रानी रामपाल: गरीबी, विरोध और समाज के तानों से लड़कर, बनी भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान!

हरियाणा से ताल्लुक रखने वाली रानी रामपाल, भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान हैं। उनकी कप्तानी में महिला हॉकी टीम को आज वैश्विक स्तर पर जाना जा रहा है। हालांकि, रानी का यहाँ तक का सफ़र बहुत संघर्ष भरा रहा है। पर आज वे खुद सफल होने के साथ-साथ युवा खिलाड़ियों को मौके दे रही हैं।

रियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में स्थित शाहाबाद मारकंडा से ताल्लुक रखने वाली रानी रामपाल ने छह साल की उम्र में हॉकी खेलना शुरू किया था। आज वे भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान हैं और उनकी कप्तानी में टीम अपनी एक वैश्विक पहचान बना रही है।

शाहबाद को ‘हरियाणा का संसारपुर’ (संसारपुर पंजाब में है और हॉकी के लिए मशहूर है) कहा जाता है। यहाँ से भारत को महिला टीम की पूर्वकप्तान ऋतू रानी, रजनी बाला, नवनीत कौर, ड्रैग फ्लिकर संदीप सिंह और संदीप कौर जैसे मशहूर हॉकी खिलाड़ी मिले हैं। पर इसके बावजूद भी रानी रामपाल का सफ़र बिल्कुल भी आसान नहीं रहा।

जब वरिष्ठ भारतीय महिला हॉकी टीम के लिए रानी का चयन हुआ, तब वे सिर्फ़ 14 साल की थीं और टीम की सबसे युवा खिलाड़ी थीं।

साल 1980 में हुए समर ओलिंपिक के पूरे 36 साल बाद, साल 2016 में ओलिंपिक के लिए भारत ने क्वालीफाई किया और इस चयन का पूरा श्रेय उस विजयी गोल को जाता है, जो रानी रामपाल ने किया था।

रानी रामपाल (स्त्रोत: प्रजापति दलबीर बजीणा/फेसबुक)

पिछले लंबे समय से हरियाणा के एक मजदूर की यह दृढ संकल्पी बेटी, हर साल अपने बेहतरीन खेल से देश के लोगों का दिल जीत रही है। आज द बेटर इंडिया के साथ पढ़िये रानी रामपाल की प्रेरणात्मक कहानी!

फ़िलहाल, वे वरिष्ठ राष्ट्रीय महिला हॉकी टीम की कप्तान हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “मैं ऐसी जगह पर पली- बढ़ी हूँ, जहाँ महिलाओं और लड़कियों को घर की चारदीवारी में रखा जाता है। इसलिए जब मैंने हॉकी खेलने की इच्छा ज़ाहिर की, तो मेरे माता-पिता और रिश्तेदारों ने साथ नहीं दिया। मेरे माता-पिता बहुत छोटी जगह से हैं और ज़्यादा पढ़े- लिखे भी नहीं हैं। उन्हें लगता था कि स्पोर्ट्स में करियर नहीं बन सकता, और लड़कियों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। साथ ही, हमारे रिश्तेदार भी मेरे पिता को ताने देते थे, ‘ये हॉकी खेल कर क्या करेगी? बस छोटी-छोटी स्कर्ट पहन कर मैदान में दौड़ेगी और घर की इज्ज़त ख़राब करेगी।’”

पर आज वही लोग इनकी पीठ थपथपाते हैं और उनके घर लौटने पर, ख़ासतौर से बधाई देने आते हैं।

खेलते हुए (स्त्रोत: @iamranirampal/Twitter)

जब रानी ने हॉकी में अपनी शुरुआत की, तब उन्हें नहीं लगा था कि वे कभी राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बन पाएंगी या भारतीय खेल प्राधिकरण के लिए सहायक कोच के तौर पर नौकरी करेंगी। उनका सपना तो बस अपने परिवार के लिए एक घर बनाने का था।

आज अगर शाहाबाद में कोई उनके ख़ूबसुरत घर को देखे, तो उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं होगा कि एक समय पर रामपाल परिवार बहुत गरीब हुआ करता था। साल 2016 में अपने परिवार के लिए उन्होंने यह घर बनवाया और साथ ही, घर की छत पर ओलिंपिक के पाँच रिंग भी बने हुए हैं!

रानी बहुत ही साधारण परिवार से आती हैं। घर चलाने के लिए, उनके पिता तांगा चलाते थे और ईंटें बेचते थे। पर पाँच लोगों के परिवार के लिए यह बहुत कम था। उन्हें आज भी याद हैं कि कैसे तेज़ बारिश के दिनों में उनके कच्चे घर में पानी भर जाता था और वे अपने दोनों भाइयों के साथ मिल कर, बारिश के रुकने की प्रार्थना करती थीं।

“मुझे हमेशा से पता था कि मुझे हॉकी खेलना है। पर इसके जो खर्च थे– जैसे इंस्टिट्यूट में ट्रेनिंग लेना, हॉकी किट खरीदना या जूते खरीदना आदि, ये सब मेरे पिता नहीं उठा सकते थे। साथ ही, मेरे माता-पिता को समाज का भी डर था, जिसके कारण उन्हें मनाना और भी मुश्किल था। मुझे याद है, मैंने उनसे बहुत बार कहा, ‘मुझे एक मौका दो, मुझे खेलते हुए देखो, और फिर भी, अगर आपको लगे कि मैं कुछ गलत कर रही हूँ, तो मैं खेल छोड़ दूंगी,” रानी ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए कहा।

और रानी ने उन्हें कभी भी निराश नहीं किया।

अपने माता- पिता के साथ रानी रामपाल (फेसबुक)

इस पूरे मुश्किल समय में, अगर कोई उनके साथ खड़ा रहा, तो वह थे उनके कोच, सरदार बलदेव सिंह। सिंह को गुरु द्रोणाचार्य पुरस्कार से भी नवाज़ा गया है। रानी ने इनकी देख-रेख में ही शाहाबाद हॉकी अकादमी में अपनी ट्रेनिंग की शुरुआत की थी।

“उन्होंने उस समय मेरा और मेरे हॉकी के सपने का साथ दिया, जब कोई और मेरे साथ नहीं था। मुझे हॉकी किट देने से लेकर, मेरे लिए जूते खरीदने तक; हर तरह से उन्होंने मेरी मदद की। जब मैंने एक मैच में बहुत मुश्किल गोल किया था, तब उन्होंने मुझे एक 10 रूपये का नोट दिया और उस पर लिखा, ‘तुम देश का भविष्य हो।’ यह मेरी सबसे अनमोल यादों में से एक है। मैंने उस नोट को बचा कर रखने की बहुत कोशिश की, पर उस वक़्त हम इतने गरीब थे, कि मुझे उस नोट को खर्च करना पड़ा।”

जब वे चंडीगढ़ में ट्रेनिंग ले रही थी, तब उनके कोच बलदेव ने उनके रहने की व्यवस्था अपने ही घर पर करवाई। साथ ही, अपनी पत्नी के साथ मिलकर, रानी के अच्छे खान- पान की ज़िम्मेदारी भी ली।

“हॉकी से ज़्यादा, उन्होंने हमे एक- दूसरे की मदद करना सिखाया। ऐसे नए खिलाड़ियों का मार्गदर्शन करना, जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। किट या किसी अन्य ज़रूरतों को पूरा करके, उनकी मदद करना। हमारी अकादमी में आज भी यह सिलसिला जारी है।”

अपने कोच के साथ रानी रामपाल

भारतीय हॉकी टीम में उनका चयन बिल्कुल भी आसान नहीं था, बल्कि यह बहुत बड़ी चुनौती थी। “हर मौसम में ट्रेनिंग मुश्किल हो जाती थी। और अनुशासन, पहला नियम था, जो हमें सिखाया गया। हम घंटो ट्रेनिंग लेते थे और एक दिन भी ट्रेनिंग नहीं छोड़ते थे। पर समय की पाबन्दी प्राथमिकता होती थी। हम कभी देर से जाते, तो हमारे कोच हमें सज़ा देते थे। उस समय अकादमी के लगभग नौ खिलाड़ी राष्ट्रीय टीम में खेल रहे थे। उनकी कहानियों ने हमे कड़ी मेहनत करने और अपनी योग्यता साबित करने के लिए प्रेरित किया।”

और उनकी कड़ी मेहनत बिल्कुल भी ज़ाया नहीं गयी।

जून 2009 में, रूस में आयोजित हुए चैंपियन चैलेंज टूर्नामेंट में रानी ने फाइनल मैच में चार गोल किये और ‘द टॉप गोल स्कोरर’ और ‘यंग प्लेयर ऑफ़ टूर्नामेंट’ का ख़िताब जीता। उन्होंने साल 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लिया, जहाँ वे एफ़आईएच के ‘यंग वुमन प्लेयर ऑफ़ द इयर’ अवॉर्ड के लिए भी नामांकित हुई।

ग्वांगझोउ में हुए 2010 के एशियाई खेलो में अपने बेहतरीन प्रदर्शन के चलते, उन्हें ‘एशियाई हॉकी महासंघ’ की ‘ऑल स्टार टीम’ का हिस्सा बनाया गया। अर्जेंटीना में आयोजित महिला हॉकी विश्व कप में, उन्होंने सात गोल किये और भारत को विश्व महिला हॉकी रैंकिंग में सांतवे पायदान पर ला खड़ा किया।

साल 1978 के बाद, ये भारत की हॉकी टीम का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन माना जाता है और इस शानदार प्रदर्शन के लिए रानी ने ‘बेस्ट यंग प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट’ जीता।

साल 2013 के जूनियर विश्व कप में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया और पहली बार, भारत कांस्य पदक जीता। यहाँ भी उन्हें ‘प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट’ का खिताब मिला।

साल 2016 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

अर्जुन अवॉर्ड प्राप्त करते हुए

उनकी कप्तानी में, भारतीय हॉकी टीम ने 2018 में एशियाई खेलों में रजक पदक जीता और इसी के साथ, राष्ट्रमंडल खेलों में भारत चौथे पायदान पर और लंदन विश्व कप में आठवें स्थान पर रहा है। पर आज जब भी उनसे उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि के बारे में पूछा जाता है, तो वे बड़ी ही सादगी से बताती हैं, “महिला हॉकी टीम का नेतृत्व करना सबसे बड़ा सम्मान है।”

विश्व हॉकी के स्तर पर एक कमज़ोर टीम माने जाने से लेकर, हाल ही में, स्पेन के दौरे पर आयरलैंड और स्पेन जैसी मज़बूत टीमों के विरुद्ध जीत हासिल करने तक, हमारी भारतीय हॉकी टीम ने एक लम्बा सफ़र तय किया है।

आयरलैंड के खिलाफ़ इनका पहला फ्रेंडली मैच 1-1 से ड्रा हो गया था, पर दूसरे और अंतिम मैच में हमारी टीम ने विश्व कप के रजत पदक विजेता को 3-0 से हरा कर जीत हासिल की | इस टीम में सीनियर और जूनियर, दोनों ही खिलाड़ी बहुत ही अच्छे से खेले।

रानी कहती हैं, “एक सीनियर खिलाड़ी और कप्तान होने के नाते, यह मेरी ज़िम्मेदारी है कि मैं नए खिलाड़ियों को साथ ले कर चलूँ, उन्हें बढ़ावा दूँ और अन्तराष्ट्रीय खेलो में उन्हें अवसर मिले। हम इस दौरे के लिए हॉकी इंडिया के शुक्रगुज़ार हैं।”

एशियाई खेलो में भारतीय हॉकी टीम को जापान से हार मिली, टीम सिर्फ़ रजत पदक जीत पाई और इसलिए अब 2020 के टोक्यो ओलिंपिक में उन्हें सीधे प्रवेश नहीं मिलेगा। इस बारे में पूछने पर वे कहती हैं,

“हम बहुत निराश थे कि हम मैच नहीं जीत पाए। पर चाहे जितना भी बड़ा मैच हो, खेल का नियम है कि हम आगे बढ़े और पहले से अधिक मेहनत करें। और हमने अपने लक्ष्य से अपनी नज़र नहीं हटाई है। स्पेन के दौरे ने हमें काफ़ी प्रोत्साहन दिया है। अब टीम को विश्वास है कि अगर हम मेहनत करें, तो हम किसी को भी हरा सकते हैं। इसलिए हम हर दिन अपनी ट्रेनिंग में 100 प्रतिशत से भी ज़्यादा मेहनत करते हैं। हम भारतीय महिला हॉकी टीम को विश्व के मैप पर देखना चाहते हैं। हमारा लक्ष्य अभी 2020 के ओलिंपिक खेलों के लिए चयनित होना है।”

जब उनसे पूछा गया कि क्या महिला हॉकी की तरफ़ भारतीय दर्शकों के दृष्टीकोण में कोई बदलाव आया है, तो उस पर उन्होंने कहा, “जब से मैंने हॉकी खेलना शुरू किया है, तब से अब तक बहुत कुछ बदला है। उन दिनों, हॉकी को वैसी पहचान और प्रशंसा नहीं मिलती थी, जो कि मिलनी चाहिए। पर पिछले कुछ सालों से यह सब बदल रहा है। लोग अब इस खेल में रूचि ले रहे हैं और साथ ही, इस खेल की सराहना भी कर रहे हैं। पर अभी भी हॉकी को और अधिक पहचान और समर्थन की ज़रूरत है।”

केवल हॉकी ही नहीं, बल्कि बैडमिंटन, कुश्ती या वेट लिफ्टिंग, महिलाएँ हर खेल में आगे बढ़ रही हैं और रानी का मानना है कि यह ट्रेंड जारी रहना चाहिए।

18वें एशियाई खेलों में रजत पदक जीतने पर

आख़िर में, वे युवा लड़कियों और महिलाओं के लिए एक ख़ास संदेश देते हुए कहती हैं, “महिलाओं को खुद पर भरोसा करना होगा। और हम एक समाज के तौर पर उनके खेल के सपनों को पूरा करने के लिए, उन पर भरोसा करके और उन्हें बढ़ावा देकर, उनकी मदद कर सकते हैं। मैं सभी महिलाओं से कहना चाहूंगी कि खुद को किसी से कम न समझें।अपना लक्ष्य निर्धारित करें और पूरे दृढ संकल्प के साथ उसे पाने की कोशिश करें। आप कुछ भी कर सकती हैं। जब हम खुद पर विश्वास करेंगे, तभी दूसरे हम पर विश्वास करेंगे।”

मूल लेख: जोविटा अरान्हा 
संपादन: निशा डागर


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