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अनुभव

ट्रेन हादसे में गंवाया एक पैर, आज हैं भारत की पहली महिला ब्लेड रनर!

By निशा डागर

मुझे पता है कि ज़िंदगी में बहुत कुछ ऐसा है जिस पर हमारा कंट्रोल नहीं है। ज़िंदगी का अगला पल, आपको बना सकता है या फिर गिरा भी सकता है।

"मेरी माँ उनकी हँसी और मुस्कुराहट में ज़िंदा हैं, जिन्हें उनकी वजह से जीने का सेकंड चांस मिला!"

By निशा डागर

"किसी को नहीं पता था कि क्या हुआ? डॉक्टर्स ने उन्हें दूसरे अस्पताल ले जाने के लिए कहा। लेकिन जब वहां पहुंचे तो कहा गया कि बहुत देर हो चुकी है।"

आर्थिक मदद नहीं, स्वावलंबी बनाकर मेरी फीस का किया था इंतजाम; आज भी ऋणी हूँ आपका सर!

By द बेटर इंडिया

विद्यालय में मेरे प्रवेश के साथ ही शिक्षकगण इस बात का फैसला कर चुके थे कि वे मुझे अधिकाधिक कार्य सिखाएंगे और इसी विद्यालय में माध्यमिक परीक्षा के बाद मुझे नौकरी भी देंगे ताकि परिवार का भरण-पोषण हो सके। - शिवनाथ झा

साइक्लोन फोनी: तूफ़ान से गिरी अस्पताल की छत, अपनी जान की परवाह किये बिना मेडिकल स्टाफ ने बचायी 22 बच्चों की जान!

By निशा डागर

उड़ीसा में आये साइक्लोन फोनी ने राज्य के कई शहरों और तटीय इलाकों को तहस-नहस किया है। फ़िलहाल प्रशासन और लोग, फिर से स्थिति को सामान्य करने में जुटे हुए हैं। भुवनेश्वर के कैपीटल अस्पताल में 11 स्टाफ सदस्यों ने मिलकर 22 नवजात बच्चों की जान बचायी।

ऑटो-ड्राईवर ने गर्भवती महिला को पहुँचाया अस्पताल, 18 दिनों तक रखा नवजात बच्चे का ख्याल!

By निशा डागर

Bengaluru के 29 वर्षीय ऑटो ड्राईवर बाबु मुद्द्रप्पा ने बिना किसी स्वार्थ के एक गर्भवती महिला को अस्पताल पहुँचाया और सभी बिल भी भरे। जब वह महिला अपनी नवजात बच्ची को छोड़कर भाग गयी तो पूरे 18 दिनों तक बाबु ने उस बच्ची देखभाल की।

विदेश से भारत लौटी यह माँ, केवल वेदा को गोद लेने, जिसके पास है 'एक एक्स्ट्रा क्रोमोज़ोम'!

By निशा डागर

कविता बलूनी और उनके पति हिमांशु शायद भारत के पहले दंपत्ति हैं, जिन्होंने Down Syndrome से ग्रसित एक बच्ची को गोद लिया है। अमेरिका में रहते हुए उन्हें ऐसे बहुत बच्चों से मिलने का मौका मिला और फिर उन्होंने तय किया कि ऐसी ही कोई बच्ची गोद लेंगें।

मैं तब तक आराम से नहीं बैठूंगी, जब तक मेरी बेटियाँ सबको बता न दें कि वे कितना कुछ कर सकती हैं!

By निशा डागर

आज द बेटर इंडिया पर पढ़िए Humans of Bombay से अनुवादित पोस्ट। मुंबई की इस आम-सी महिला की कहानी, जो अपने पति के देहांत के बाद हर सम्भव तरीके से अपनी बेटियों को पाल रही है। वह नहीं चाहती कि उसकी बेटियों को कभी भी यह लगे कि लड़कियाँ कुछ नहीं कर सकतीं।

"परिवार सबसे पहले आता है!"

By निशा डागर

हमें हमेशा सिखाया गया कि परिवार सबसे पहले आता है। हमने अपने पिता को बहुत पहले खो दिया और हमारे भाई और भाभी ने हमें पाला। मैं 4 बहनों और दो भाइयों के साथ बड़ी हुई। अब हम सबके अपने परिवार हैं। लेकिन फिर भी हम ने हमेशा एक दुसरे के आस-पास ही रहने का फैसला किया।