार्म में मौजूद जानवरों को प्यार भरा वातावरण देने का प्रण है मनूर का और उन का मनना है, "हर व्यक्ति एक जैसा नहीं होता और ईश्वर की कृपा से आज भी कुछ लोग हैं, जो इन बेज़ुबानों को अपने घर का हिस्सा बनाना चाहते हैं। यही वजह है कि हमारे इन प्यारे बच्चों को एनीमल लवर्स अडॉप्ट यानी कि गोद ले सकते हैं। लेकिन इसके लिए मैं खुद उनके घर जाकर उनसे पूछताछ करता हूँ और सारी प्रक्रिया के बाद ही उन्हें एडॉप्शन के लिए देता हूँ। ये बच्चे एक बार इंसानी नफरत का शिकार हो चुके हैं और इसलिए मैं दोबारा उन्हें इस दुःख का हिस्सा नहीं बनाना चाहता। मैं खुद उन्हें एडॉप्शन से जुड़ी जानकारियां देता हूँ और लोगों को एडॉप्शन प्रक्रिया के लिए सजग बनाने का प्रयास करता हूँ।"
जानवर बगैर कुछ भी कहे आपको बहुत कुछ दे जाते हैं। उनके इस प्यार और अपनेपन का हमें एहसानमंद होना ही चाहिए। ये प्यार आपको जीने का नया सलीका दे जाता है और आपको असल मायनों में इंसान बना जाता है। यदि आप भी मनूर के साथ जुड़ना चाहते हैं, तो उन्हें [email protected] इस ईमेल पर संपर्क कर सकते हैं। इन प्यारे जानवरों की ज़िन्दगी संवारने के लिए एक पहल आपकी भी हो सकती है!
संपादन - मानबी कटोच
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