'कभी किसी को खाना खिलाकर तो देखिए, इंसानियत का फर्ज निभाकर तो देखिए'
ये लाइन बिल्कुल फिट बैठती है लखनऊ के विशाल सिंह पर, जो पिछले 11 साल से अस्पतालों में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को को मुफ्त में खाना खिलाते हैं। उनके जीवन का एक ही मकसद है कि कोई भी गरीबी की वजह से भूखे पेट न सोये।
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39 वर्षीय विशाल सिंह के पिता बीमार थे और दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती थे। दवाई व इलाज के खर्चों के कारण विशाल को कई दिनों तक अस्पताल में भूखे रहना पड़ा और रैनबसेरे की शरण लेनी पड़ी। उस दौरान उन्होंने तमाम बेबस जिंदगियों को करीब से देखा और महसूस किया।
"जिस दिन पिताजी का देहांत हुआ उसी दिन मैंने ठान लिया था कि कुछ न कुछ ऐसा करूंगा जिससे लोगों की मदद हो सके। मैं लखनऊ वापस आया और अस्पतालों में भर्ती मरीजों की देखभाल करने वाले परिजनों और मौजूद बाकी लोगों को निशुल्क चाय देने का काम करने लगा। ये छोटी सी पहल धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी।" - विशाल
विशाल अब यहां के सरकारी अस्पतालों में इलाज करा रहे मरीज़ों के परिवारवालों को रोज फ्री में भोजन कराते हैं और सोने के लिए छत भी देते हैं। वह लखनऊ स्थित KGMU, लोहिया और बलरामपुर समेत कई अस्पतालों में मरीज़ों के परिवार वालों को दोनों वक्त का खाना फ्री में खिलाते हैं। लोगों को बड़े सलीके से एक साथ लाइन में बैठकार प्यार से खाना परोसा जाता है। निस्वार्थ सेवा में लगे विशाल हर रोज गरीब और जरूरतमंद लोगों को भी पेटभर खाना मुहैया कराते हैं।
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विशाल सिंह को आज पूरा लखनऊ फूडमैन के नाम से जानता है। 2005 में उन्होंने विजय श्री फांउडेशन शुरू किया ताकि और लोग भी मदद के लिए आगे आ सकें। विशाल बताते हैं कि अब सेंट्रलाइज़ किचन बनाया गया है जहां बड़ी सफाई के साथ खाना बनता है। रोजाना लगभग 1000 लोग यहां भोजन करते हैं लेकिन उनकी कोशिश है कि लखनऊ के सभी अस्पतालों में ये सेवा शुरू हो ताकि दिन भर में कम से कम 2500 लोगों को भोजन कराया जा सके।
टोकन से चलती है सारी व्यवस्था
विशाल का कहना है कि सभी को टोकन के जरिए खाना मिलता है। ये टोकन अस्पताल के वार्ड में जाते हैं और उसी के हिसाब से जो जरूरतमंद लोग हैं वो खाना खाने आते हैं। विशाल बताते हैं कि इतने लोगों का खाना बनवाना एक बड़ी जिम्मेदारी है इसलिए वह बाकी लोगों से भी मदद की अपील करते हैं कि जो लोग सेवाभाव से राशन या आर्थिक मदद करना चाहते हैं, वो कर सकते हैं।
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जरूरतमंदों को हर रोज भरपेट भोजन परोसा जाता है, जिसमें दाल, चावल, रोटी, सब्जी, पापड़, सलाद आदि शामिल होते हैं। खाने का मेन्यू भी हर दूसरे दिन बदल दिया जाता है। इस पूरे प्रबंध में हर रोज 10 से 12 हजार रुपए का खर्चा आता है। इस लिहाज से हर महीने तकरीबन 3 लाख रुपये खर्च होते हैं। लेकिन इस मुहिम से उन लोगों को सबसे ज्यादा मदद मिलती है जो मरीज़ों का इलाज कराने आते हैं और जो आर्थिक रूप से कमजोर होने की वजह से भूखे रह जाते थे। विशाल बताते हैं कि उन्होंने जीवन में बहुत ही खराब समय देखा है इसलिए उन्हें इस तकलीफ का अंदाजा है।
कई हस्तियों ने की तारीफ
विशाल का मानना है कि सेवा करने में जो सुख है वो कहीं और नहीं है। उन्होंने बताया कि इस काम के दौरान कई बार एक ऐसा भी समय आया, जब उनके पास पैसे नहीं थे और जिसकी वजह से वह डिप्रेशन में भी चले गए थे। लेकिन, आज जब बाकी लोग भी मदद के लिए आगे आ रहे हैं तो उन्हें लगता है कि उनकी मेहनत सफल हुई। लोग उनके इस नेक काम की सराहना करते हैं। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, पूर्व क्रिकेटर वीवीएस लक्ष्मण से लेकर कई हस्तियों ने उनकी इस मुहिम की सराहना की है। विशाल का अब यही मकसद है कि ये सेवा बाकी अस्पतालों के जरूरमंदों तक भी जल्द से जल्द पहुंचे।
रैन बसेरे की भी सुविधा
विशाल का फाउंडेशन सिर्फ खाना ही नहीं बल्कि जरूरतमंद लोगों को रहने के लिए छत भी देता है। अस्पताल के बाहर उन्होंने रैन बसेरे बनवाएं हैं जहां तीमारदार ठहर सकते हैं। ये टीनशेड से बने रैनबसेरे बड़े ही खूबसूरत तरीके से बनाये गए हैं जहां लेटने के लिए सिंगल बेड और चाय-पानी की भी व्यवस्था है।
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विशाल बताते हैं, "हम पहले लोगों को भोजन कराते थे लेकिन इस बार सर्दी में मैंने देखा कि कड़कड़ाती ठंड में लोगों के पास लेटने की जगह नहीं थी, ओढ़ने को कंबल नहीं थे इसलिए हमने रैनबसेरे बनवाए। मेडिकल कॉलेज में और लखनऊ के बाकी बड़े चौराहों में इन्हें बनाया गया है। ये इस तरीके से बनाए गए हैं कि इसमें हवा न जाए। सर्दियों में गरम पानी की भी व्यस्था की गई है।"
विशाल की ये पहल वाकई प्रेरणादायी है। अगर आप भी विशाल सिंह से जुड़ कर किसी तरह की मदद करना या जानकारी लेना चाहें तो इस नंबर पर कॉल कर सकते हैं - 9935888887
संपादन - अर्चना गुप्ता