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२६/११

कविता करकरे : शहीदों के परिवारों को हक़ दिलवाने के लिए लड़ती रही आख़िरी दम तक!

By मानबी कटोच

कविता सिर्फ़ एक शहिद की विधवा नही थी. वे इससे कई ज़्यादा थी. देश के लिए उन्होने जो कुछ किया उससे वे स्वयं एक शहिद कहलाई जाने की हक़दार है.