दो कागज़ एक पैन!

दो कागज़ एक पैन!

दो कागज़
एक पैन
और उनके नैन

ग्यारह चाय
एक कॉफ़ी
आठों पहर आपधापी
चौबीस ऋतुओं में बँटे दिन रैन
हाय उनके नैन

कुछ लिफ़ाफ़े
तीन बोसे
गनपाउडर और सात डोसे
एक खिड़की, छः किताबें
पाँच मौसम कहूँ तोसे
उम्र भर का चैन

उन्तीस घंटे रेल के
फिर तीस शिकवे मेल के
इकतीस खरोंचें पीठ पर
दो चार आँसू झेल के
दो एक सदियाँ खेल के
एक तुम बचे हो
नील बन आकाश का
एक तुम बचे हो लाल ज्यों विश्वास का
एक तुम हो जो आराम कुर्सी पर पड़े
तुम ही तो हो - संभावनाओं से भरे
फूल सी परिकल्पनाओं में मढ़े
रात रानी में गढ़े

तुम ही तो हो
तुम ही तो हो
तुम ही तो हो
तुम ही तो हो
तुम

विश्रान्ति का भारीपन लिए फिर से शनिवार आया है. सारे काम, सारे धाम, इंतज़ाम भूल कर बैठ जाएँ एक चाय के कप के साथ तसव्वुरे-रानाई में. उस हसीन के ख़याल के साथ जो कभी मिला था / जो आज साथ है / जिसके मिलने की तमन्ना है / या कोई काल्पनिक शय - कोई फ़र्क नहीं पड़ता एक तसव्वुरे-विसाल के शरबत पर सभी का हक़ है. ये किसी नाज़नीन की मेहरबानियों का मुहताज़ नहीं :):

publive-image

लेखक -  मनीष गुप्ता

हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे।

Related Articles
Here are a few more articles:
Read the Next Article
Subscribe