डिजिटल गांव के सपने को साकार करती, झारखंड की टैबलेट दीदी!

गोद में बच्चा और हाथो में टैबलेट ये नजारा झारखंड के गांवों में आम है, झारखंड के सुदूर गांवों की ये महिलाएं अपने घर- परिवार बच्चों का ध्यान रखने के साथ-साथ अपने घर को चलाने के लिए खूब मेहनत करती है। हाथ में टैबलेट लिये ये महिलाएं है झारखंड की 'टैबलेट दीदी'।

गोद में बच्चा और हाथो में टैबलेट ये नजारा झारखंड के गांवों में आम है, झारखंड के सुदूर गांवों की ये महिलाएं अपने घर- परिवार बच्चों का ध्यान रखने के साथ-साथ अपने घर को चलाने के लिए खूब मेहनत करती है। हाथ में टैबलेट लिये ये महिलाएं है झारखंड की ‘टैबलेट दीदी’।

तकनीक के इस युग में गांव की महिलाएं भी नई तकनीक के साथ कदमताल कर रही है। गांव में जितने भी स्वयं सहायता समूह होते है, उनके लेन-देन और बैठक के आंकड़ें ये टैबलेट के जरिए अपलोड करती है, जिससे रियल टाईम में ये आंकड़े झारखंड सरकार और भारत सरकार के एमआईएस में अपडेट हो जाता है।

कल तक दर्जनों रजिस्टर में स्वयं सहायता समूह का लेखा-जोखा रखने वाली ये महिलाएं आज पेपरलेस काम करती है। समूह का हर आंकड़ा इनके फिंगरटीप पर होता है।

When a women decides , she make a mountain move
टेबलेट पर काम करती झारखण्ड की ग्रामीण महिलायें

आज झारखंड की सैकड़ों महिलाए अपने में बदलाव महसूस कर रही है, जिन महिलाओं ने ये सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके पास अपना मोबाईल होगा, वो आज टैबलेट चला रही है। ये टैबलेट उनकी पहचान बन चुकी है। गांव की हर गली के लोग उनको टैबलेट दीदी के नाम से पुकारते है।

झारखंड के रांची, पाकुड़ और पश्चिमी सिंहभूम जिले में इस पहल को शुरू किया गया है, जिसे झारखंड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी के द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है। इसके तहत गांव की महिलाओं को टैबलेट प्रशिक्षण उपलब्ध कराकर बुक-कीपिंग का गुर सिखाया जाता है। ये महिलाएं गंव की उन चुनिंदा महिलाओं में से है जिनमें अदम्य इच्छाशक्ति है। टैबलेट दीदी के रुप में चुनी गई महिलाएं आज स्वयं सहायता समूह में बुककीपिंग के अलावा टैबलेट के जरिए गांव की महिलाओं को जागरुक भी करती है। टैबलेट दीदी के आने से एक ओर जहां समूह का लेखा जोखा पहले से अच्छा हो गया है वहीं गांव की गरीब महिलाओं को आजीविका के विभिन्न साधनों के बारे में जागरुक करने के लिए टैबलेट से फिल्म भी दिखाया जाता है।

टैबलेट दीदी खाली समय में गांव की महिलाओं को जागरूक करने के लिए सरकारी योजना, पशुपालन, खेती  की उन्नत विधियों से जुड़ी फिल्में भी दिखाती है।

Uma showing movie to women
टेबलेट दीदी , गाँव की महिलाओं को फिल्म दिखाते हुए

गरीबी को मात देकर बाहर निकली ये महिलाएं, आज टैबलेट दीदी के रुप में काम करके अपने घर को तो चला ही रही हैं साथ ही अपने इलाके से गरीबी को दूर करने के मिशन को भी जमीन पर उतार रही है।

द बेटर इंडिया की टीम जब टैबलेट दीदी से मिलने रांची के अनगड़ा प्रखण्ड के सोसो गांव में पहुंची तो वहां की टैबलेट दीदी-उमा, गांव की महिलाओं को बकरी पालन के गुर से संबंधित विडियो दिखा रही थी।

टीबीआई से बातचीत में उमा बताती है-

“टैबलेट तो अमीरों की चीज है। मैने कभी उम्मीद नहीं की थी कि मेरे पास भी टैबलेट होगा। आज मेरी पहचान टैबलेट से है और मैं इसके जरिए अपने गांव के सभी समूहों का आंकड़ा दर्ज करती हूं और दीदी लोगों को फिल्में भी दिखाती हूँ।”

Uma Tablet didi
उमा – टेबलेट दीदी

उमा बताती है कि-

“शुरू में  तो लगा कि मैंने कभी मोबाईल नहीं छुआ है, मैं कैसे टैबलेट चला पाउंगी, लेकिन कुल 7 दिन के प्रशिक्षण के बाद मुझे डेटा अपलोड, फिल्मे देखना, गेम खेलना, फोटो खीचना सब कुछ आता है। “

गेतलसूद की टैबलेट दीदी- बबली करमाली, बताती है कि-

“टैबलेट बेस्ड स्वलेखा एमआईएस के आने से गांव के समूहों के आंकड़ों में अब किसी तरह की गड़बड़ी नहीं हो सकती है और पल भर में साप्ताहिक बैठक से जुड़ी हर जानकारी हम देश-विदेश तक शेयर करते है।”

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गेतलसूद की टैबलेट दीदी- बबली करमाली

यह पहल ग्रामीण समाज में बदलाव लाने के अलावा गांव की महिलाओं को इंटरनेट और टैबलेट जैसे माध्यमों से जोड़कर उन्हे कुशल भी बना रहा है, जो आने वाले समय में इनके आजीविका का मुख्य साधन भी हो सकता है।

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टेबलेट चलाने का प्रशिक्षण लेती महिलायें

गांव की टैबलेट दीदी अपने गांव को डिजिटल गांव बनाने के लिए प्रयासरत है। गांव के माहौल में ये सिर्फ समूह से जुड़ा काम ही नहीं करती हैं बल्कि फुर्सत के पलों में इंटरनेट, ईमेल और फेसबुक पर भी रहती है।

आने वाले दिनों में टैबलेट दीदी के जरिए स्वयं सहायता समूह के उत्पादों की बिक्री की योजना है, जो जल्द ही धरातल पर उतरेगा। वहीं टैबलेट दीदी की सेवाओं को झारखंड सरकार के प्रस्तावित मोबाईल गवर्नेंस की विभिन्न सेवाओं से जोड़ने का प्रस्ताव भी है, ताकि गांव के स्तर पर इन सेवाओं का लाभ सभी ग्रामीणों को मिल सके।

कल तक टैबलेट को अमीरों की चीज समझने वाली गांव की ये महिलाएं आज टैबलेट दीदी के रुप में अपने नए रोल को बखूबी निभा रही है  और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया के सपनों को पंख देकर धरातल पर उतारने के लिए दिन रात मेहनत कर रही है। इनका सपना है की आने वाले दिनों में गांव के लोग भी इंटरनेट के जरिए हर काम घर बैठे कर सके।

भारत गांवो में बसता है और गांव समूह से बनता है…..  समूह अगर डिजिटल होगा तो डिजिटल गांव और डिजिटल इंडिया का सपना भी साकार होगा। प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया के सपने को साकार करने के लिए टैबलेट दीदी सुदूर गांव की आखिरी महिला तक को डिजिटल बनाकर इस पहल को धरातल पर उतारने में भागीदारी निभा रहा है।

 

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