नवरात्र के दौरान जब भी फलाहार के लिए कुछ लाना होता तो मम्मी कहा करती थी कि जाओ, व्रत वाले लड्डू ले आओ और मैं भी पड़ोस की दुकान से दौड़कर व्रत वाले लड्डू ले आती थी। एक पैकेट में छह या आठ लड्डू आते थे। अगर दो भी दिन में खा लिए जाएं तो लगता ही नहीं था कि पूरे दिन का उपवास किया है। इन ‘व्रत वाले लड्डुओं’ को चौलाई के लड्डू कहा जाता है, ये हाई स्कूल में आकर पता चला। लेकिन तब तक भी सिर्फ यही पता था कि ये चौलाई के पौधे के बीज से ये लड्डू बनते हैं और व्रत में खाये जाते हैं।
स्कूल के बाद कॉलेज के लिए पहले दिल्ली जाना हुआ और फिर हैदराबाद। मैं जिस भी शहर में रही, वहां व्रत के दिनों में चौलाई के लड्डू खोजा करती थी। दिल्ली में तो फिर भी दुकानों पर लड्डू दिख जाया करते थे। लेकिन हैदराबाद में लोगों को चौलाई कम समझ में आता था। मुझे लगता था कि वहां के लोग चौलाई नहीं जानते हैं। लेकिन कुछ साल पहले अहमदाबाद आई तो यहां पता चला कि चौलाई को और भी कई नामों से जाना जाता है। जैसे अहमदाबाद में इसे राजगिरा कहते हैं और किसी-किसी जगह रामदाना भी।
महानगरों में यह Amaranth के नाम से मशहूर है। वैसे तो चौलाई भारतीय फसल या पौधा भी नहीं है। माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति अफ्रीका के जंगलों में हुई है। वैज्ञानिक इसे ‘झूठा अनाज’ कहते हैं और जंगली घास की एक प्रजाति के रूप में दर्ज करते हैं। लेकिन पिछले सैकड़ों सालों से चौलाई भारत में उगाई जा रही है। इसलिए इसे देसी आहार कहा जाता है। भारत में हरी और लाल चौलाई उगाई जाती है। दोनों के ही पत्तों का साग बनाया जाता है। अपने घर में बागवानी करने वाली विजया तिवारी कहती हैं कि चौलाई को अगर एक बार लगा दिया जाए तो यह काफी फ़ैल जाती है। लम्बे समय तक आप इसके पत्तों का ताजा साग बनाकर खा सकते हैं।
चौलाई के पौधे से आने वाले बीजों को राजगिरा या रामदाना कहते हैं। इनसे लड्डू, चिक्की के साथ-साथ आटा भी बनाया जाता है। इस आटे से आप रोटी या पराठे बना सकते हैं। छोटे शहरों या गांव-देहात के ज्यादातर घरों में आज भी राजगिरा शायद व्रत-उपवास के दिनों में ही खाया जाता है। लेकिन बड़े शहरों की बात करें तो यहां राजगिरा उपवास का खाना नहीं है बल्कि खुद को हेल्दी और फिट रखने के लिए बहुत से जिम ट्रेनर और डायटीशियन द्वारा सुझाया जा रहा ‘सुपरफ़ूड’ है।
क्विनोआ से ज्यादा पोषक है राजगिरा
अपनी फिटनेस पर काम कर रहे लोग एक हेल्दी डाइट लेना चाहते हैं। जिससे उन्हें अच्छा पोषण मिले और उनका शरीर ऊर्जावान भी रहे। साथ ही, उनका वजन भी घटे। इसलिए अपने जिम ट्रेनर या डायटीशियन के सुझाव पर लोग क्विनोआ जैसे सुपरफूड अपनी डाइट में शामिल कर रहे हैं। पोषण के मामले में क्विनोआ बहुत ही अच्छा विकल्प है। लेकिन समस्या यह है कि क्विनोआ खरीदना सभी के लिए सम्भव नहीं है। यह विदेशी आहार है और इसलिए महंगा है।
गुरुग्राम में रहने वाली डायटीशियन और डायबिटीज एजुकेटर, अर्चना बत्रा कहती हैं कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि क्विनोआ से काफी पोषण मिलता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भारत में इसका कोई स्थानीय विकल्प नहीं है।
उन्होंने बताया कि भारत में पुराने समय से लोग राजगिरा का सेवन करते आ रहे हैं। क्योंकि बात अगर पोषण की हो तो क्विनोआ भी राजगिरा का मुक़ाबला नहीं कर सकता है। अर्चना के मुताबिक अगर कोई फिटनेस पर काम कर रहा है तो बिना किसी संकोच के राजगिरा को अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं।
क्योंकि राजगिरा में यह सब गुण होते हैं
*ग्लूटन फ्री: राजगिरा ग्लूटन फ्री होता है। इसलिए अगर किसी को लैक्टोस से एलर्जी है तो वे राजगिरा को अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं। दूसरे ग्लूटेन फ्री ग्रेन्स के मुकाबले में भी राजगिरा में ज्यादा पोषण होता है। इसमें मैंगनीज, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम जैसे सभी माइक्रोन्यूट्रिएंट होते हैं।
*प्रोटीन का पावर हाउस: राजगिरा में काफी ज्यादा मात्रा में प्रोटीन और सभी ज़रूरी एमिनो एसिड मौजूद होते हैं, जो आपको स्वस्थ रखने में मददगार हैं। इसमें कैल्शियम और आयरन भी होता है।
*फाइबर रिच: प्रोटीन और विटामिन की अच्छी मात्रा के साथ-साथ, राजगिरा फाइबर का भी अच्छा स्त्रोत है। इसलिए यह आपके पाचन तंत्र को अच्छा रखता है।
अर्चना कहती हैं कि फिटनेस या वजन कम करने के लिए ट्रेनिंग कर रहे लोग अपने डायटीशियन के सुझाव के अनुसार राजगिरा को अपनी डाइट में शामिल करें। लेकिन सामान्य तौर पर भी अगर कोई इसे अपनी डाइट में शामिल करना चाहता है तो कई तरह से कर सकते हैं। जैसे- बहुत से लोग इसे स्मूदी, लड्डू आदि बनाने में इस्तेमाल करते हैं। कई जगह राजगिरा के आटे की रोटियां भी खाई जाती हैं।
नासा ने दिया स्पेस मिशन में राजगिरा खाने का सुझाव
नेशनल जियोग्राफिक के मुताबिक राजगिरा की उत्पत्ति का इतिहास 5000 साल पुराना है। आज विश्व में राजगिरा की लगभग 60 प्रजातियां उगाई और खाई जा रही हैं। भारत, चीन, मेक्सिको जैसे देशों में सालों से उगाये जा रहे राजगिरा ने पिछले कुछ सालों में पश्चिमी देशों जैसे अमेरिका में भी अपनी जगह बना ली है। विदेशों में राजगिरा को काफी समय से खाया जा रहा है लेकिन इसे पहचान तब मिली जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने राजगिरा को ‘एक संतुलित आहार’ बताया और नासा ने भी स्पेस मिशन के दौरान राजगिरा का सेवन करने का सुझाव दिया।
कहते हैं कि 3 अक्टूबर, 1985 को अपनी पहली यात्रा करने वाले स्पेस शटल अटलांटिस में राजगिरा भेजा गया था। चालक दल के सदस्यों ने अंतरिक्ष में राजगिरा को अंकुरित करने का एक्सपेरिमेंट किया और नासा के शेफ ने मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के खाने के लिए राजगिरा की कुकीज़ तैयार की थी।
हैरानी की बात यह है कि राजगिरा का इतिहास इतना ज्यादा पुराना है लेकिन फिर भी बहुत से लोगों के लिए यह नयी बात है कि लोकल बाजारों में आसानी से मिलने वाला राजगिरा असल में ‘सुपरफूड’ है। एक कप पके हुए राजगिरा में 251 कैलोरी होती हैं और नौ ग्राम प्रोटीन। जबकि एक कप क्विनोआ में 222 कैलोरी और आठ ग्राम प्रोटीन होती है। तो अब सवाल यह है कि आप अपनी डाइट में क्या शामिल करना चाहेंगे? दूसरी जगहों से इम्पोर्ट होने वाला महंगा क्विनोआ या फिर स्थानीय किसानों द्वारा उगाया जाने वाला सस्ता और टिकाऊ राजगिरा।
संपादन- जी एन झा
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