"मैंने अपनी पढ़ाई के दौरान एक विषय पढ़ा था 'एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग' यानी कि 'कृषि अभियांत्रिकी' और मुझे उस विषय में बहुत दिलचस्पी रहती थी। इसलिए, जब मुझे मशीन नहीं मिली तो मैंने सोचा कि क्यों न अपने अनुभव को इस्तेमाल करके किसानों की ज़रूरत के हिसाब से मशीन तैयार की जाए।"
'अगर दूसरों के कॉपी करने से मेरा यह डिजाईन देशभर के किसानों तक पहुँच सकता है और उनके लिए हितकर हो रहा है तो कोई दिक्कत नहीं है। क्योंकि हमारा उद्देश्य किसानों की भलाई है।'
धर्मबीर (Dharambir Kamboj) बताते हैं कि उनकी बेटी सिर्फ़ 3 दिन की थी, जब वे दिल्ली के लिए निकले। आर्थिक तंगी इतनी थी कि गाँव से दिल्ली जाते वक़्त उनकी जेब में सिर्फ़ 70 रुपये थे, जिसमें से 35 रुपये किराए में खर्च हो गए।