किसी ने खोला ब्यूटी पार्लर तो किसी ने बुटीक; एक आइडिया ने बदली इन ग्रामीण महिलाओं की दुनिया!

गाँवों की जनसंख्या में तकरीबन 40.51 करोड़ महिलाएं हैं। अगर हम इन ग्रामीण महिलाओं को सामाजिक व आर्थिक रूप से सशक्त बना सकें और ट्रेनिंग देकर छोटे-मोटे व्यवसाय से उन्हें जोड़ सकें तो ये आर्थिक विकास में मदद करेंगी।

किसी ने खोला ब्यूटी पार्लर तो किसी ने बुटीक; एक आइडिया ने बदली इन ग्रामीण महिलाओं की दुनिया!

संगठन में शक्ति होती है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण स्वयं सहायता समूहों के रूप में सामने आया है। अब स्वयं सहायता समूह ग्रामीण क्षेत्रों में ग़रीब महिलाओं को रोज़गार के साधन दिला कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने और उनका आत्मविश्वास बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले की रहने वाली मेनका के घर की माली हालत ठीक नहीं थी। खेती से भी कोई मुनाफ़ा नहीं हो रहा था, बस किसी तरह गुज़ारा चल रहा था। मेनका अपना ख़ुद का कोई काम शुरू करना चाहती थीं, लेकिन परेशानी थी पूंजी की। इस समस्या से उबरने में उनकी मदद की उनकी ही जैसी महिलाओं के एक स्वयं सहायता समूह ने। मेनका इस स्वयं सहायता समूह से पिछले 9 सालों से जुड़ी हुई थीं। उन्होंने समूह से 5,000 रुपए का कर्ज़ लिया और कुछ ज़रूरी सामान खरीद कर अपने घर में ही छोटा-सा ब्यूटी पार्लर शुरू कर दिया।

publive-image
मेनका का ब्यूटी पार्लर

मेनका बताती हैं, घर की हालत जब ठीक नहीं थी तो रिश्तेदारों ने भी आना छोड़ दिया था। शायद वे सोचते हों कि कहीं हम उनसे मदद के लिए पैसे न मांगने लगें। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि बच्चों की पढ़ाई और घर का खर्च कैसे चलेगा। खेती से बहुत मुश्किल से गुज़ारा हो रहा था। तब मैंने स्वयं सहायता समूह से मदद मांगी और ख़ुद का पार्लर खोल लिया। अब पार्लर से ठीक-ठाक आमदनी हो जाती है।

मेनका आजाद नगर स्वयं सहायता समूह की सदस्य हैं। उनके समूह में इस समय कुल 20 महिलाएं जुड़ी हैं। इस समूह से जुड़ी महिलाओं के पास शुरू में घर चलाने के पैसे भी नहीं थे, लेकिन आज उनकी माली हालत ठीक है। समूह की कई महिलाओं ने अपना रोज़गार शुरू कर लिया है। किसी ने सिलाई का काम शुरू किया है तो किसी ने परचून की दुकान खोल ली है। महिलाएं अपनी ज़रूरत के हिसाब से समूह से कर्ज़ लेती हैं और 1.5 प्रतिशत की ब्याज दर पर धीरे-धीरे वापस लौटा देती हैं। कई महिलाओं ने तो अपने व्यक्तिगत कामों जैसे शादी या घर बनवाने के लिए भी पैसे लिए और धीरे-धीरे करके लौटा दिए।

सरकार द्वारा चलाई जा रही एक और योजना स्वर्ण जयंती ग्रामीण रोजगार का लक्ष्य भी गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को स्वयं सहायता समूहों के लिए प्रोत्साहित करना था, लेकिन यह स्कीम कामयाब नहीं हो सकी। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लगभग 61 लाख स्वयं सहायता समूह चल रहे हैं, जिनमें ज्यादातर महिलाओं के हैं।

अब पति के हाथों में गर्व से रखती हैं अपनी कमाई

रायबरेली जिले की रहने वाली सुषमा एक समूह से पिछले छह सालों से जुड़ी हैं। सुषमा ने समूह से लोन लेकर एक सिलाई सेंटर खोला था, जहाँ वो सिलाई सिखाने के साथ कपड़े भी सिलती थीं। आज ये छोटा-सा सिलाई सेंटर एक बुटीक में बदल गया है।

publive-image
सुषमा ने इसी दुकान से की थी सिलाई सेंटर की शुरुआत

सुषमा बताती हैं, “अब जब कभी पति को पैसे की ज़रूरत पड़ती है और मैं देती हूँ तो उन्हें मुझ पर गर्व होता है। मेरे मन में अब यह बात भी नहीं है कि मैं सिर्फ चौका-बर्तन ही कर सकती हूँ। मेरे पास ख़ुद की बचत है, जो मैं अपने बच्चे की पढ़ाई पर खर्च कर सकती हूँ।

स्वयं सहायता समूहों ने ऐसी कई महिलाओं की ज़िंदगी संवारी है और उन्हें आत्मनिर्भर बनाया है। महिलाएं महीने में एक निश्चित दिन मीटिंग करती हैं और थोड़े-थोड़े पैसे जमा करती हैं। अगर किसी महिला को ज्यादा पैसे की ज़रूरत होती है, तो वह यहाँ से लोन लेकर अपना काम कर लेती है। सबसे अहम बात यह है कि इस लोन की वसूली के लिए उनके दरवाजे पर कोई नहीं आता, बल्कि वे धीरे-धीरे ख़ुद ही पैसे वापस कर देती हैं।

क्या है स्वयं सहायता समूह

publive-image
मीटिंग में जाने के लिए तैयार समूह की महिलाएं।

स्वयं सहायता समूह ग्रामीण गरीबों का समूह है, जो अपने सदस्यों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाना चाहता है। समूह से जुड़े सदस्य छोटी-छोटी रकम जमा करते हैं, जो समूह का बचत कोष होता है। स्वयं सहायता समूह का उद्देश्य सबसे निचले स्तर के लोगों को संगठित कर गरीबी को मिटाना है।

नाबार्ड के जनसंपर्क अधिकारी नवीन ने बताया,  ''स्वयं सहायता समूहों के निर्माण के लिए महिलाओं को प्रेरित करना नाबार्ड की एक सराहनीय पहल है। इससे महिलाएं सशक्त हुई हैं। स्वयं सहायता समूहों से महिला उद्यमिता में तो बढ़ोत्तरी तो हुई ही है, साथ ही महिलाओं में बचत करने की प्रवृत्ति भी आई है।

महिलाओं का संगठन से जुड़कर एक-दूसरे की मदद करना एक बड़ा सकारात्मक बदलाव है। इसका फायदा बताते हुए गिरि विकास अध्ययन संस्थान के अर्थशास्त्री जी.एस. मेहता कहते हैं, “भारत की 83.3 करोड़ जनसंख्या गाँवों में रहती है। गाँवों की जनसंख्या में तकरीबन 40.51 करोड़ महिलाएं हैं। अगर हम इन ग्रामीण महिलाओं को सामाजिक व आर्थिक रूप से सशक्त बना सकें और ट्रेनिंग देकर छोटे-मोटे व्यवसाय से उन्हें जोड़ सकें तो ये आर्थिक विकास में मदद करेंगी। स्वयं सहायता समूह इस तरह के बदलाव में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं।

समूह ने मिलकर तोड़ दी कच्ची शराब की भट्ठियाँ

publive-image
समूह की मासिक मीटिंग करती सदस्य महिलाएं।

कई ऐसे स्वयं सहायता समूह भी हैं जो समाजसेवा के भी कामों में आगे आ रहे हैं। गोरखपुर जिले के पिपराईच विकास खंड में महिलाओं का एक समूह है, जिसका नाम है सरस्वती सहायता समूह। यह समूह अब तक शराब की कई अवैध भट्ठियों को बंद करा चुका है। ये महिलाएं एक साथ निकलती हैं और भट्ठियों को तोड़ देती हैं। समूह की सदस्या रीना ने बताया कि गाँव में कच्ची शराब कई लोगों की जान ले चुका था। समूह की महिलाओं ने एक दिन मीटिंग की और सोचा कि क्यों न हम इसे रोकने के लिए आगे आएं। हमने पुलिस से मदद मांगी और भट्ठियों को तोड़ दिया। अब गाँव में कच्ची शराब बनने का धंधा बंद हो गया है।

इन सशक्त महिलाओं को  के लिए आप उन्हें नीचे दिए गए नंबर पर कॉल कर सकते हैं

मेनका - 8896270104

सुषमा - 8318486069

संपादन – मनोज झा


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

Related Articles
Here are a few more articles:
Read the Next Article
Subscribe