/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2020/12/Buland-5-compressed.jpg)
यह कहानी है उत्तर-प्रदेश के दो युवाओं की, जिन्होंने जैविक खेती और प्रोसेसिंग के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। 24 साल की उम्र में ये दोनों युवा जहाँ एक ओर किसानों को मुफ्त में जैविक खेती की ट्रेनिंग दे रहे हैं वहीं खुद गन्ने की खेती के साथ फसल की प्रोसेसिंग (Organic Jaggery) भी कर रहे हैं।
आज हम आपको रू-ब-रू करा रहे हैं बुलंदशहर के शाहजहाँपुर गाँव में रहने वाले दीपकांत शर्मा और हिमांशु वासवान से। लगभग 5 साल से ये दोनों युवा जैविक खेती के प्रति लोगों को जागरूक कर रहे हैं। दिन-रात मेहनत कर इन दोनों ने जैविक खेती के क्षेत्र में एक नया मुकाम हासिल किया है। उनकी गिनती आज सफल जैविक किसानों में होती है और उनका बनाया गुड़ (Organic Jaggery) बड़े-बड़े शहरों तक पहुँच रहा है।
दीपकांत ने द बेटर इंडिया को बताया कि हिमांशु और उनकी पृष्ठभूमि कृषि से जुड़ी हुई है। "हम दोनों किसान परिवार से आते हैं। हम लोगों के परिवार में सभी खेती ही किया करते थे लेकिन अब जब शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ गई तो घरवाले चाहते हैं कि बच्चे खेती में ना आकर पढ़ाई करें और नौकरी करें। इसलिए हम दोनों ने भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। लेकिन जब हमने जैविक खेती के बारे में सुना तो जिज्ञासा हुई कि इसके बारे में जाना जाए। इसके लिए हमने भारत भूषण त्यागी के यहाँ जाकर उनसे बात की। जैविक खेती की ट्रेनिंग भी ली। इस कॉन्सेप्ट ने हमें बहुत प्रभावित किया और हमने ठाना कि हम जैविक खेती करेंगे और दूसरों को भी इससे जोड़ेंगे," दीपकांत ने बताया।
/hindi-betterindia/media/post_attachments/2020/12/IMG-20201201-WA0044.jpg)
लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, उनके घरवालों को यह आईडिया बिल्कुल भी पसंद नहीं आया। उनके परिवार वालों ने उन्हें समझाया और पढ़ाई में ध्यान लगाने के लिए कहा लेकिन दोनों ने मन बना लिया था। दीपकांत कहते हैं उनकी 40 एकड़ पुश्तैनी ज़मीन है। जैसे-तैसे उसमें से जरा-सी ज़मीन उन्हें खेती करने के लिए दी गई। दीपकांत और हिमांशु ने जो कुछ भी सीखा था वही ज्ञान उपयोग में लेकर गन्ने की फसल लगाई। क्योंकि उनके यहाँ गन्ना काफी उगाया जाता है।
गन्ने के बाद उन्होंने शतावर भी लगाई। खेती करने के साथ-साथ दोनों पढ़ाई भी करते रहे। उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री भी पास की और उन्हें जॉब भी मिल गई। "शायद हमारा जूनून था जो हमने पढ़ाई और खेती और इसके बाद जॉब के साथ भी अच्छा तालमेल बिठा लिया। हरियाणा में बतौर क्वालिटी इंजीनियर नौकरी लगी थी और हर रविवार घर पहुँच जाते ताकि अपने खेतों को देख सकें। एक-दो साल में ही जब हमारे खेतों से अच्छा नतीजा मिला तो घरवालों को यकीन हुआ कि ये खेती में कुछ अच्छा कर सकते हैं," उन्होंने आगे कहा।
इसके बाद, उन्होंने नौकरी छोड़ दी और अपने खेतों पर ध्यान दिया। दीपकांत के घरवालों ने उन्हें शुरू में एक एकड़ फिर चार एकड़ और अब पूरे 20 एकड़ ज़मीन खेती के लिए दी है। बाकि बची 20 एकड़ में भी वह जैविक तरीकों से ही खेती कर रहे हैं। दीपकांत के पास जो 20 एकड़ ज़मीन है उसमें दोनों दोस्तों ने मिलकर मिश्रित खेती का मॉडल तैयार किया है। साथ ही, गन्ने की प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाई है ताकि वह जैविक गुड़ (Organic Jaggery) बनाकर ग्राहकों तक पहुँचा सकें। खेती और प्रोसेसिंग के अलावा दीपकांत और हिमांशु किसानों को मुफ्त में जैविक खेती की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं।
बनाए हैं खेती के मॉडल
/hindi-betterindia/media/post_attachments/2020/12/120647565_160887142365355_270429807902717822_o-compressed.jpg)
दीपकांत और हिमांशु अपने खेतों में जैविक फसलें उगाने के साथ-साथ किसानों के लिए जैविक खेती के मॉडल भी तैयार कर रहे हैं। उन्होंने ऐसा मॉडल विकसित किया है जिससे कि एक एकड़ से किसान 4-5 लाख रुपये की कमाई ले सके। उनका एक मॉडल गन्ना आधारित है, जिसमें वह गन्ना, लहसुन, सरसों, हल्दी, ढैंचा/बरसीम, लोबिया/चना की दाल और पालक की फसलें एक बार में एक एकड़ में ली जा सकती है। यह मॉडल सितंबर से लगना शुरू होता है।
"इस मॉडल में लागत लगभग डेढ़ लाख रुपये तक आता है, जबकि कमाई आसानी से 4-5 लाख रुपये तक हो जाती है," उन्होंने आगे बताया।
इसके अलावा, उन्होंने औषधीय फसलों का भी खेती मॉडल बनाया हुआ है। इसमें मुख्य फसल शतावर होती है। इसके साथ अश्वगंधा और लहसुन लगा सकते हैं। शतावर की फसल आने में 18 महीने लगते हैं लेकिन इसके साथ अन्य औषधीय फसलें ली जा सकती हैं। उन्होंने ऐसे ही कई मॉडल बनाए हुए हैं जो वह खुद भी अपना रहे हैं और दूसरे किसानों को भी सिखा रहे हैं।
शुरू की गन्ना की प्रोसेसिंग
/hindi-betterindia/media/post_attachments/2020/12/IMG-20201201-WA0017.jpg)
जब दीपकांत और हिमांशु ने खेती शुरू की तब उन्होंने प्रोसेसिंग के बारे में नहीं सोचा था। उनका उद्देश्य खुद जैविक फसल उगाना और दूसरों को जैविक खेती से जोड़ना था। लेकिन जब वह दूसरे किसानों को जैविक खेती करने के लिए कहते तो एक समस्या उनके सामने आती कि जैविक फसल उगाने के बाद भी किसानों को बाज़ार में सामान्य फसल की ही कीमत मिलती थी। हर किसान के लिए अच्छी जगह मार्केटिंग करना संभव नहीं। ऐसे में, उन्होंने अपने साथ जुड़े किसानों की ज़िम्मेदारी ली और प्रोसेसिंग की शुरूआत की।
"हमने यह भी ध्यान दिया कि हमारी प्रोसेसिंग यूनिट में स्वच्छता बहुत ज्यादा हो। क्योंकि हमने जहाँ भी गन्ने की प्रोसेसिंग देखी वहाँ गंदगी भी देखी इसलिए हमने ठान लिया था कि हमारे यहाँ हर एक स्टेप पर साफ़-सफाई का ध्यान रखा जाएगा," उन्होंने आगे कहा।
कैसे करते हैं प्रोसेसिंग
- सबसे पहले गन्ने को साफ़ किया जाता है ताकि कोई मिट्टी, पत्ते न रह जाएं और फिर इनका रस निकाला जाता है।
- फिर इस रस को छाना जाता है और इसे एक स्टोरेज टैंक में स्टोर किया जाता है।
- यहाँ से रस को कढ़ाई तक पहुँचाया जाता है, सबसे पहली कढ़ाई में इसे गर्म किया जाता है।
- इसके बाद दूसरी कढ़ाई में यह और ज्यादा गर्म होता और इसके बाद इसे तीसरी कढ़ाई में पहुँचाया जाता है।
- तीसरी कढ़ाई में इसे और प्योरीफाई करने के लिए प्राकृतिक तत्व जैसे जंगली भिंडी और एलोवेरा का इस्तेमाल किया जाता है।
/hindi-betterindia/media/post_attachments/2020/12/IMG-20201201-WA0019.jpg)
दीपकांत कहते हैं कि बहुत से लोग इस प्योरीफाई वाले स्टेप पर केमिकल का इस्तेमाल भी करते हैं। लेकिन उनके यहाँ गन्ने से लेकर इसे गुड़ बनाने तक की प्रक्रिया में सभी कुछ जैविक और प्राकृतिक होता है। इसलिए ही उनके गुड़ (Organic Jaggery) की इतनी ज्यादा मांग है क्योंकि यह खाने में स्वादिष्ट और पोषण से भरपूर है।
- इस प्रक्रिया के बाद जब रस प्योरिफाई होकर चौथी कढ़ाई में पहुँचता है तो गुड़ का रूप लेने लगता है। इसमें गाढ़ापन आ जाता है।
- अब इसे चाक में डालकर फेंटा जाता है। चाक में ही अलग-अलग फ्लेवर के लिए दूसरी प्राकृतिक तत्व, जैसे हल्दी, आंवला, शतावर, अश्वगंधा, तिल-सोंठ मिलाते हैं।
दीप बताते हैं कि कच्ची हल्दी को कद्दुकस करके सुखाकर मिलाया जाता है तो आंवले को कद्दूकस करके, सुखाने के बाद हल्का भूनकर मिलाया जाता है। सोंठ के अलावा वह सभी कुछ अपने खेतों में उगा रहे हैं। सिर्फ सोंठ वह दूसरे किसानों से खरीदते हैं।
- कुछ समय बाद जब यह और गाढ़ा हो जाता है तो इसे स्टील की ट्रे में निकाला जाता है।
- ट्रे में गुड़ के हल्का ठंडा होने पर कटर से पीस काट देते हैं।
- और इस तरह आपका गुड़ तैयार है।
गुड़ (Organic Jaggery) तैयार होने के बाद इन्हें पेपर बॉक्स में पैक किया जाता है। वह आधा और एक किलो के पैक बना रहे हैं। उनका गुड़ फ़िलहाल, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र और उत्तर-प्रदेश के बहुत से शहरों में जा रहा है। उनके अपने इलाके के लोग उनके यहाँ आकर ही गुड़ खरीद लेते हैं।
/hindi-betterindia/media/post_attachments/2020/12/IMG-20201201-WA0023.jpg)
प्रोसेसिंग यूनिट में वह अपने खेत के गन्नों के साथ-साथ दूसरे जैविक किसानों से खरीदे हुए गन्ने भी प्रोसेस कर रहे हैं। इससे दूसरे किसानों को बाज़ारों में भटकना नहीं पड़ता है। उनकी इस एक प्रोसेसिंग यूनिट में 15 लोगों को रोजगार मिला है।
वीडियो देखें:
मुफ्त में देते हैं किसानों को ट्रेनिंग
खुद खेती में अच्छा मुनाफा लेने के साथ-साथ उनका एक उद्देश्य दूसरे किसानों को जैविक खेती से जोड़ना है। वह युवा से लेकर प्रौढ़ किसानों तक, सभी को जैविक खेती की ट्रेनिंग मुफ्त देते हैं। उन्होंने 'बुलंद' के नाम से अपना एक समूह बनाया है और अनुपशहर में किसानों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित करते हैं। शुरुआत में तो उन्होंने लगभग 100 किसानों को मुफ्त में ट्रेनिंग के साथ-साथ वेस्ट-डीकम्पोजर और 120 रुपये भी दिए। उनकी कोशिश सिर्फ लोगों को जैविक के बारे में जागरूक करने की है।
अब तक वह 800-900 किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग दे चुके हैं। इनमें कुछ उनकी अपनी तरह के युवा भी शामिल हैं जो अपनी पुश्तैनी खेती सम्भालना चाहते हैं लेकिन इसमें कुछ अलग करना चाहते हैं। वह बताते हैं, “सबसे पहले किसानों को जैविक और प्राकृतिक खादों के बारे में बताया जाता है। उन्हें समझाया जाता है कि जैविक खेती में बुवाई के लिए खेत कैसे तैयार करना है। इसके बाद बीजों को कैसे बुवाई के लिए ट्रीट करना है और फिर कैसे मिश्रित खेती करके वह अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।”
/hindi-betterindia/media/post_attachments/2020/12/Buland.jpg)
दीपकांत और हिमांशु कहते हैं कि अब तक वह अपने खेतों से अपनी आय दुगुनी करने में कामयाब रहे हैं। जिस 20 एकड़ पर वह खेती कर रहे हैं, उससे वह सालाना लगभग 35 लाख रुपये कमा लेते हैं।
आगे की योजना
दीपकांत और हिमांशु का कहना है कि खेती से वह अपनी कमाई कर पा रहे थे लेकिन प्रोसेसिंग से वह दूसरों को रोज़गार दे पा रहे हैं। इसलिए अब वह बागवानी के क्षेत्र में आगे बढ़ने की योजना बना रहे हैं। कुछ ज़मीन पर उनके यहाँ आम के पेड़ लगे हुए हैं, जिसमें पिछले दो सालों से किसी भी तरह का कोई रसायन उन्होंने नहीं दिया है। इसके साथ उन्होंने दूसरे फल और सब्जियों के पौधे भी लगाए हैं।
अगले साल से उनकी योजना अचार बनाने की है। इस प्रोसेसिंग यूनिट से वह गाँव की महिलाओं को रोजगार देंगे। "प्रोसेसिंग में काफी फायदा है। अगर आप खुद स्वस्थ उगा रहे हैं और फिर खुद उसका स्वस्थ उत्पाद बनाकर लोगों को स्वस्थ खिला पा रहे हैं, इससे अच्छा और क्या होगा? इसके साथ ही आप गाँव में रोज़गार ला रहे हैं। हमें बस यही चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा किसान जैविक से जुड़ें और प्रोसेसिंग के महत्व को समझें," उन्होंने अंत में कहा।
यदि आपकी रूचि जैविक खेती में है और आप दीपकांत और हिमांशु से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें 8445897271, 8923262884 पर कॉल कर सकते हैं।
वीडियो देखें:
यह भी पढ़ें: आँखों की बिमारी से छूटी पढ़ाई, पर एलोवेरा की खेती से खुद को और गाँव को बनाया आत्मनिर्भर
संपादन - जी. एन झा
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें [email protected] पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।
Organic Jaggery