वरिष्ठ कवि उदयप्रकाश जी की कविता प्रस्तुत कर रहे हैं वरुण ग्रोवर. इस कविता का शीर्षक है 'चलो कुछ बन जाते हैं'. और वीडियो देखने के बाद अपना फ़ोन, कम्प्यूटर बंद कर दें और अपना सप्ताहांत प्यार-व्यार-और अभिसार की बातों, ख़यालों में बितायें:)
आज़ादी के सात वर्षो बाद रामधारी सिंह 'दिनकर' की लिखी एक कविता 'समर शेष है' आज भी मानो उतनी ही प्रासंगिक है! ये कविता ' याद दिलाती है कि आज भी दिल्ली में तो रौशनी है पर सकल देश में अँधियारा है!
रूमी : हम तो सब कुछ ढूँढ रहे हैं - पैसा, नाम, काम, कर्म, भगवान, दोस्त, प्रेमी, सुख, पहाड़, समुद्र, तैरना, उड़ना, टूटना, जुड़ना.. पर क्या ये सब हमें ढूँढ रहे हैं?'