इस गांव ने दिए सबसे अधिक हॉकी प्लेयर्स, जिन्होंने देश के लिए जीता ओलिंपिक मेडल

Indian hockey team won medal

मिठ्ठापुर की सुरजीत हॉकी एकेडमी के आठ खिलाड़ी इस साल टोक्यो ओलंपिक 2021, में खेल रहे हैं, जिनमें से तीन खिलाड़ी तो मीठ्ठापुर के ही रहने वाले हैं। पढ़ें, कौन हैं वे खिलाड़ी

हुनर, प्रतिभा, खेल और खिलाड़ी, ये ऐसे शब्द हैं, जिनसे जन्म लेती है प्रेरणा, और फिर प्रेरणा से जन्म होता है नये युवा हुनरबाज़ों व खिलाड़ियों का। संघर्षों पर सवार होकर, जब सफलता की दूरी तय की जाती है, तब लिखा जाता है इतिहास। ऐसा ही एक इतिहास है पंजाब के एक शहर जालंधर का, जिसने अब तक देश के सबसे अधिक ओलंपिक खिलाड़ी दिए हैं। यहां के दो गांव, संसारपुर और मिठ्ठापुर की मिट्टी में देश के कई बड़े हॉकी खिलाड़ी (Indian hockey Players) पले-बढ़े।

मिठ्ठापुर की सुरजीत हॉकी एकेडमी के आठ खिलाड़ी इस साल टोक्यो ओलंपिक 2021, में खेल रहे हैं। इनमें से तीन खिलाड़ी तो मीठ्ठापुर के ही रहनेवाले हैं। हॉकी टीम की कप्तानी करनेवाले मनप्रीत के अलावा, हॉकी प्लेयर मनदीप सिंह और वरुण भी इसी गांव के रहनेवाले हैं।

भारतीय हॉकी टीम में खेलनेवाले, मनप्रीत सिंह, मनदीप सिंह, हार्दिक सिंह, सिमरनजीत सिंह, वरुण कुमार, हरमनप्रीत सिंह, शमशेर सिंह और दिलप्रीत सिंह, इन सभी 8 खिलाड़ियों को सुरजीत हॉकी एकेडमी ने ही नर्चर किया है। वहीं महिला हॉकी में अपना बेहतर प्रदर्शन करने वाली गुरजीत कौर भी इसी एकेडमी की खिलाड़ी हैं।

हॉकी की नर्सरी है, यह गांव

Mithapur the village of Skill master Olympian Kulwant Singh
Hockey Players Kulwant Singh (Source: Instagram)

संसारपुर को ‘हॉकी की नर्सरी’ कहा जाता है।  इस गांव से निकले 14 ओलंपियन खिलाड़ियों ने देश का प्रतिनिधित्व करते हुए भारत के लिए 27 मेडल जीते हैं। संसारपुर, दुनिया का एकमात्र ऐसा गांव है, जिसने भारत ही नहीं, पूरी दुनिया को सबसे ज्यादा हॉकी प्लेयर्स दिए हैं। इस गांव से सबसे पहले कर्नल गुरमीत सिंह ने, साल 1932 के लॉस एजेंल्स ओलंपिक खेलों में भारतीय टीम का नेतृत्व किया। उसके बाद तो लगातार इस गांव से निकले खिलाड़ी, भारतीय टीम में शामिल होने लगे। सूबेदार ठाकुर सिंह, संसारपुर के पहले हॉकी खिलाड़ी थे, जो भारतीय हॉकी टीम की ओर से विदेश दौरे पर गए थे।

अंग्रेज सैनिकों से मिली थी हॉकी खेलने की प्रेरणा

कंटोनमेंट रीजन से लगे संसारपुर के लोगों को, हॉकी खेलने की प्रेरणा, अंग्रेज सैनिकों से मिली। इसके बाद, इसी गांव के रहनेवाले, अजीत पाल सिंह ने भारतीय हॉकी टीम को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। अजीत पाल सिंह की कप्तानी में भारत ने, साल 1975 में पहली बार हॉकी वर्ल्ड कप जीता था। उस टीम के एक अन्य सदस्य वरिंदर सिंह भी इसी गांव में पैदा हुए थे।

संसारपुर के कई खिलाड़ी, दूसरे देशों की ओर से भी खेल चुके हैं। ओलंपियन कर्नल गुरमीत सिंह (फर्स्ट सिख इन द वर्ल्ड गोल्ड मेडलिस्ट), ऊधम सिंह, गुरदेव सिंह, दर्शन सिंह, कर्नल बलबीर सिंह, बलबीर सिंह, जगजीत सिंह, अजीत पॉल सिंह, गुरजीत सिंह कुलार, तरसेम सिंह, हरदयाल सिंह, हरदेव सिंह, जगजीत सिंह और बिंदी कुलार, ऐसे खिलाड़ी हैं, जो कनाडा की तरफ से खेल चुके हैं।

एक गांव से दूसरे गांव को मिली प्रेरणा

एक समय था, जब जालंधर के कंटोनमेंट एरिया से लगे संसारपुर गाँव ने, भारतीय हॉकी में अपना दबदबा बनाया था। इस छोटी-सी बस्ती ने, देश को करीब एक दर्जन ओलंपिक पदक विजेता दिए। हॉकी कल्चर के कारण आस-पास के गाँवों को भी काफी फायदा हुआ। आजादी से पहले, संसारपुर को ब्रिटिश सेना से जो खेल मिला, वह धीरे-धीरे आस-पास के क्षेत्रों में भी खेला जाने लगा। समय के साथ-साथ, इसमें लोगों की दिलचस्पी बढ़ने लगी और कई गांवों के खिलाड़ी, अलग-अलग इवेंट्स में हॉकी खेलने के लिए हिस्सा लेने लगे। मिठ्ठापुर भी ऐसा ही एक गांव था।

मिठ्ठापुर, हॉकी को लेकर लाइम लाईट में तब आया, जब अपने समय के बेहतरीन हॉकी प्लेयर परगट सिंह, ओलंपिक में खेलने के लिए गए।उन्होंने लगातार दो बार ओलंपिक खेलों में देश का नेतृत्व किया। इसके बाद 90 के दशक में, मिठ्ठापुर वह गांव बना, जिसे हॉकी, संसारपुर से विरासत में मिली। परगट सिंह से पहले, सन् 1952 में गांव के सरूप सिंह और 1972 में कुलवंत सिंह ने ओलंपिक में हिस्सा लिया था।

टोक्यो ओलंपिक में खेल रहे ज्यादातर खिलाड़ियों में, इस खेल के प्रति और अधिक रुचि तब बढ़ी, जब परगट सिंह खेल निदेशक बने। उन्होंने गांव के बच्चों को एस्ट्रोटर्फ पर खेलने के अलावा, पंजाब राज्य लीग में खेलने का मौका दिया, इस लीग में 400 टीमें थीं। इस लीग ने भी राज्य में हॉकी को व्यापक स्तर पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

Mithapur, The Village of Padma shri Pargat Singh, 3 Times Olympian and former Captain of Indian hockey team.
Pargat Singh, former Captain of Indian hockey team (Source: Instagram)

जब खेल से ज्यादा बड़ा हो गया विदेश जाने का सपना

गांव में एक समय ऐसा भी आया, जब संसारपुर के लोगों में विदेश जाने की होड़ सी लग गई। उस वक्त यहां के लोगों के लिए, विदेश जाने के सपने से ज़रूरी कुछ नहीं था। मिठ्ठापुर के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ। जालंधर में लगभग विलीन हो चुके उस गाँव में, बस कॉन्क्रीट के जंगल ही रह गए। बड़े-बड़े घरों और हवेलियों वाले गांव में इमारतें तो रहीं, लेकिन इनमें से आधे खाली हो गयीं। क्योंकि, उनके मालिक विदेशों में जाकर बस गए। ये बड़े-बड़े खाली घर, कई पीढ़ियों को बेहतर जीवन के लिए विदेश जाने के लिए प्रेरित करते रहे।

बदल रही युवाओं की सोच

बीते कुछ सालों में, संसारपुर की विरासत को मिठ्ठापुर ने काफी अच्छे से संभाला है। साथ ही संसारपुर में भी, हॉकी फिर से उभरने लगी है। युवाओं में एक बार फिर हॉकी खेलने में दिलचस्पी बढ़ी है। अब यहां के युवा विदेश जाने के सपने से ज्यादा, राष्ट्रीय जर्सी पहनने के सपने देखते हैं। शायद इसी सपने का परिणाम है टोक्यो ओलंपिक में, भारतीय हॉकी टीम का शानदार प्रदर्शन और 41 साल के बाद, मिला कांस्य पदक।

पंजाब के मुख्य हॉकी कोच राजिंदर सिंह (द्रोणाचार्य अवॉर्ड) जूनियर ने एक इंटरव्यू में कहा, ”महिला और पुरुष हॉकी के बेहतर प्रदर्शन के कारण जालंधर में हॉकी खिलाड़ियों के मन में भी अपने देश के लिए कुछ करने का जज्बा और बढ़ा है। उनके सीनियर, टोक्यो में भारत का नाम रोशन कर रहे हैं और आने वाले समय में, ये खिलाड़ी भी भारत के लिए खेलेंगे।”

द बेटर इंडिया कामना करता है कि ये सभी खिलाड़ी, और अधिक सफल बनें और नईं ऊचाइयों को छुएं।

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संपादन – मानबी कटोच

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