एक सफल उद्यमी शिल्पा कहती हैं,"मैंने अपने बेटे का वित्तीय भविष्य सुरक्षित कर लिया है।” उन्हें अक्सर प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों द्वारा अपनी ज़िंदगी की प्रेरणादायक कहानी साझा करने और बिजनेस मैनेजमेंट पर बात करने के लिए आमंत्रित भी किया जाता है।
2012 में, ‘गो ग्रीन विद टेट्रा पैक’ के तहत ‘कार्टन ले आओ, क्लासरूम बनाओ’ अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान के तहत, बेकार टेट्रा पैक को रीसायकल कर बेंच बनाया गया और ये बेंच सरकारी स्कूलों को दान दिए गए।
पहले ग्रामीण महिलाओं के सवाल होते थे, 'कोई और काम नहीं है क्या? यह तो मर्दों का काम है? पैंट-शर्ट कैसे पहनेंगे, आप साड़ी दे दो?' लेकिन आज यही महिलाएं अपनी यूनिफॉर्म पहनने में गर्व महसूस करतीं हैं!
रूरल हेल्थ केयर फाउंडेशन के सेंटर्स पर आने वाले मरीज़ों से कंसल्टेशन फीस मात्र 80 रुपये ली जाती है और उन्हें एक हफ्ते की दवाइयां मुफ्त में दी जाती हैं!
"हमारे पूर्वज अपने मनोरंजन के लिए बोर्ड गेम्स खेलते थे और यह सिर्फ खेल नहीं होता था। इनसे उनकी बौद्धिक क्षमता बढ़ती थी। मैंने सोचा कि क्यों न हमारी आने वाली पीढ़ी को इनसे रू- ब- रू कराया जाए ताकि उनमें बचपन से ही अच्छे गुरों का विकास हो।"
"एक गृहिणी भी बिज़नेस वुमन बन सकती है और इसके लिए सिर्फ़ तीन चीज़ें करनी हैं- टेक्नोलॉजी को ही नहीं बल्कि खुद को भी अपग्रेड करना, अपनी गलतियों से सीखना और लगातार मेहनत करते रहना।"