जब भारतीय महिला आइस हॉकी टीम की जीत पर रेफरी की आँखें भी हो गयी थी नम!

जब भारतीय महिला आइस हॉकी टीम की जीत पर रेफरी की आँखें भी हो गयी थी नम!

भारत में आइस हॉकी खेल के लिए अभी भी बहुत कुछ होना बाकी है। ऐसे में अगर हम बात करें इस खेल में महिला टीम की, तो उनके लिए तो सुविधाएँ जैसे न के बराबर हैं। लेकिन फिर भी भारतीय महिला आइस हॉकी टीम के चर्चे आज पूरे विश्व में हो रहे हैं।

भारतीय महिला आइस हॉकी टीम के सभी सदस्य लद्दाख़ से हैं। ये सभी खिलाड़ी प्राकृतिक जमे हुए तालाबों पर प्रशिक्षण करते हैं, जो ज़्यादा से ज़्यादा दो महीने तक ही चल पाता है। यह प्राकृतिक रिंक किसी भी मामले में विश्व स्तरीय रिंक की बराबरी नहीं कर पाते। भारत का एकमात्र पूर्ण आकर का कृत्रिम अंतर्राष्ट्रीय रिंक देहरादून में है और वह भी राज्य प्रशासन की अनदेखी के चलते बंद पड़ा है।

ऐसे में खिलाड़ियों को प्रैक्टिस के लिए भी किर्गिज़स्तान, मलेशिया या यूएई जैसे देशों में जाना पड़ता हैं, जहाँ पर सभी सुविधाओं के साथ ये रिंक उपलब्ध हैं। लेकिन यह भी तभी संभव हो पाता है, जब खिलाड़ी ट्रेनिंग का खर्च उठा सकें या फिर उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान की जाये।

ऐसे में, भारतीय महिला टीम की ज़्यादातर खिलाड़ियों ने जैसे-तैसे बिना किसी वित्तीय सहायता के अपनी प्रैक्टिस की है। और इसलिए जब साल 2017 में इस टीम ने एशिया के सबसे हाई-प्रोफाइल आइस हॉकी टूर्नामेंट में दो मैच जीते और प्रतिस्पर्धा की भावना को बनाए रखा तो सब हैरान थे।

छोटे-छोटे कस्बों से निकलकर इन लड़कियों का बिना किसी ख़ास प्रोफेशनल ट्रेनिंग के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक पहचान बनाना यकीनन काबिल-ए-तारीफ़ है।

आज द बेटर इंडिया के साथ जानिए भारतीय महिला आइस हॉकी टीम के सफ़र की असाधारण कहानी!

publive-image
भारतीय महिला आइस हॉकी टीम

जब लद्दाख में सर्दियाँ शुरू होती हैं, तो आइस हॉकी एकमात्र ऐसा खेल होता है, जिसे यहाँ के बच्चे खेल सकते हैं। क्योंकि उस समय ये लोग फुटबॉल या क्रिकेट नहीं खेल सकते। इसके बजाय वे लेह शहर या कारज़ू के बाहर गुपुक्स जैसी जगहों पर आइस हॉकी खेलते हैं, जहां तालाब सर्दियों में जम जाते हैं।

लद्दाख विंटर स्पोर्ट्स क्लब के अनुसार, लगभग 10,000-12,000 लद्दाखी युवा हैं, जो किसी न किसी रूप में आइस हॉकी खेलते हैं।

साल 1970 में पहली बार आइस हॉकी ने लद्दाख़ में कदम रखा। धीरे-धीरे यहाँ पर लोगों की दिलचस्पी इस खेल में इतनी बढ़ी कि आज यहीं के खिलाड़ी इस खेल में भारत का प्रतिनिधत्व कर रहे हैं।

publive-image
लद्दाख महिला आइस हॉकी फाउंडेशन द्वारा एचएचएआई के सहयोग से 'लर्न टू प्ले और लर्न टू स्केट' प्रशिक्षण कार्यक्रम के पहले दिन बच्चे

शुरुआत में ये खिलाड़ी, प्रोफेशनल आइस हॉकी के उपकरणों या नियमों के बारे में ज़्यादा नहीं जानते थे। बहुत बार गोलकीपर क्रिकेट वाले पैड पहनकर ही गोल बचाते। पर साल 2006 से स्थानीय अधिकारियों ने इन खिलाड़ियों की सुरक्षा के लिए, इनका प्रोफेशनल हेड-गियर और पैड पहनना अनिवार्य कर दिया।

दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में ग्रेजुएट डिस्केट अंग्मो, भारतीय महिला टीम के लिए डिफेन्स करती हैं और साथ ही टीम की आधिकारिक प्रवक्ता भी हैं।

डिस्केट का कहना है कि टीम की ज़्यादातर खिलाड़ियों ने स्केटिंग से ही शुरुआत की थी और फिर धीरे-धीरे आइस स्केटिंग में हाथ आज़माना शुरू किया। भारतीय आइस हॉकी पुरुष टीम के अधिकांश सदस्य लद्दाख़ से हैं, जिन्हें देखकर ये लड़कियाँ भी भारत का प्रतिनिधित्व करना चाहती थीं।

यह इन लड़कियों का जुनून ही था, जिसने स्थानीय लद्दाख़ विंटर स्पोर्ट्स क्लब को 2008 से महिलाओं को स्थानीय प्रतियोगिताओं में शामिल करने के लिए प्रभावित किया। इसके कई साल बाद साल 2013 में आइस हॉकी एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने महिलाओं के लिए पहली राष्ट्रीय चैंपियनशिप आयोजित की।

publive-image
2016 IHAI राष्ट्रीय आइस हॉकी चैम्पियनशिप में खेलते हुए महिला खिलाड़ी। (स्रोत: IHAI)

डिस्केट ने द बेटर इंडिया को बताया कि जैसे-जैसे टीम में खिलाड़ी बढ़े, वैसे-वैसे आइस हॉकी एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने महिलाओं की इस टीम में दिलचस्पी दिखाई और साल 2016 में चीन के ताइपे में एशिया के चैलेंज कप के लिए महिला टीम को भेजने का फ़ैसला किया।

ताइपे में एशिया के आइस हॉकी फेडरेशन (IIHF) के चैलेंज कप के लिए इन खिलाड़ियों का प्रशिक्षण गुड़गांव के एंबियंस मॉल के छोटे से आइस रिंक इस्केट में हुआ। यह रिंक अंतर्राष्ट्रीय रिंक का सिर्फ़ एक-चौथाई है। इसलिए ये खिलाड़ी यहाँ पर अपनी बेसिक स्किल ही ठीक कर पाए।

इसके अलावा एक दूसरी चुनौती थी, कि ज़्यादातर खिलाड़ी देश के दूरगामी इलाकों से थे और उनके पास पासपोर्ट तक नहीं थे, इसलिए सिर्फ़ कुछ ही खिलाड़ी ताइपे जा सकते थे।

publive-image
2016 के एशिया चैलेंज कप में महिला टीम। (स्रोत: भारतीय महिला आइस हॉकी टीम)

ये खिलाड़ी इस टूर्नामेंट में जा सकें, इसके लिए आइस हॉकी एसोसिएशन ऑफ इंडिया के महासचिव हरजिंदर सिंह ने दिल्ली में न जाने कितने सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटे थे। भारतीय महिला आइस हॉकी टीम पहली बार किसी अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट के लिए जा रही थी और ऐसे में उन्हें इस खेल के प्रोफेशनल नियमों का भी ज़्यादा ज्ञान नहीं था। ऐसे में अनुभव और सुविधा की कमी के कारण वे इस टूर्नामेंट में अपनी छाप नहीं छोड़ पायीं।

"हम में से किसी ने भी नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी हमें भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलेगा। लेकिन इस टूर्नामेंट के अनुभव ने जीतने के लिए हमारे जुनून को और बढ़ा दिया। हमें समझ आया, कि हमें अच्छे उपकरण और ज़्यादा से ज़्यादा प्रैक्टिस करने की जरूरत थी," डिस्केट ने कहा।

पर वक़्त बदलते देर न लगी। टीम की मेहनत को देखते हुए, लोगों ने उनकी आर्थिक मदद के लिए क्राउडफंडिंग अभियान चलाये। सबके साथ और समर्थन से एक बार फिर साल 2017 में एशिया के सात-राष्ट्र चैलेंज कप टूर्नामेंट में भारतीय महिला आइस हॉकी टीम पहुँची। इस बार टीम ने फिलीपींस के साथ अपने दूसरे मैच में 4-3 से जीत हासिल कर ली!

यह एक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भारतीय आइस हॉकी महिला टीम की पहली जीत थी!

publive-imageमलेशिया पर अपनी जीत के बाद टीम (स्त्रोत)

जब रेफरी ने आख़िरी सीटी दी, तो पूरी टीम की आँखों में ख़ुशी के आँसू थे। यहाँ तक कि रेफरी और अधिकारियों की आँखों में भी आँसू थे। इस टूर्नामेंट में अगले तीन मैच में हार के बाद, आख़िरी दिन, टीम ने फिर एक और मैच जीता।

19-वर्षीय खिलाड़ी सेरिंग चोरोल ने हिंदुस्तान टाइम्स से कहा,

"हम सब बहुत भावुक थे और काफ़ी रोये भी। जब हमारा राष्ट्रगान वहां चलाया गया, तो सभी की आँखें नम हो गयी और हमें लगा कि हमने अपने देश का सिर गर्व से ऊँचा किया है।"

एशिया के सबसे बड़े आइस-हॉकी टूर्नामेंट में भारतीय टीम की इस सफ़लता की कहानी ने विश्व मीडिया का ध्यान भी खींचा। यहां तक ​​कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो फरवरी 2018 में भारत की राजकीय यात्रा के दौरान, दिल्ली में टीम से मिले।

इस ऐतिहासिक जीत के बाद पहली बार भारतीय टीम को कनाडा में हो रहे 'वेंकिसेज़र महिला वर्ल्ड हॉकी फेस्टिवल' के लिए आमंत्रित किया गया।

publive-image
कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो और दिग्गज खिलाड़ी हेले वेंकीशेसर के साथ भारतीय टीम। (स्रोत: फेसबुक)

डिस्केट भावुक होते हुए बताती है,

"यह हमारे लिए बहुत बड़ा अवसर था। हमारी मेहनत और लगन ने हमें खुद पर विश्वास करना सिखाया है। भारत के दूरगामी इलाके से एक टीम जिसका शयद ही किसी ने नाम सुना हो, वह विश्व महिला हॉकी महोत्सव के लिए कनाडा गयी।

लोग कहते हैं कि 'जुनून की कोई सीमा नहीं होती' और हम इस कहावत पर खरे उतरे हैं।"

आप IHAI फेसबुक पेज और लद्दाख महिला आइस हॉकी फाउंडेशन फेसबुक पेज को लाइक करके इन खिलाड़ियों के लिए अपना समर्थन दिखा सकते हैं।

मूल लेख: रिनचेन नोरबू वांगचुक

(संपादन - मानबी कटोच)


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

Related Articles
Here are a few more articles:
Read the Next Article
Subscribe