‘सेक्रेड गेम्स’ और ‘मंटो’ की अभिनेत्री राजश्री देशपांडे ने अकेले ही बदली इस गाँव की तस्वीर!

अभिनेत्री और सामाजिक कार्यकर्ता राजश्री देशपांडे महाराष्ट्र के सूखा-ग्रस्त गांवों की तस्वीर बदल रही हैं। उन्होंने इसके लिए 'नभांगन फाउंडेशन' की शुरुआत की है।

कुछ समय पहले ही महाराष्ट्र के मुंबई में भारत ने देश का सबसे बड़ा किसान आंदोलन देखा है। अपने अधिकारों की मांग के लिए ये किसान 180 किलोमीटर पैदल चलकर आये। इन्हीं कई मांगों में से उनकी एक मांग थी सरकार द्वारा कृषि ऋण माफ़ करना।

लेकिन क्या हर एक साल के बाद केवल कृषि ऋण माफ़ करते रहना ही समस्या का समाधान है? क्या हम एक ऋण माफ़ कर, किसान को दूसरे ऋण की तरफ नहीं धकेल रहे हैं? क्या हम उनकी समस्याओं के लिए स्थायी और पर्याप्त समाधान देने के लिए जिम्मेदार नहीं हैं?

ये वो प्रश्न थे जो अभिनेत्री और सामाजिक कार्यकर्ता राजश्री देशपांडे को परेशान करते थे, जब उन्होंने 2015 में महाराष्ट्र में लगातार किसानों की आत्महत्या के बारे में सुना था। ।

राजश्री, जो नवाज़ुद्दीन सिद्द्की के साथ आने वाली फिल्म ‘मंटो’ में मशहूर लेखिका इस्मत चुग़ताई की भूमिका निभा रही हैं, औरंगाबाद में एक किसान-परिवार में पैदा हुई और पली-बढ़ी, शायद इसीलिए वे इस बात को सहन नहीं कर पा रहीं थीं।

“मेरे पूर्वज किसान थे। भले ही मेरे पिता एक सरकारी कर्मचारी थे, उन्होंने भी खेती की। मैंने खेती के सभी उतार-चढ़ाव देखे हैं। हम औरंगाबाद के पास भोकरदन में कपास उगाते थे।  लेकिन फिर भी पानी की कमी और सूखे ने खेती करना मुश्किल बना दिया था। तो मेरे पिता ने हमारी ज़मीन बेची और काम के लिए औरंगाबाद आ गए। मेरे माता-पिता ने अपनी तीनों बेटियों को शिक्षित करने के लिए कड़ी मेहनत की। मैंने उनका संघर्ष देखा है,” उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया।

राजश्री के लिए उनके माता-पिता उनकी प्रेरणा हैं

राजश्री ने सिम्बायोसिस कॉलेज, पुणे से लॉ की पढ़ाई करते हुए मात्र 17 साल की उम्र से काम करना शुरू कर दिया था। लम्बे संघर्ष के बाद उन्होंने साल 2003 में एक एडवरटाइजिंग कंपनी ‘ज़ार कंटेंट’ की शुरुआत की और जीवन की सभी सुविधाएँ अपने परिवार को दीं।

उन्होंने बताया, “मैं वो सब कुछ कर रही थी, जो मैं करना चाहती थी। फिर भी कुछ अधूरापन सा था। मैं अंदर से खुश नहीं थी।”

अपने पति और माता-पिता के समर्थन से, राजश्री ने अपना कारोबार छोड़ दिया और सिनेमा और कला में करियर बनाने के लिए 2009 में मुंबई चली गयीं।

इसके अलावा वे देश के अलग-अलग कोनों में जाने लगी और अपने दोस्तों के माध्यम से सामाजिक सुधार की गतिविधियों में भाग लेने लगीं।

“जिसने भी मुझसे मदद मांगी, मैंने किसी को ना नहीं कहा। मैंने धारावी डायरी, बुधनूर वैद्यशाला और एसओएस पापा के लिए भी काम किया है – जिनके साथ मैं दूसरे बड़े भूकंप के बाद नेपाल गयी थी।”

‘द एंग्री इंडियन गॉडेसेस’ फिल्म में अभिनेत्री रहीं राजश्री ने आस-पास के उन गांवों में जाने का फैसला किया जहाँ लोग सूखे की मार झेल रहे है।

चूंकि वह किसान परिवार से संबंधित थी, तो सबसे पहले उन्होंने परभनी, बीड, लातूर, जालना आदि में अपने रिश्तेदारों से मुलाकात की। कुछ जमीनी हक़ीक़तों से रूबरू होने के बाद उन्होंने और गांवों का दौरा किया -जिनके बारे में कभी बात नहीं की जाती है।

“मैंने इस मुद्दे पर शोध करना शुरू कर दिया और पाया कि 300-400 करोड़ रुपये के निवेश के साथ कई परियोजनाएं चल रही हैं। लेकिन छोटे गांवों में कोई वास्तविक काम नहीं होता है, जिससे बुनियादी ढांचे की कमी भी थी,” वे बताती हैं।

साल 2015 में उनके जीवन में चीजें बदल गयीं जब उन्होंने महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में पंढरी नामक एक छोटे से गांव का दौरा किया। यहां के लोगों के उनके सुझावों पर कोई खास ध्यान नहीं दिया; कहा कि बहुत से लोग आते हैं और कई चीजों का सुझाव देते हैं लेकिन कोई भी उनके लिए काम नहीं करता है।

इस बात ने राजश्री को झकझोर दिया। और उन्होंने 2000 की आबादी वाले इस छोटे से गाँव में काम शुरू करने का फैसला किया।

“सूखा यहां प्रमुख मुद्दा था। मैंने देखा कि यहां लगभग सबके यहां बोरवेल था। लेकिन हर साल पानी का स्तर नीचे जा रहा था,” उन्होंने कहा।

राजश्री के पास लगभग 1 लाख रूपये की बचत थी, जिससे वे गांववालों के लिए कुछ पानी के टैंकरों का इंतजाम कर सकती थीं। लेकिन वे वहां पर कोई टेम्परोरी और अस्थायी सुझाव देने के लिए नहीं थीं। उनके लिए, इन गांवों में एक स्थायी समाधान आवश्यक था। उन्होंने फिल्म उद्योग में अपने दोस्तों से मदद ली और कुछ पैसे इकठ्ठा किये।

उनके दोस्त मकरन्द अनसपुरे ने उनकी पोकलैंड (अर्थ मूवर) मशीन के साथ सहायता की और राजश्री ने अकेले ही पंढरी गाँव में वर्षा जल संचयन कने का बीड़ा अपने सर उठा लिया।

“गांववालों का विश्वास जीतने में मुझे महीनों लगे। मैं बस उनके साथ बैठती और उनकी बातें सुनती थी। जब आप केवल सुनते हैं, तभी आप समझते हैं, और जब आप समझते हैं, केवल तभी आप समाधान ढूंढ सकते हैं,” उन्होंने कहा।

महीनों तक गांव के निरंतर दौरे और परामर्शों के बाद राजश्री के साथ लगभग 50 गांववालों ने बारिश के पानी के संरक्षण पर काम करना शुरू किया और आज इस गाँव के पास एक साल तक के लिए पर्याप्त पानी है।

आगामी मराठी फिल्म ‘सत्यशोधक’ में सावित्रीबाई फुले का किरदार निभा रही राजश्री का कहना है कि उन्हें इन से ही गांवों को बदलने की प्रेरणा मिली है।

“मैं आपको नहीं बता सकती कि मैं कितनी खुश थी जब दूसरी बारिश के बाद कुआं पूरा भर गया। हालाँकि, पहली बारिश के बाद गांववालों को समझ नहीं आया, पर जब उनके पास पुरे साल के लिए पेयजल था तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था,” उन्होंने बताया।

सावित्रीबाई फुले के किरदार में राजश्री

अगला कार्य और भी मुश्किल था। गाँव में शायद ही कोई शौचालय था, और गांववालों को खुले में शौच की आदत थी। राजश्री ने इस काम का बीड़ा भी उठाया और हर एक गांव वाले को शौचालयों के लिए सब्सिडी पाने के लिए प्रत्येक ग्रामीण को कागजी कार्य पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया।

“मैं शौचालय बनाने के लिए चंदा जुटा सकती थी। लेकिन जब आप अपने हाथों से कुछ करते हैं, तो आप इसे और अधिक महत्व देते हैं। इसलिए मैंने उनसे अपने शौचालय खुद बनाने के लिए कहा।”

एक बार शौचालयों का निर्माण हो जाने के बाद, गांववालों से शौचालयों का उपयोग करने के लिए और खुले में शौच न करने को जागरूक करने के लिए वे खुद घर-घर गयीं।

“परिवर्तन संभव है! बस उस व्यक्ति से बात करें जिसको आपकी ज़रूरत है, यह भी एक बड़ा काम है। लेकिन गांव में केवल अपना काम करने और फिर दूर चले जाने से उनके भीतर परिवर्तन नहीं आएगा। उनके साथ समय बिताएं, उन्हें शिक्षित करें, उन्हें अंदर से सुंदर बनाएं। बदलाव लाने के लिए आपको सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा करने की भी ज़रूरत नहीं है। बस अपने आस-पास देखें। अपने घर में काम करने वालों की मदद करें। समुदाय के कर्मचारियों को उनके काम के बारे में अच्छा महसूस करवाएं। एक सेल्फी जोन या समुद्र तट पर सफाई ड्राइव की प्रतीक्षा न करें, बस सुनिश्चित करें कि आपकी इमारत या आपका परिसर साफ है,” वह पुरे जुनून से कहती हैं।

कुछ और वर्षों तक गांवों में काम करने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि और भी बहुत से गांवों को उनकी जरूरत है। जिसके लिए उन्होंने हाल ही में अपने एनजीओ को पंजीकृत किया है, जिसका नाम ‘नभांगन‘ है, जिसका अर्थ है आकाश का आंगन।

“एक व्यक्ति बहुत कुछ कर सकता है। आप बस अपनी जगह पर बैठ-बैठे भी अपना काम सही करते हैं तो भी फर्क पड़ सकता है।”

वर्तमान में, पंढरी और मठ जलगांव गांवों में किए जा रहे कार्यों पर नभांगन फाउंडेशन का ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

अगर आप मदद करना चाहते हैं, तो आप नीचे दिए गए विवरणों के माध्यम से दान कर सकते हैं –

Nabhangan Foundation
Union Bank of India – Mumbai
Nabhangan Foundation
A/c : 728301010050104
IFSC : UBIN0572837

यदि आप नभांगन फाउंडेशन का हिस्सा बनना चाहते हैं तो आप nabhanganfoundation5@gmail.com पर लिख सकते हैं।

राजश्री की अबतक की यात्रा यहां देखें,

नंदिता दास की फिल्म ‘मंटो’ का ट्रेलर देखें, जिसमें राजश्री महान उर्दू लेखिका इस्मत चुग़ताई का किरदार निभा रही हैं,

मूल लेख व संपादन : मानबी कटोच


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