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किसी दौर में, भारत में महिला क्रिकेट को लोग ज्यादा तवज्जो नहीं देते थे और उन्हें लेकर मजाक उड़ाया करते थे। लेकिन आज समय बदल गया है और कई महिला खिलाडियों ने अपनी कड़ी मेहनत और काबिलियत से लोगों की इस धारणा को बदलकर रख दिया है।
इस कड़ी में, तेज गेंदबाज झूलन गोस्वामी (Jhulan Goswami) का नाम उल्लेखनीय है। झूलन ने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत साल 2002 में इंग्लैंड के खिलाफ वनडे मैच से की। बीते 19 वर्षों में, उन्होंने कई कीर्तिमान स्थापित किए और भारतीय महिला क्रिकेट को एक अलग पहचान दी।
झूलन गोस्वामी (Jhulan Goswami) का जन्म 25 नवंबर 1982 को पश्चिम बंगाल के नादिया में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता निसिथ गोस्वामी इंडियन एयरलाइंस में काम करते हैं और माँ झरना हाउसवाइफ हैं। झूलन को लोग प्यार से ‘बाबुल’ भी पुकारते हैं।
कैसे हुई शुरुआत
चूंकि, नादिया में फुटबॉल काफी खेला जाता है। यही कारण है कि जब झूलन छोटी थीं, तो उन्हें फुटबॉल काफी पसंद था। लेकिन1992 के क्रिकेट विश्व कप को देखने के बाद, वह टेनिस बॉल से थोड़ा-बहुत क्रिकेट खेलने लगीं। जब वह गली क्रिकेट खेलती थीं, तो कई लड़के उनका मजाक भी उड़ाते थे कि वह लड़की होकर क्रिकेट खेल रही हैं।
शुरुआती दिनों में झूलन गोस्वामी (Jhulan Goswami) काफी धीमी गेंदबाजी करती थीं। इस वजह से कोई भी लड़का उनकी गेंदों पर आसानी से रन बना लेता था। इस वजह से कई बार, उन्हें खेलने नहीं दिया जाता था। इससे झूलन काफी निराश होती थीं, लेकिन उन्होंने फैसला किया कि वह लड़कों के बराबर गति से बॉलिंग करेंगी और उन्होंने कड़ी मेहनत शुरू कर दी। आगे जो हुआ, उसने इतिहास रच दिया।
1997 के महिला विश्व कप के फाइनल मैच ने उनकी जिंदगी को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया। दरअसल, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच खेले गए इस मैच के दौरान, झूलन ‘बॉल गर्ल’ के रूप में अपनी भूमिका निभा रही थीं। इस दौरान, उन्होंने बेलिंडा क्लार्क, डेबी हॉकी और कैथरीन फिट्जपैट्रिक जैसी दिग्गज खिलाड़ियों को काफी करीब से देखा।
इससे 15 साल की झूलन गोस्वामी (Jhulan Goswami) को एक नई प्रेरणा मिली और उन्होंने क्रिकेट को ही अपना जीवन बनाने का फैसला कर लिया। लेकिन, झूलन के लिए राह आसान नहीं थी। उनके माता-पिता चाहते थे कि वह पढ़-लिखकर कोई अच्छी नौकरी करें, लेकिन झूलन की जिद के आगे किसीकी न चली।
वहीं, उनके शहर में पेशेवर क्रिकेट की ट्रेनिंग के लिए कोई सुविधा नहीं थी। इसलिए उन्हें घर से काफी दूर, घंटों सफर कर, कोलकाता के विवेकानंद पार्क जाना पड़ता था। वह हर दिन सुबह चार बजे जाग जाती और ट्रेन या बस के जरिए 7:30 बजे प्रैक्टिस के लिए पहुंचती थीं।
झूलन को अकेले सफर करने में डर लगता था। इसलिए झूलने को पहुंचाने के लिए उनकी माँ या पिता साथ जाते थे। फिर, उन्हें अहसास हुआ कि इससे पिताजी को नौकरी पर जाने में और माँ को घर संभालने में दिक्कत होती है। इसलिए, उन्होंने हिम्मत जुटाई और अकेले सफल करने लगीं।
जल्द बनाया मौका
घरेलू क्रिकेट में अपने शानदार प्रदर्शन के दम पर, झूलन ने राष्ट्रीय चयनकर्ताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा और 2002 में, उन्हें इंग्लैंड के खिलाफ वनडे मैच में मौका दिया गया। फिर, उनकी धारदार गेंदबाजी को देखते हुए, उन्हें इंग्लैंड टीम के इसी दौरे पर टेस्ट टीम में मौका दिया गया।
देखते ही देखते, झूलन गोस्वामी (Jhulan Goswami) भारतीय महिला टीम की सबसे विश्वसनीय गेंदबाज बन गईं। झूलन के शानदार प्रदर्शन को देखते हुए, 2007 में, उन्हें आईसीसी वूमन प्लेयर ऑफ द ईयर () चुना गया।
उन्हें 2010 में अर्जुन पुरस्कार और 2012 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया। इस दौरान उन्होंने कहा, “क्रिकेट के बिना मैं क्या करती, मुझे नहीं पता। यदि मुझे क्रिकेट खेलने नहीं दिया जाता, तो मुझे नहीं पता कि मैं क्या करती। क्रिकेट मेरे लिए काफी मायने रखता था। यह मेरा जुनून है।”
झूलन गोस्वामी (Jhulan Goswami) के कोच स्वप्न साधू ने उनकी प्रतिभा को जल्द ही पहचान लिया था। जब झूलन, साधू के एक ट्रेनिंग सेशन में शामिल होने के लिए आईं, तो साधू ने उन्हें गेंद थमाते हुए पूछा - बॉलिंग आती है? जवाब में झूलन ने कहा - हाँ आती है। इसके बाद साधू ने झूलन के बॉलिंग एक्शन को देखा और कहा कि अब सिर्फ बॉलिंग पर ध्यान दो और बैटिंग भूल जाओ।
झूलन ने कोच के इस बात को माना और आगे चलकर दुनिया की सबसे तेज गेंदबाजों में से एक बनीं। वह 120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार के साथ भारत की पहली और दुनिया में पूर्व आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी कैथरीन फिट्जपैट्रिक (125 किमी/घंटा) के बाद, दूसरी सबसे तेज गेंदबाज हैं।
झूलन ने इस साल सितंबर में, आस्ट्रेलिया के खिलाफ 3 विकेट हासिल कर, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 600 विकेट के आंकड़े को पार कर लिया, जो कि एक विश्व रिकॉर्ड है। साथ ही, 'नादिया एक्सप्रेस' के नाम से मशहूर झूलन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 2000 से अधिक ओवर फेंकने वाली पहली महिला गेंदबाज भी हैं। उन्होंने 2008 से लेकर 2011 तक भारतीय टीम की अगुवाई भी की।
बेहतरीन गेंदबाजी के अलावा, झूलन निचले क्रम में दाहिने हाथ से काफी अच्छी बल्लेबाजी भी कर लेती हैं। जिससे टीम को एक मजबूती मिलती है।
बनने वाली है बायोपिक
आज झूलन गोस्वामी (Jhulan Goswami) भले ही 39 साल की हो गई हों, लेकिन उनकी क्रिकेट की भूख खत्म नहीं हुई है। उनका इरादा 2022 में होने वाले वनडे विश्वकप में, भारतीय टीम को जीता कर, एक अधूरी कसक को पूरा करने की है।
झूलन गोस्वामी की कहानी पर आधारित जल्द ही एक बायोपिक बनने वाली है, जिसमें अभिनेत्री अनुष्का शर्मा, झूलन के किरदार में नजर आएंगी। फिल्म को प्रोसित रॉय निर्देशित करेंगे।
संपादन- जी एन झा
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