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मंदिर में पड़े फूल-पत्तियों से खाद बनाकर, सार्वजनिक जगहों पर लगाते हैं पौधे

पेशे से वकील दिल्ली के देवराज अग्रवाल एक प्रकृति प्रेमी हैं। उन्होंने बेकार पड़े सूखे पत्तों और भगवान पर चढ़नेवाले फूलों के सही इस्तेमाल के लिए पौधे उगान शुरू कियाा और अब तक वह सार्वजनिक जगहों और पार्क में सैकड़ों पौधे लगा चुके हैं।

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reusing temple flowers as compost

भगवान की पूजा के लिए आमतौर पर फूल चढ़ाए जाते हैं। वहीं, सावन महीने में बेल पत्र आदि चढ़ाकर, पूजा की जाती है। मंदिरों में, अगर आपने ध्यान दिया हो तो एक मूर्ति पर कितने सारे फूल चढ़ाए जाते हैं। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है, इन फूलों का आखिर होता क्या है? कुछ समय के बाद यह मुरझा जाते हैं और फिर फेंक दिए जाते हैं। वहीं, हर मंदिर में एक पीपल का पेड़ भी जरूर होता है,  जिससे रोज काफी सारे पत्ते गिरते हैं। इन पत्तों को या तो जला दिया जाता है या कचरे में फेक दिया जाता है। वैसे तो ये बायो-वेस्ट कुछ समय के बाद मिट्टी में मिलकर खुद ही नष्ट हो जाते हैं। लेकिन इसके लिए उसे मिट्टी में डालना बहुत जरूरी है।

दिल्ली के एक वकील देवराज अग्रवाल कई सालों से जिस मंदिर में जाते थे। वहां ऐसे ही कचरे में जाते फूलों और पत्तों को देखकर, उन्हें कुछ नया करने का ख्याल आया। द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह बताते हैं, "मैं हर दिन देखता था कि मंदिर प्रांगण में रोज ढेरों पीपल के पत्ते कचरे में जा रहे हैं। वहीं भगवान पर चढ़ाए फूलों से मंदिर के पुजारी भी परेशान रहते थे। तभी मैंने सोचा कि क्यों न इनका उपयोग पौधे लगाने में किया जाए।"

Devraj Agrawal resuing temple flowers as compost

बेकार प्लास्टिक का उपयोग करके उगाए पौधे 

देवराज ने मंदिर के प्रसाद वाले फलों के बीजों, आम की गुठलियों और फूलों आदि को मिट्टी में उगाकर देखा। उन्होंने देखा कि कई फलों और फूलों के पौधे आराम से उगने लगे। जिससे उन्होंने पूरे मंदिर प्रांगण को हरा-भरा बना दिया। इस तरह धीरे-धीरे मंदिर में उनकी छोटी सी नर्सरी शुरू हो गई। वह पौधे लगाने के लिए गमले भी बाहर से नहीं खरीदते हैं। बल्कि घर के बेकार प्लास्टिक, जैसे- दूध, नमकीन और राशन के पैकेट्स को उपयोग में लाते हैं। वह कहते हैं, "मुझे कभी भी कोई डाली या बीज मिलता है तो, मैं उसे मंदिर की अपनी नर्सरी में छोटे-छोटे प्लास्टिक बैग्स में लगा देता हूं, और पौधे जब थोड़े बड़े हो जाते हैं, तो उन्हें मिट्टी में लगा दिया जाता है। कई लोग तो यहां आकर अपनी पसंद के पौधे भी ले जाते हैं।" 

देवराज ज्यादातर फलों और फूलों के पौधे लगाते हैं, क्योंकि उन्हें इनके बीज आसानी से मिल जाते हैं। वह जामुन, आम, चीकू और गेंदे के फूल समेत कई पेड़-पौधे लगाते रहते हैं। वह अपने घर का गीला कचरा भी अब इन पौधों को उगाने में इस्तेमाल करते हैं।  

सार्वजनिक जगहों पर लगाए सैकड़ों पौधे

Plantation

देवराज के इन प्रयासों को देखकर,  उनके कई दोस्त भी उनके साथ इस मुहीम में जुड़ गए। मंदिर के पुजारी भी रोज के फूल आदि उनकी नर्सरी में दे जाते हैं। वहीं, कई लोग पौधे लगाने के लिए बेकार प्लास्टिक भी उनके पास देने आते हैं।

उन्होंने बताया कि अब तक़रीबन सौ लोग उनसे जुड़ चुके हैं। वहीं, 15 ऐसे लोग हैं जो मंदिर की नर्सरी में लगे इन छोटे-छोटे पौधों को अलग-अलग पार्क या सड़क के किनारे लगाने में उनकी मदद करते हैं। पिछले दो सालों में, वह तकरीबन 100 पौधे अलग-अलग सार्वजनिक जगहों पर लगा चुके हैं। साथ ही अभी उनके पास 40 और पौधे भी तैयार हैं। 

देवराज कहते हैं, "हम पौधों की देखभाल करके उन्हें बड़ा करते हैं और फिर किसी पार्क और सड़क पर लगाते हैं। इसके बाद भी हम ध्यान देते हैं कि पौधे सही से बढ़ रहे हैं या नहीं।" 

Plantation in temple

उन्होंने अपने इस काम को माँ भारती श्रृंगार का नाम दिया है। वह अपने जन्मदिन या अपने परिवारवालों के जन्मदिन पर लोगों को पौधे देते हैं। ताकि ज्यादा से ज्यादा हरियाली फ़ैल सके। उनका मानना है, "हमारे जन्म पर जिस तरह हमारी माँ को ख़ुशी होती है, उसी तरह जब धरती पर नए पौधों का जन्म होता होगा, तो धरती माँ को भी ख़ुशी होती होगी।  इसलिए हमारी एक जिम्मेदारी धरती माँ को हरा-भरा बनाए रखने के प्रति भी है।" 

आने वाले दिनों में उनका लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस मुहिम से जोड़ना है। ताकि बायो-वेस्ट का सही इस्तेमाल पौधे लगाने में हो सके। 

एक छोटे से आईडिया से शुरू हुआ यह काम अब एक मुहिम बन चुका है। जिसके तहत आज देवराज और उनकी टीम दिल्ली को हरा-भरा बनाने का काम कर रही है।  

संपादन- अर्चना दुबे

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