राम मास्टर: 15 किमी तक रास्ते के किनारे लगाए हज़ारों पौधे, पेड़ बनने तक दिया पिता जैसा स्नेह

ओडिशा में बारगढ़ के रहने वाले 77 वर्षीय राम चंद्र साहू रिटायर्ड शिक्षक हैं और पिछले लगभग 40 सालों से लगातार पौधरोपण कर रहे हैं।

Prakruti Bandhu

हम अपने बच्चों के लिए धन-दौलत इकट्ठा करते हैं, ताकि इसे वे अपने बेहतर जीवन के लिए इस्तेमाल कर सकें। लेकिन सवाल यह है कि हमने अपनी सुविधा के लिए पर्यावरण को इतनी हानि पहुंचा दी है कि हमारे बच्चों के बड़े होने तक शुद्ध पर्यावरण शायद बचे ही नहीं। तो बिना शुद्ध हवा, शुद्ध पानी और वातावरण के आने वाली पीढ़ियां आखिर कब तक धन-दौलत के सहारे जी पाएंगी?

शायद यही वजह है कि इन दिनों हर तरफ पर्यावरण संरक्षण के अभियानों पर जोर है। लेकिन यह भी सच है कि पर्यावरण को एक दिन या एक साल में संरक्षित नहीं किया जा सकता है। बल्कि यह तो लगातार चलने वाली प्रक्रिया है, जिससे हम भी स्वस्थ रहें और हमारे आसपास का वातावरण भी। इसके लिए सबसे ज्यादा जरुरी है धैर्य और संयम। क्योंकि तभी हम बिना किसी नतीजे की इच्छा किए अपना काम ईमानदारी से कर पाएंगे, जैसा कि ओडिशा के एक सेवानिवृत्त शिक्षक कर रहे हैं। 

ओडिशा के बारगढ़ जिले में कनगांव (Kangaon) के रहने वाले 77 वर्षीय राम चंद्र साहू को लोग वृक्षारोपण के लिए जानते हैं। आज के जमाने में जहां लोग रिटायरमेंट के बाद सुकून की जिंदगी गुजारना चाहते हैं। वहीं राम चंद्र साहू ने अपना जीवन पेड़-पौधों की सेवा में समर्पित कर दिया है। वह अपनी नौकरी के दिनों से ही वृक्षारोपण के काम में जुट गए थे। आज भी उनका ज्यादातर समय पौधे लगाने और इनकी देखभाल में जाता है। ढलती उम्र के साथ-साथ, स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां उन्हें घेरने लगी हैं। लेकिन उन्होंने वृक्षारोपण का काम छोड़ा नहीं है। द बेटर इंडिया से बात करते हुए राम चंद्र साहू ने अपने इस सफर के बारे में बताया। 

लगभग 40 सालों से लगा रहे हैं पेड़-पौधे 

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राम मास्टर

साल 1964 में बतौर सरकारी शिक्षक की नौकरी की शुरुआत करने वाले राम चंद्र साहू एक किसान परिवार से हैं। उन्होंने अपने ही गांव के स्कूल में लगभग 26 सालों तक पढ़ाया है। इसलिए गांव में सब उन्हें राम मास्टर के नाम से जानते हैं। वह कहते हैं कि उन्हें हमेशा से प्रकृति से लगाव रहा है और यही वजह है कि वह बचपन से लेकर आजतक केवल और केवल पेड़-पौधों की सेवा में लगे हैं। 

लगभग 40 साल पहले राम चंद्र ने पौधरोपण करने की शुरुआत की थी। उन्होंने बताया कि उन्हें ऐसे अचानक कोई प्रेरणा नहीं मिली। बल्कि, उन्होंने देखा कि उनके गांव में रास्तों के किनारे पेड़-पौधे ही नहीं है, जिनकी छांव में बैठकर कोई दो पल आराम कर सके। इसलिए उन्होंने अपने घर के पास से ही रास्तों के किनारे पेड़-पौधे लगाना शुरू कर दिया। वह पौधे लगाकर छोड़ नहीं देते हैं, बल्कि जब तक पौधे खुद विकसित न होने लगे, इनकी पूरी देखभाल करते हैं। 

उन्होंने बताया, "मैंने अपने गांव में और गांव को दूसरे गांवों से जोड़ने वाले रास्तों के किनारे सैकड़ों क्या हजारों की संख्या में वृक्षारोपण किया है। अब मुझे पेड़ों की तो गिनती नहीं है लेकिन लगभग 15 किमी के रास्ते को मैंने हरा-भरा बना दिया। इससे सभी गांव वाले खुश हैं और मुझे बहुत संतुष्टि मिलती है कि हर तरफ हरियाली है।" 

राम चंद्र की पत्नी पार्वती भी उनके इस काम में हमेशा उनकी सहयोगी रही हैं। वह भी उनके साथ जाकर बहुत बार पौधों को देख आती हैं और इनकी देखभाल करती हैं। 

पौधों ने पूरी की संतान की कमी 

प्रकृति के प्रति इतना प्रेम रखने वाले इस दंपति की कोई संतान नहीं है। लेकिन इस कमी के कारण उन्होंने खुद को कभी दुःखी नहीं किया। आज इस उम्र में भी राम चंद्र और पार्वती एक-दूसरे की ताकत हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने बहुत पहले ही इन पेड़-पौधों को अपनी संतान की तरह अपना लिया है। इसलिए पौधों के पेड़ बनने तक वे लगातार इनका ख्याल रखते हैं। सिर्फ पानी से नहीं बल्कि प्रेम से इन पौधों को सींचते हैं। गांव के 25 वर्षीय किसान चंद्रकांत साहू कहते हैं कि उन्होंने बचपन से राम मास्टर को वृक्षारोपण करते हुए देखा है। 

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मिले हैं सम्मान

"कुछ साल पहले तो जिन जगहों पर कुछ नहीं था, आज वे रास्ते भी हरियाली से भरे हुए हैं। यह सब राम मास्टर की वजह से मुमकिन हुआ। गांव में लगभग सभी लोग उन्हें इस काम के लिए जानते हैं। उन्होंने रास्तों के किनारे पीपल, आम, और बरगद जैसे पेड़ लगाए हैं। बहुत से आम के पेड़ों पर तो फल भी लगते हैं और मैंने खुद कई बार रास्तों में रुककर फल खाये हैं। पहले मेरे पास साइकिल होती थी, तो गर्मी के मौसम में अगर दोपहर में कहीं जाना पड़ जाये तो ज्यादा चिंता नहीं रहती थी। क्योंकि, रास्तों के किनारे लगे इन पेड़ों की छांव में आराम कर लिया जाता था," चंद्रकांत ने कहा। 

राम चंद्र बताते हैं कि वह हमेशा से अपनी कमाई का कुछ हिस्सा पौधों पर खर्च करते आये हैं। नर्सरी से अच्छे पौधे लेकर आना, इन्हें रोपित करना और फिर लगातार इनकी सेवा करना। एक समय था, जब राम चंद्र साइकिल पर पानी की कैन भरकर पौधों की सिंचाई करते थे। उन्हें कई चक्कर काटने पड़ते थे, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। आज भी वह लगातार कुछ न कुछ करते रहते हैं। जैसे पौधों के नीचे उग आई खरपतवार को हटाना। अगर कभी उनसे सम्भव नहीं हो पाता है, तो वह किसी को दिहाड़ी पर लगा लेते हैं। 

"अपने इस काम के लिए मैंने कभी किसी से कोई आर्थिक मदद नहीं ली है। अभी भी अपनी पेंशन में से कुछ हिस्सा मैं पौधों की देखभाल में लगाता हूं। सालों पहले मुझे ओडिशा सरकार ने 'प्रकृति बंधू' सम्मान दिया था। उसके साथ जो धनराशि मिली थी, वह मैंने दान कर दी थी। क्योंकि मेरे पास अपना ही बहुत है," उन्होंने कहा। 

सबके लिए उनका बस यही संदेश है कि अपने देश की सेवा करने का इससे अच्छा कोई तरीका नहीं है कि आप पर्यावरण के लिए काम करें। आज अगर आप पर्यावरण को बचाएंगे तो प्रकृति हमारी हर पीढ़ी को सुरक्षित रखेगी। 

हमें उम्मीद है कि बहुत से लोग राम मास्टर की कहानी से प्रेरणा लेंगे। 

संपादन- जी एन झा

तस्वीर साभार: चंद्रकांत साहू

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