ढलती उम्र के साथ लोग आराम से अपना जीवन जीने की चाह रखते हैं। लेकिन, आज हम आपको एक ऐसी महिला से मिलवाने जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी विटामिन डी की कमी को पूरा करने के लिए, घर पर ही एक जैविक गार्डन तैयार कर लिया। जी हाँ! हम बात कर रहे हैं, चेन्नई की 65 वर्षीया जयंती वैद्यनाथन की। जयंती को साल 2013 में अपनी विटामिन डी की कमी के बारे में पता चला। डॉक्टर ने उन्हें कुछ दवाई, ताजा फल-सब्जियां खाने और रोजाना आधा घंटा धूप में रहने के लिए कहा। बस फिर क्या था, जयंती ने अपने ही घर में हरी-भरी-बगिया लगाने की ठान ली। और आज उनकी बड़ी सी शानदार बगिया में 250 से भी ज्यादा फल, फूल और सब्जियों के पौधे लगे हुए हैं। है न दिलचस्प बात! तो, आइये विस्तार से जानते हैं मेडवक्कम, चेन्नई की (Terrace Gardening In Chennai) इस टेरेस गार्डनिंग एक्सपर्ट की रोचक कहानी।
जयंती कहती हैं, “डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाइयों के अलावा, मैं पालक की देसी और पोषक किस्मों को अपने आहार में शामिल करना चाहती थी। जिसके लिए मैंने अपनी छत पर, कुछ देसी किस्मों के पालक उगाने का फैसला किया।”
जयंती ने पालक की दो देसी किस्में – मुलई किरई (चौलाई) और पसलई किरई (पालक) को एक ग्रो बैग में उगाया, जिन्हें वह एक नर्सरी से खरीद कर लाई थीं। कुछ ही हफ्तों में, पौधे अच्छे से विकसित हो गये। इस तरह, इनकी ताजा हरी-भरी पोषक पत्तियों की कटाई कर, वह अपने आहार में इनका उपयोग करने लगीं। अपनी इस सफलता से उन्हें देसी किस्मों की फल-सब्जियां, फूलों तथा औषधीय पौधे उगाने की प्रेरणा मिली।
आज उनके घर में 250 से अधिक पौधे हैं। जिनमें 20 प्रकार की सब्जियां और छह किस्म की देसी पालक, 10 किस्म के गुड़हल आदि शामिल हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए, जयंती ने बताया कि वह कॉन्क्रीट से घिरी इमारतों के बीच, अपने इस टेरेस गार्डन का रखरखाव कैसे करती हैं।
जैविक पॉटिंग मिक्स और पुराने फ्रिज
पालक की पहली फसल के बाद, उन्होंने यह महसूस किया कि पालक स्वस्थ तरीके से नहीं उग रहे हैं। क्योंकि वह पॉटिंग मिक्स के तौर पर, अपने आँगन की मिट्टी का उपयोग कर रही थीं।
वह बताती हैं, “इस समस्या को दूर करने के लिए, मैंने चेन्नई के एक अनुभवी टेरेस गार्डनर द्वारा आयोजित एक वर्कशॉप में हिस्सा लिया। जिसमें मैंने जैविक पॉटिंग मिक्स बनाने के बारे में बहुत कुछ सीखा। उन्होंने हमें पॉटिंग मिक्स बनाने के लिए, सूखी पत्तियों और कोकोपीट के इस्तेमाल के बारे में सिखाया।
जैविक पॉटिंग मिक्स बनाने के लिए, उन्होंने यूट्यूब पर कई वीडियो देखे, ब्लॉग पढ़े और कई व्हाट्सऐप ग्रुप के माध्यम से कुछ जानकार गार्डनर से भी बात की। अपने पेड़-पौधों को अच्छे से विकसित करने के लिए, अब वह सूखी पत्तियों, खाद और रसोई के गीले कचरे से बने पोषक मिश्रण का उपयोग करती हैं।
जयंती ने अपने इस जैविक पॉटिंग मिक्स को टेराकोटा के कुछ गमलों में भर दिया। साथ ही, उनमें अन्य देसी पालक की किस्मों के बीज लगाए, जिसमें मुड़कतन किरई (Balloon Vine/कानफूटा) और पोनंगन्नी किरई (Dwarf Copperleaf/ गूधड़ीसाग) शामिल थे।
वह आगे बताती हैं, “नए जैविक पॉटिंग मिक्स के प्रयोग से, ये किस्में एकदम स्वस्थ हैं और अच्छी उपज दे रही हैं। पिछले सात सालों से, हम बाजार से पालक नहीं खरीद रहे हैं और घर में उगाई गई पालक का ही उपयोग कर रहे हैं।” साल 2014 में, उन्होंने कुछ अन्य प्रकार की फल-सब्जियां उगाने के लिए और अधिक ग्रो बैग खरीदे।
जयंती कहती हैं, “मैंने टमाटर, मिर्च, भिंडी और नींबू उगाने से शुरुआत की। व्हाट्सऐप ग्रुप के माध्यम से जुड़े कई गार्डनर से मैंने फल-सब्जियों के बीजों को खरीदा। उन्होंने मुझे इन्हें लगाने के तरीकों आदि के बारे में भी बताया।”
लौकी, मोरिंगा और नींबू आदि उगाने के लिए, जयंती ने पुराने फ्रिज और बाथ-टब को बेड बनाने के लिए रिसायकल किया। ये पुरानी चीजें, उन्होंने कबाड़ीवालों से 100 रुपये में खरीदीं। फ्रिज से दरवाजों को हटाकर, पानी के रिसाव के लिए उनमें छेद किया गया।
वह बताती हैं, “मैंने कबाड़ीवालों से 10 सिंगल डोर वाले फ्रिज और बाथ-टब खरीद कर, इन्हें रिसायकल किया। इसके बाद, मैंने इनमें सूखे पत्तों की एक परत बिछा कर, जैविक पॉटिंग मिक्स से भर दिया। जिनमें मैंने गोभी, मक्का, गन्ना आदि उगाये हैं और मोरिंगा तथा नींबू जैसे पेड़ भी इन फ्रिज में उगा रही हूँ।” जयंती आगे कहती हैं कि वह गाजर और मूली जैसी सब्जियां भी रिसायकल की गई प्लास्टिक की बोतलों में उगाती हैं।
इन तरीकों से घर पर बनाएं उर्वरक और कीटनाशक
जयंती रोजाना सुबह-शाम तीन घंटे अपने बगीचे में बिताती हैं। मिट्टी को स्वस्थ तथा उर्वरक बनाये रखने के लिए, खासकर गर्मियों के मौसम में वह अपने घर पर ही, कई तरीकों से जैविक खाद बना कर इनका उपयोग करती हैं। इसके लिए, वह किचन से निकलने वाले गीले कचरे तथा बचे हुए भोजन से जैविक खाद तैयार करती हैं। हालांकि दो साल पहले, उन्होंने ‘नेशनल सेंटर फॉर ऑर्गेनिक फार्मिंग’ (NCOF) द्वारा नवाचार किए गए ‘वेस्ट डीकंपोजर’ (WDC) घोल के बारे में सीखा।
वह कहती हैं, “वेस्ट डीकंपोजर घोल का उपयोग करते हुए, मैं दो किलो गुड़ और 200 लीटर पानी मिलाकर एक जैविक उर्वरक तैयार करती हूँ। इसके अलावा, मैं इस मिश्रण के एक हिस्से में पाँच हिस्सा पानी मिलाती हूँ और पोषण के रूप में, इन्हें अपने सभी पौधों में डाल देती हूँ। गर्मियों के महीनों में, अपने पौधों में पानी देने की बजाय, मैं उनमें खाद डालती हूँ। मेर लिए ये पौधे बच्चों की तरह हैं।”
इसके अलावा, वह गीले कचरे को डीकंपोज़ करने के लिए वेस्ट डीकंपोजर घोल का उपयोग करती हैं। वह आगे कहती हैं, “गीले कचरे को मिक्सर में अच्छे से पीस कर, एक सप्ताह के लिए डीकंपोज़ होने के लिए रख दिया जाता है। मैं खाद के एक हिस्से में पांच हिस्सा पानी मिलाती हूँ। फिर पौधों के पोषण के लिए, इस उर्वरक का उपयोग करती हूँ।”
जयंती बताती हैं कि वह यह सुनिश्चित करती हैं कि उनकी उपज हमेशा स्वस्थ रहे तथा किसी भी बीमारी से संक्रमित न हो। जिसके लिए वह छोटी-छोटी प्याज को रात भर भिगोती हैं और उन्हें अपने प्रत्येक गमले में लगा देती हैं।
जयंती बताती हैं, “प्याज से निकलने वाली तीखी गंध और अन्य एसिड के कारण, कीड़े-मकौड़े पौधों से दूर हो जाते हैं। कुछ प्याज तो गमलों में अच्छे से अंकुरित होकर बढ़ने भी लगती हैं।” उन्होंने बताया कि कीटों को दूर करने के लिए, वह इसी प्रकार लहसुन की कलियाँ भी लगाती हैं।
पिछले सात वर्षों से, जयंती की इस सुंदर सी बगिया से उन्हें न सिर्फ सकारात्मक उर्जा तथा खुशनुमा माहौल मिल रहा है बल्कि उनके बच्चों तथा पोते-पोतियों को अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने में भी मदद मिल रही है। जयंती ने गन्ना, मक्का, केला, ड्रैगन फ्रूट या कमलम, फूलगोभी, पत्तागोभी और कई अन्य पौधे उगाने के लिए भी प्रयोग किये हैं।
मूल लेख: रौशनी मुथुकुमार
संपादन- जी एन झा
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