Site icon The Better India – Hindi

भारत में सालों से उगाया जाने वाला Kodo Millet, दुनिया के लिए बन गया है ‘शुगर फ्री चावल’

Kodo Millet

आज के दौर में ऐसे बहुत से लोग हैं जो गेहूं और चावल की जगह अलग-अलग मिलेट्स को अपने आहार में शामिल कर रहे हैं। ज्वार, बाजरा, कंगनी, कोदो, रागी जैसे चारा घास फसलों के बीजों को मिलेट्स कहते हैं। 

बेंगलुरु में रहने वाले चोक्कलिंगम और उनका परिवार भी पिछले कई सालों से मिलेट्स को ही अपने आहार में शामिल कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्राचीन समय से उगाये जा रहे ये मिलेट्स, गेहूं और चावल के मुक़ाबले में ज्यादा पोषक और स्वास्थ्य के लिए गुणकारी होते हैं। “लोगों का मिलेट्स अपनाने के पीछे पोषण के अलावा, एक और मुख्य कारण है और वह है पानी। गेहूं और चावल की फसलों के मुक़ाबले मिलेट्स को बहुत ही कम पानी में उगाया जा सकता है। सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भी इनकी अच्छी फसल हो सकती है,” उन्होंने कहा। 

शायद यही वजह है कि अब न सिर्फ भारत में बल्कि दूसरे देशों में भी लोग चावल की बजाय मिलेट्स में विकल्प तलाशने लगे हैं। जल संकट, लोगों में घटता पोषण, ग्लूटन एलर्जी, डायबिटीज के बढ़ते मामले, ऐसे कई कारण है जिनकी वजह से एक बार फिर हमें अपने खान-पान पर सोचने की जरूरत है। 

आज हम आपको एक ऐसे ही मिलेट्स के बारे में बता रहे हैं, जो न सिर्फ भारतीयों बल्कि विदेशियों के बीच भी अपनी पहचान बना रहा है। इसका नाम है कोदो। 

Journal of Grain Processing and Storage में 2015 में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लगभग 3000 सालों से उगाये जा रहे कोदो को कोदों, कोदरा, हरका, वरगु, अरिकेलु जैसे नामों से भी जाना जाता है। वहीं, इसका वानस्पतिक नाम Paspalum scrobiculatum है। कोदो का पौधा देखने में धान के पौधे की तरह ही होता है। खास बात यह है कि इसकी खेती में धान से बहुत कम पानी की जरूरत होती है। भारत में कोदो महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक, तमिलनाडु के कुछ भाग, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल के कुछ भाग, बिहार, गुजरात और उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है। भारत के अलावा मुख्य रूप से इसे फिलिपींस, वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड और दक्षिण अफ्रीका में उगाया जाता है।

कहीं अकाल की फसल तो कहीं शुगर फ्री चावल

कोदो का इतिहास कई बरसों पुराना है और भारत के अलावा दूसरे देशों में भी यह लोगों के खान-पान का हिस्सा है। कोदो मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय अफ्रीका में उगाया जाने वाला अनाज है। यह आदिवासियों के लिए उनके मुख्य अनाजों में से एक रहा है। इसे कम से कम पानी वाली जगहों पर उगाना भी बहुत ही आसान है। कहते हैं कि जिस जमीन पर दूसरी फसलों की खेती सम्भव न हो, वहां भी आप कोदो की खेती कर सकते हैं। पश्चिमी अफ्रीका के जंगलों में कोदो एक बारहमासी फसल के रूप में उगाया जाता है और वहां इसे अकाल भोजन के रूप में जाना जाता है। 

पुराने समय में जब भी अकाल पड़ता था और गेहूं-धान की खेती नहीं हो पाती थी, ऐसे में ये चारा घास फसलें ही लोगों के लिए सहारा बनती थी। इसलिए कोदो को ‘अकाल का अनाज’ भी कहा जाये तो गलत नहीं होगा। इसके साथ ही, बहुत से लोग इसे ‘गरीब लोगों का चावल’ भी कह देते हैं। क्योंकि यह दिखने में छोटे चावल जैसा होता है। एशिया और अफ्रीका में इसे आम लोगों द्वारा अलग-अलग तरह से खाया जाता है। वहीं, पश्चिमी देशों में इसे पशु-पक्षियों के भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है। हालांकि, इसके पोषण को देखते हुए अब बहुत से विदेशी लोग इसे अपने खाने में भी शामिल करने लगे हैं। 

पिछले कुछ सालों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोदो की मांग बढ़ी है। इसे ‘शुगर फ्री चावल’ के नाम से जाना जा रहा है और इसलिए अब फ़ूड आउटलेट और होटलों में भी परोसा जा रहा है। भारत के ग्रामीण अंचलों में कोदो को लेकर यह लोकगीत खूब लोकप्रिय है: 

“कोदो कुटकी के भात खाले बीमारी भगा ले/

यह जिंदगी हवे सुन्दर छाया है रे/

हाय कोदो कुटकी के भात खाले चकोड़ा की भाजी/ सब दूर होवे रहे मन में राशि

मधु मोह-मोह-मोह सपा होवे न रोगी… “

Kodo Farming (Source)

क्यों है कोदो ‘सुपरफूड’

‘मिलेट मैन ऑफ़ इंडिया’ के नाम से प्रसिद्ध मैसूर के डॉ. खादर अली के अनुसार कोदो, सकारात्मक अनाजों (सिरिधान्य) में शामिल होता है। डॉ. खादर विदेश से अपनी अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर पिछले कई सालों से भारत में न सिर्फ मिलेट्स पर काम कर रहे हैं बल्कि लोगों को जागरूक भी कर रहे हैं। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस, बेंगलुरु से स्टेरॉइड्स के विषय पर अपनी पीएचडी करने के बाद, उन्होंने अमेरिका में एक कंपनी के साथ काम भी किया। 

उनका उद्देश्य लोगों को उनकी जड़ों की ओर लौटाना है ताकि आज की पीढ़ी भी वैसे ही स्वास्थ्य रहे जैसे कि हमारी पहली पीढियां रहती थीं। आज उनके पास जो भी लोग अपनी बीमारियां लेकर आते हैं, उन्हें वह अपने खान-पान में बदलाव लाने की सलाह देते हैं। वह उनसे पांच अनाजों को अपने खाने में शामिल करने के लिए कहते हैं, जिनमें कोदो का भी नाम है। 

उनके मुताबिक, ये सकारात्मक अनाज है, जिनमें चिकित्सीय गुण होते हैं और ये लोगों को कई तरह की बिमारियों से बचा सकता है। उनके अनुसार, ऐसा कोई भी खाना जो रक्त द्वारा अवशोषित होने के लिए ग्लूकोज और फ्रुक्टोज को तोड़ने में अधिक समय लेता है, हेल्दी होता है। जहां रागी इस काम में 2 घंटे लगाती है, मिलेट्स इसमें 6 घंटे लगाते हैं, जबकि चावल ये काम सिर्फ 45 मिनट में कर देता है, जिससे डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है।

बात अगर कोदो में उपलब्ध पोषण की करें तो अहमदाबाद की न्यूट्रिशनिस्ट, ख्याति प्रजापति बताती हैं कि कोदो ग्लूटन-फ्री होता है। इसमें प्रोटीन और फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है और फैट की मात्रा काफी कम। कोदो को पचाना बहुत ही आसान होता है। इसमें लेसीथिन की अच्छी मात्रा होती है और यह हमारे नर्वस सिस्टम के लिए काफी फायदेमंद रहता है। कोदो में नियासिन, बी6, फोलिक एसिड के साथ-साथ कैल्शियम, आयरन, पोटैशियम, मैग्नीशियम और जिंक जैसे मिनरल्स भी होते हैं। महिलाओं में जब माहवारी बंद होने लगती है तो उनके स्वास्थ्य के लिए भी कोदो को उत्तम बताया गया है। 

डायबिटीज के मरीजों के लिए भी कोदो बहुत ही बढ़िया है। साथ ही, अगर कोई वजन कम करना चाहता है तो वे भी कोदो को डाइट में शामिल कर सकते हैं। ख्याति महिलाओं को विशेष रूप से अपने भोजन में कोदो शामिल करने की सलाह देती हैं। उनका कहना है कि इसमें सभी जरुरी माइक्रोन्यूट्रिएंट मौजूद होते हैं जो महिलाओं के लिए पोषक होते हैं।

विदेशों में भी बढ़ रही है मांग

जहां भारत में पिछले कुछ समय से सरकार ने कोदो जैसे कई मोटे और छोटे दानों वाले अनाजों के उत्पादन पर गौर करना शुरू किया है। वहीं आज बहुत से स्टार्टअप और फ़ूड आउटलेट भी इनके उत्पाद लोगों तक पहुंचा रहे हैं। पुणे में अपना स्टार्टअप, Early Foods चलाने वाली शालिनी संतोष कुमार बताती हैं कि अपने बेटे के जन्म के बाद वह उसके लिए पोषक और रसायन मुक्त खाने के विकल्प तलाश रही थीं। लेकिन उन्हें यह जानकर बहुत हैरानी हुई कि बच्चों के खाने-पीने के लिए बहुत ही कम स्वस्थ और सुरक्षित विकल्प हैं। शालिनी कुछ ऐसा ढूंढ़ रहीं थीं, जिसमें अनाजों का इस्तेमाल किया गया हो क्योंकि यह सुपरफूड होता है। डॉक्टर भी सलाह देते हैं कि बच्चे की खुराक में यह ज़रूर शामिल करना चाहिए। लेकिन बाज़ार में बेबी फ़ूड के नाम पर प्रिज़रवेटिव से भरे हुए विकल्प ही थे।

ऐसे में, उन्होंने खुद रिसर्च करके अपना स्टार्टअप शुरू किया जिसके जरिये वह बच्चों और माँ के लिए पौष्टिक आहार बना रही हैं। उन्होंने बताया कि वह अपने कई उत्पादों में कोदो भी प्रयोग करती हैं। क्योंकि कोदो से कई तरह का पोषण मिलता है और कई बिमारियों में यह कारगर है। वह कोदो से दलिया और बिस्कुट बना रही हैं। उनके उत्पादों की मांग न सिर्फ भारत में बल्कि दूसरे देशों  में भी बढ़ रही है।

शालिनी ने बताया कि अप्रैल, 2021 में उन्होंने अपने उत्पाद उत्तरी अमेरिका में लॉन्च किए और उन्हें लगातार अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। अब तक वह 3500 से ज्यादा ऑर्डर पूरे कर चुकी हैं। वह कहती हैं कि मिलेटस की आज सभी जगह मांग है। सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी महिलाएं अपने बच्चों को इस तरह की हेल्दी चीजें खिलाना चाहती हैं, पर बाजार में उपलब्धता नहीं है। उन्हें ख़ुशी है कि वह बचपन से ही बच्चों के लिए कोदो मिलेट जैसे हेल्दी अनाजों से बने खाने उपलब्ध करा पा रही हैं।

आप उनके बनाए उत्पाद देखने के लिए https://earlyfoods.com/ पर जा सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

कवर फोटो

यह भी पढ़ें: नवरात्रि व्रत में खाया जाने वाला ‘मखाना’ है सेहत का खज़ाना, विदेशियों ने भी माना सुपर फूड

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

Exit mobile version