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मिट्टी, पत्थर और लकड़ी से बना हिमाचल का सस्टेनेबल होमस्टे ‘जंगल हट’

त्रिशूर, केरल के रहने वाले अतुल बोस ने डिग्री तो मैकेनिकल इंजीनियरिंग की ली, लेकिन आज वह एक ट्रैवलर हैं और साथ ही ‘जंगल हट’ नाम से अपना एक होमस्टे भी चला रहे हैंं। उन्हें हमेशा से ही घूमने और एडवेंचर का शौक़ था। 2010 में उन्होंने अपनी स्पोर्ट बाइक पर हैदराबाद से कन्याकुमारी तक का सफ़र 36 घंटे से भी कम समय में तय करके इंटरनेशनल बाइकिंग अवॉर्ड जीता था।

21 साल की उम्र में यह चैलेंज जीतने के बाद, उन्होंने अपने पैशन को आगे बढ़ाते हुए पूरे भारत और भूटान की यात्रा की। फिर साल 2013-14 के बीच अतुल, ट्रैवलिंग से ब्रेक लेकर अपना फैमिली बिज़नेस संभालने में लग गए और साथ ही उन्होंने अपनी एक राइडिंग गियर्स की शॉप खोली। इस काम ने उन्हें एक बार फिर ट्रैवलिंग से जोड़ दिया, अब वह लोगों के लिए ट्रिप प्लान करे लगे और खुद भी उनमें से कई ट्रिप्स पर जाने लगे। 

इस तरह जब बाइक ट्रिप्स पर हिमाचल, लेह, लद्दाख जैसी जगहें जाना उनके लिए आम हो गया, तो उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर वहां एक होमस्टे बनाने के बारे में सोचा। अब अतुल एक ऐसे घर की तलाश में थे, जहां वह अपने जैसे मुसाफिरों के लिए शांति भरा एक आशियाना बना सकें। कई महीनों की तलाश के बाद, उन्हें मनाली से 8 Km दूर कन्याल गांव में एक ट्रेक के दौरान 20 साल पुराना घर दिखा, जो पत्थर और लकड़ी से बना था। 

20 साल पुरानी झोपड़ी को दिया नया लुक, बनाया जंगल हट

अतुल को यह घर इतना पसंद आया कि उन्होंने इसकी मरम्मत करने की ठानी और 2 महीनों की मशक्कत के बाद तैयार हुआ ‘जंगल हट’ होमस्टे। इसे बनाने के लिए रॉक स्टोन और रीसायकल की हुई लकड़ी के साथ-साथ मिट्टी और गाय के गोबर का एक अनूठा मिश्रण इस्तेमाल किया गया, जो कमरों को गरम रखने में मदद करता है। 

यहां रूम्स और कॉटेज दोनों तरह की सुविधाएं हैं। शहर के शोर-शराबे से दूर, प्रकृति के करीब ‘जंगल हट’ आने वाले मेहमानों को सुकून और शांति का एहसास देता है। यहाँ एक ऑर्गेनिक सब्जियों का फार्म भी है, जिसमें उगने वाली सब्जियों का इस्तेमाल होमस्टे में बनने वाले खाने में किया जाता है। 

अतुल इस फार्म में और भी कई तरह की सब्ज़ियां उगाना चाहते हैं और इस पूरी प्रॉपर्टी को सोलर पैनल से चलाने की भी तैयारी कर रहे हैं। सालों से हिमाचल में रहकर अपना होमस्टे चला रहे अतुल कहते हैं- “मुझे इस बात का कोई अफ़सोस नहीं है कि इंजीनियरिंग के बाद मैंने कोई नौकरी नहीं की या विदेश में जाकर नहीं बसा।” 

संपादन- अर्चना दुबे

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