बिहार के सीवान जिले के एक पारंपरिक गांव पंजवार की रहनेवाली नाजिया खातून, 10वीं कक्षा में पढ़ाई कर रही हैं। बचपन से ही उन्हें खेलने-कूदने का बड़ा शौक़ था। लेकिन उनके गांव में कुछ साल पहले तक न खेलकूद की बहुत अधिक सुविधा थी और ना ही इतनी जागरूकता। उनका परिवार आर्थिक रूप से कमज़ोर था। नाज़िया जहां से आती हैं, वहां लड़कियों के लिए खेलने-कूदने की बात सोची भी नहीं जा सकती थी।
लेकिन उनके पिता की सोच थोड़ी अलग थी, वह अपनी बेटियों के हर शौक को पूरा करना चाहते थे। दिसंबर, 2018 में गांव के युवकों ने मिलकर लड़कियों के लिए एक खेल प्रशिक्षण केंद्र खोला, तो पहले ही लॉट में नाजिया वहां पहुंच गईं। गरीब पिता ने हैसियत से आगे बढ़कर एक साइकिल खरीद कर दे दी और नाज़िया रोज़ साइकिल चलाकर हॉकी सीखने जाने लगीं। उनके पिता ने तो उनकी उम्मीदों को पंख लगा ही दिए थे, साथ ही नाज़िया ने अपने बेहतर खेल से यह भी साबित कर दिया कि उनमें काबिलियत है कुछ कर दिखाने की।
छिन गया पिता का साया
नाज़िया अभी हॉकी खेलना सीख ही रही थीं कि पिछले साल कोरोना में पिता की मृत्यु हो गई। लगा कि अब खेलना-कूदना बंद हो जाएगा। अचानक नाज़िया के कंधों पर परिवार की ज़िम्मेदारी आ गई। उन्हें, पहले मां और भाई-बहनों के खाने-पीने का इंतजाम करना था। उन्हें लगने लगे कि शायद उनकी उड़ान इतनी ही थी। लेकिन गांव के युवाओं ने मिलकर उनके परिवार के बोझ को उठा लिया और ऐसा इंतजाम किया कि नाज़िया के खेल पर असर ना पड़े।
आज वह बिहार राज्य की जूनियर हॉकी टीम का हिस्सा हैं और इन दिनों झारखंड के सिमडेगा में नेशनल हॉकी जूनियर टूर्नामेंट में खेल रही हैं। बिहार जूनियर टीम में उनके साथ, गांव के प्रशिक्षण केंद्र की एक और खिलाड़ी लक्ष्मी भी हैं। महज तीन साल पहले शुरू हुए पंजवार गांव के मेरीकॉम स्पोर्ट्स एकेडमी की दो-दो लड़कियों का चयन बिहार की राज्य स्तरीय टीम में होना एक अनूठी उपलब्धि है। इस उपलब्धि से अचानक पंजवार और आसपास के गांव की लड़कियां जोश से भर उठी हैं।
यहां नमस्ते नहीं, जय हिन्द कहकर करते हैं अभिवादन
पंजवार गांव के कुछ जागरूक युवाओं ने वहां के एक धुनी बुजुर्ग की अगुआई में, साल 2018 में इस मेरीकॉम स्पोर्ट्स एकेडमी को शुरू किया था। आज यहां सौ से अधिक लड़कियां, हॉकी, फुटबॉल, क्रिकेट आदि खेलना सीख रही हैं। इन लड़कियों में कक्षा दो में पढ़ने वाली सलोनी कुमारी और मुस्कान खातून से लेकर बारहवीं की छात्रा ख्याति और नीति तक हैं। इन सबकी आंखों में एक ही सपना है, टीम इंडिया का हिस्सा बनना, भारत के लिए खेलना। जोश से भरी ये लड़कियां जय हिंद कहकर लोगों का अभिवादन करती हैं।
बिहार के सीवान जिले जैसे ठेठ पारंपरिक भोजपुरी इलाके में कुछ साल पहले तक लड़कियां हाफ पैंट में घूमने निकल जाती थीं, तो समाज के लोगों की भौहें तन जाती थीं। मगर इस स्पोर्ट्स एकेडमी ने पूरे इलाके के लोगों का नजरिया बदल दिया है। लोग खुद अपनी बेटियों को खेलने के लिए इस एकेडमी में भेजते हैं। सुबह और शाम के वक्त इन लड़कियों की ट्रेनिंग होती है और इनमें से चुनिंदा लड़कियां खेलने के लिए अकेले दूर-दराज के इलाकों तक जाती हैं। यहां की चार लड़कियों का चयन बिहार सरकार के स्पोर्ट्स ट्रेनिंग सेंटर एकलव्य के लिए हो चुका है।
वैसे तो पंजवार गांव काफी दिनों से एक प्रगतिशील गांव माना जाता रहा है। इस गांव में एक रिटायर बुजुर्ग घनश्याम शुक्ल ने लोगों के सांस्कृतिक और शैक्षणिक विकास के लिए काफी काम किया। उन्होंने 1982 में ही लड़कियों के लिए हाई स्कूल की शुरुआत की और फिर एक संगीत महाविद्यालय खोला। उनकी अगुआई में हर साल गांव में आखर महोत्सव का आयोजन होता है, जिसमें देश और विदेश से भोजपुरी साहित्य, कला और संस्कृति से जुड़े लोग जुटते हैं। इस वजह से गांव भर के युवा उनके विचारों को आगे बढ़ाने में जुटे रहते हैं।
लड़कियों को खेल सिखाने का विचार कैसे आया?
लड़कियों को खेल सिखाने की इस योजना के शुरुआत की कहानी बताते हुए गांव के एक प्रगतिशील युवक संजय सिंह कहते हैं, “एक मैदान में कुछ लड़के क्रिकेट खेल रहे थे, तभी एक नौ साल की लड़की हमारे गुरुजी धनश्याम शुक्ला के पास आकर बोली, ‘गुरुजी, हमनी के किरकेट नैखे खेल सकेलीं?’ मतलब गुरुजी, क्या हमलोग क्रिकेट नहीं खेल सकते? यह बात गुरुजी के मन में संकल्प के रूप में बैठ गई। उन्होंने तय कर लिया कि अब गांव की लड़कियां भी खेलेंगी।”
संजय ने बताया, “इसी संकल्प की बदौलत 25 दिसंबर, 2018 को गांव में मेरीकॉम स्पोर्ट्स एकेडमी की स्थापना हुई। चंदा इकट्ठा करके खेल उपकरण खरीदे गए, लड़कियों की ट्रेनिंग होने लगी। खेलकूद में रुचि रखनेवाले गांव के ही एक शिक्षक संतोष कुमार सिंह उनके नियमित ट्रेनर बन गए। समय-समय पर विशेषज्ञों को बुलाया जाने लगा और आज तीन साल बाद इस प्रयास का नतीजा आने लगा है। चार लड़कियां बिहार सरकार के एकलव्य स्पोर्ट्स एकेडमी में सलेक्ट हुईं, इनमें से दो अब बिहार की टीम का हिस्सा हैं। इस सफलता ने दूसरी लड़कियों के लिए भी प्रेरणा का काम किया है, हमलोग भी उत्साहित होकर एकेडमी को आवासीय बनाने की तैयारी कर रहे हैं।”
“चाहे जितनी मेहनत करनी पड़े, इंडिया के लिए खेल कर ही रहेंगे”
इस एकेडमी की स्थापना के पीछे सीवान जिले के मैरवा में 2009 में शुरू हुई रानी लक्ष्मीबाई स्पोर्ट्स एकेडमी की बड़ी भूमिका है। इसकी कहानी पहले द बेटर इंडिया में प्रकाशित हो चुकी है। व्यक्तिगत प्रयास से इस एकेडमी को संचालित करने वाले संजय पाठक ने पंजवारा की एकेडमी की स्थापना में काफी सहयोग किया है। वह सीवान जिले के जिला खेल सचिव भी हैं।
संजय सिंह कहते हैं, “संजय पाठक के प्रयास से पंजवार में 2019 में स्टेट लेवल सब जूनियर हॉकी टूर्नामेंट का आयोजन हुआ था। 4-5 दिन तक चले आयोजन को देखकर गांव की लड़कियों में खेल सीखने की भावना भी जगी और उन्होंने खेल की तकनीक को भी सीखा। घनश्याम शुक्ला (गुरुजी) कहते हैं, “संजय पाठक जी ने इस एकेडमी के संचालन में कदम-कदम पर हमारी मदद की।”
इस एकेडमी में अब आसपास के कई गांवों की लड़कियां खेल सीखने पहुंचने लगी हैं। दो लड़कियों के चयनित होने से अब गांव के युवक भी उत्साहित हो रहे हैं। वे स्पोर्टस एकेडमी को आवासीय बनाने की बात सोचने लगे हैं। इस बीच यहां हॉकी सीख रहीं नीति, अबिशा, शगुन, अदिति, मनीषा, निधि, माला, सिद्धि, पल्लवी, मेघा, छोटी, पूजा, अनुष्का, साक्षी जैसी दर्जनों लड़कियां का कहना है कि चाहे जितनी मेहनत करनी पड़े, इंडिया टीम के लिए खेल कर ही रहेंगे।
संपादनः अर्चना दुबे
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