कविता महज़ शब्दों का खेल नहीं!

कविता महज़ शब्दों का खेल नहीं!

ज आपको एक कविता पढ़वाता हूँ, और एक दिखाता हूँ. दोनों का शीर्षक एक ही है - नदी.

जो वीडियो है वह सिनेमैटोग्राफ़ी का एक प्रयोग है, जो आपसे अनुभूति के एक अलग ही स्तर पर बात करता है. शब्द समृद्ध और सशक्त होते हैं लेकिन शब्दों के परे की अभिव्यक्ति आपको अपने अंदर कहीं दूर तक ज़्यादा आसानी से ले जा सकती है. मुलाहिज़ा फरमाइए :

एक नदी देर तक राह तकती रही
चाँद बुझता रहा, रात थकती रही
ऐशग़ाहों के परदे गिराए गए
कुछ ग़ुनाहों की लज़्ज़त सुलगती रही

सोज़ख़्वानी से महफ़िल सजाई गई
सर्द यादों की रूहें बुलाई गईं
गुलनशीनों की तस्वीर रख सामने
ज़िन्दगी दरमयाना भटकती रही
एक नदी देर तक राह तकती रही

सुब्हे-तारीक ही उनको महदूद थी
साथ 'उनसे न मिलना' की ताक़ीद थी
फिर भी यूँ सुर्ख फूलों से मन्नत लिखी
शब्-ए-हिज्राँ लिपट कर महकती रही

एक नदी देर तक राह तकती रही

इस नज़्म के बाद पेश है यह वीडियो कविता जिसका शीर्षक भी वही है - नदी

publive-image

लेखक -  मनीष गुप्ता

हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे।

Related Articles
Here are a few more articles:
Read the Next Article
Subscribe