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Home प्रेरक महिलाएं रिटायरमेंट के बाद पूरा किया बचपन का सपना, 62 की उम्र में शुरु किया गोवा में रेस्टोरेंट

रिटायरमेंट के बाद पूरा किया बचपन का सपना, 62 की उम्र में शुरु किया गोवा में रेस्टोरेंट

62 वर्षीय स्मिता सुरेंद्रनाथ ब्लागन ने अपनी सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद अपने उस सपने पर ध्यान दिया जिसे वह हमेशा से पूरा करना चाहती थीं। उन्होंने गोवा के सिरिदाओ में लेक व्यू रेस्टोरेंट शुरू किया है।

By पूजा दास
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Smita Surendranath Blaggan

आज हमारे बीच कई ऐसे सीनियर सिटिज़न्स हैं जो अपने पैशन को फॉलो कर काफ़ी जुनून के साथ कुछ अलग कर रहे हैं, जैसा आज के युवा सिर्फ़ सोचते ही रह जाते हैं। ऐसी ही एक बुज़ुर्ग महिला हैं स्मिता सुरेंद्रनाथ ब्लागन। 62 वर्षीय स्मिता गोवा में अपना एक रेस्टोरेंट चलाती हैं। दिलचस्प बात यह है कि स्मिता ने अपनी सरकारी नौकरी से रिटायरमेंट के बाद, हॉस्पिटैलिटी के इस क्षेत्र में कदम रखा है। उनका लेक व्यू रेस्टोरेंट उनके और उनके 30 साल के बेटे रोहित की मेहनत और लगन से बना है।

कर्नाटक के धारवाड़ जिले में जन्मीं स्मिता एक महाराष्ट्रियन हैं, जिनकी एक पंजाबी परिवार में शादी हुई।

अलग-अलग व्यंजन और स्वाद जानती हैं स्मिता

स्मिता कहती हैं कि उनका पारिवारिक बैकग्राउंड काफ़ी डायवर्स रहा, इसलिए उन्हें कई तरह के व्यंजनों और स्वाद की अच्छी जानकारी है। 

वह पंजाबी, गोवा, कोंकणी, महाराष्ट्रियन और अब यहां तक कि इटैलियन और कॉन्टिनेंटल व्यंजनों के बारे में अच्छी तरह जानती हैं। वह खाने में पड़ने वाले सारे मसाले अपने हाथ से बनाती हैं। स्मिता बताती हैं, “खाने के सारे इंग्रेडिएंट्स की खरीददारी भी मैं खुद ही करती हूँ। मैं केवल सबसे अच्छी और सबसे ताज़ी सामग्री और सब्जियाँ खरीदती हूँ। इससे हर डिश का स्वाद काफ़ी बढ़ जाता है।”

हालांकि, रेस्तरां खोलना आसान नहीं था। स्मिता के बेटे रोहित बताते हैं, “हमने मार्च 2020 में इसपर काम करना शुरू किया था और इससे पहले कि हमारी गाड़ी आगे बढ़ती, देशभर में लॉकडाउन लग गया।” रोहित आगे बताते हैं कि लॉकडाउन के बाद के महीने चिंता और बेचैनी में बीते क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि आगे क्या होगा। 

रिटायरमेंट के बाद 'अच्छा खाना' ही था आगे बढ़ने रास्ता

इन माँ-बेटे को एक चीज़ पर पूरा भरोसा था, वह था बढ़िया स्वाद के साथ अच्छा खाना देना। आत्मविश्वास से भरी स्मिता कहती हैं, “लॉकडाउन के समय हमने उम्मीद रखी कि जल्द ही हम लोगों को अच्छा खाना खिलाएंगे।” स्मिता कहती हैं कि उन्हें खाना पकाना हमेशा से पसंद था और पूरा यक़ीन था कि उनके खाने का स्वाद लोगों को बहुत पसंद आएगा।

पुराने दिनों को याद करते हुए वह कहती हैं, “मुझे याद है कि 10 साल की उम्र में मैं अपने पिता के लिए ज्वार की रोटी बनाती थी। यहां तक कि 1986 में शादी होने और गोवा आने के बाद भी, खाना ने बहुत अहम भूमिका निभाई। शुरु से ही मैं खाने की शौक़ीन रही हूँ और इसलिए हमेशा नई डिशेस और खाना बनाने के अलग-अलग तरीक़े ट्रॉय करती रहती थी।”

वह आगे कहती हैं, “मेरी माँ और सास दोनों ही बेहतरीन कुक थीं और मैंने उन दोनों से बहुत कुछ सीखा है। अच्छे खाने के लिए मेरा प्यार इतना ज़्यादा था कि मुझे एक पंजाबी परिवार में आकर बहुत सी नई चीज़ें सीखने में मज़ा आता था। सच बताऊँ तो मेरी माँ की बनाई मटन करी मुझे इतनी पसंद थी कि खाने के बाद, उसकी महक मेरी उंगलियों पर तीन दिनों तक रहती थी और मुझे वह बहुत पसंद था।”

हर कोई करता है स्मिता के खाने की तारीफ़

स्मिता के पति, सुरेंद्रनाथ द्वारकानाथ ब्लागन, गोवा हाउसिंग बोर्ड विभाग में असिसटेंट इंजीनियर के रूप में काम करते। वह अपने ऑफिस के सहकर्मियों और बॉस को खाने के लिए घर पर इनवाइट करते रहते थे। स्मिता बताती हैं, “मुझे हमेशा लोगों की मेज़बानी करना बहुत पसंद था और हमारे घर आने वाले सभी मेहमानों को मेरे हाथ का खाना काफ़ी पसंद आता था। सब मेरे खाना पकाने के हुनर की काफ़ी तारीफ़ करते हैं।"

रोहित को आज भी उस चिकन बिरयानी की सुगंध याद है जो बचपन में कई बार स्कूल से लौटने पर माँ, उनके और उनकी बहन करिश्मा के लिए बनातीं थीं। वह कहते हैं, “मेरे सभी दोस्त माँ (स्मिता) के हाथों के बने खाने के बहुत बड़े फैन थे। यहां तक कि जब कॉलेज के लिए हम घर से दूर गए और जब छुट्टियों में आते थे, तो भी मेरे दोस्त मेरे घर खाना खाने आ जाया करते थे।”

रिटायरमेंट के बाद जीवन की सेकंड इनिंग

कई लोग रिटायरमेंट के बाद बिज़नेस शुरू करने के बारे में नहीं सोचते हैं। हालांकि स्मिता का कहना है कि वह हमेशा से एक रेस्टोरेंट चलाना चाहती थीं। वह कहती हैं कि उन्होंने इस बारे में कई बार अपने दिवंगत पति से भी बात की थी। वह बताती हैं, “हर बार जब हमारे घर में मेहमान आते थे और फिर खाना खाकर जब चले जाते थे, तो वह मुझे बताते थे कि खाना ही मेरा सच्चा हुनर है। लेकिन उस समय परिस्थितियों ने मुझे उस सपने को पूरा करने नहीं दिया।”

Balagans mom and son

2020 में जब रोहित दुबई से भारत लौटे तो स्मिता के सपने को एक नई राह मिली। रोहित कहते हैं, “हमारे घर से केवल 15 मिनट की दूरी पर मुझे एक अच्छी जगह मिली। यह हमारे लिए बहुत ज़रूरी था, क्योंकि माँ हर दिन रेस्टोरेंट में होगी, मैं चाहता था कि जगह आस-पास ही हो।” 

इस रेस्टोरेंट की शुरुआत उन्होंने लगभग 25 लाख रुपये के निवेश से की थी। वह कहते हैं, “जब हमने दो साल पहले इसे शुरू किया, महामारी और लॉकडाउन की वजह से काफ़ी परेशानियां आईं। आज हर दिन हमारे ग्राहक बढ़ रहे हैं, लेकिन हम अभी और आगे बढ़ना चाहते हैं।”

150 लोगों के बैठने की क्षमता वाला यह रेस्टोरेंट एक झील के ठीक बगल में बना है, जो इसे परिवार और दोस्तों के साथ जाने के लिए एक अच्छी जगह बनाता है। 

‘किचन क्वीन’ 

स्मिता पूरी मेहनत और लगन के साथ इस काम में लगी हुई हैं, और बताती हैं कि वह अपनी रसोई की हर चीज़ का ख़ास ख़्याल रखती हैं। वह बताती हैं, “कुछ भी पहले से तैयार करके नहीं रखा जाता है। लहसुन और अदरक का पेस्ट बनाने से लेकर कूटे मसाले तक, ऑर्डर मिलने के बाद हम सब कुछ करते हैं। मैं समझ सकती हूँ कि कभी-कभी किचन में शेफ्स मेरे तरीक़ों से परेशान हो जाते हैं, लेकिन मुझे स्वाद से समझौता करना स्वीकार्य नहीं है।”

यह रेस्टोरेंट अपने ऑथेंटिक गोअन कुज़ीन और सी फ़ूड के लिए प्रसिद्ध है। प्रॉन डेंजर, फिश थाली, रवा मसल्स और बटर चिकन, यहां की कुछ ऐसी डिशेज़ हैं जिन्हें खाने लोग बार-बार आते हैं।  अपने पसंदीदा खाने के बारे में बताते हुए स्मिता कहती हैं, “मैं अपने बच्चों में से कैसे चुन सकती हूँ? मैं हर व्यंजन को पसंद करती हूँ जो यहां बनते हैं।”

रिटायरमेंट के बाद अपना बिज़नेस करने में क्या चुनौतियाँ आती हैं?

आज जिस जगह स्मिता हैं, वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने कई चुनौतियों का सामना किया है। दरअसल स्मिता कहती हैं कि हर दिन एक नई चुनौती को हल करना होता है। वह बताती हैं, “हमारे लॉन्च से कुछ दिन पहले शेफ ने फैसला किया कि वह यहां काम नहीं करना चाहते हैं। यानी किचन का सारा काम मेरे कंधों पर आ गया। मेरे बेटे और बेटी ने काफ़ी ज़्यादा मदद की।”

स्मिता कहती हैं, “इन कई समस्याओं को संभाला जा सकता है लेकिन ऐसे भी दिन होते हैं जब नल में से पानी नहीं आता। कभी रेस्टोरेंट में पानी का सप्लाई नहीं होता और जब सब कुछ सही काम करता था, तो बिजली चली जाती थी। जिसकी वजह से मुझे अपने मिक्सर-ग्राइंडर में मसाले पीसने घर जाना पड़ता। आख़िर बिना मसाला और ड्रामा के ज़िंदगी क्या है।”

बचपन से वह रेसिपी की किताबें पढ़ा करतीं थीं, और आज अपने रेस्टोरेंट में खुद अपनी रेसिपीज़ बनाकर स्मिता काफ़ी खुश हैं। वह कहती हैं “अपने सपने को साकार होते हुए देखकर मैं खुद को संपन्न महसूस करती हूँ।”

यदि आप गोवा में हैं और अच्छे खाने का स्वाद लेना चाहते हैं, तो यहां से रेस्टोरेंट के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

मूल लेख - विद्या राजा

संपादन - भावना श्रीवास्तव

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