Powered by

Home अनुभव ट्रेन हादसे में गंवाया एक पैर, आज हैं भारत की पहली महिला ब्लेड रनर!

ट्रेन हादसे में गंवाया एक पैर, आज हैं भारत की पहली महिला ब्लेड रनर!

मुझे पता है कि ज़िंदगी में बहुत कुछ ऐसा है जिस पर हमारा कंट्रोल नहीं है। ज़िंदगी का अगला पल, आपको बना सकता है या फिर गिरा भी सकता है।

New Update
ट्रेन हादसे में गंवाया एक पैर, आज हैं भारत की पहली महिला ब्लेड रनर!

"घर चलाने के लिए मेरे माता-पिता, लोगों के कपड़े प्रेस करते थे, और बड़ी मुश्किल से महीने के दो हज़ार रुपये तक ही कमा पाते थे। हम 3 भाई-बहन थे और ज़िंदगी बहुत मुश्किल थी। हमें अपनी छोटी-छोटी ज़रूरतों के लिए भी लड़ना पड़ता था। बिजली का बिल तक भरना मुश्किल था, इसलिए हम स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ते थे।

12वीं तक मैंने जी-तोड़ मेहनत करके पढ़ाई की, जिससे मुझे बहुत ही अच्छी यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल गया और फर्स्ट इयर में मैंने अपनी क्लास में टॉप भी किया- और बाकी कोर्स के लिए मुझे स्कॉलरशिप मिल गयी। बाद में, मुझे मेरी ड्रीम कंपनी में नौकरी भी मिल गयी थी। ज़िंदगी मेरे और मेरे परिवार के लिए बदलने लगी थी।

पर किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था।

publive-image
Credits: Humans of Bombay

उस दिन मेरा पच्चीसवां जन्मदिन था। रोज़ की तरह मैं रात की ट्रेन लेकर काम से घर लौट रही थी। मैं गेट के पास खड़ी थी। तभी दो आदमी आए और उन्होंने मेरा बैग छिनने की कोशिश की, जिसमें बहुत से पैसे थे। एक ने मुझे पीछे से पकड़ा हुआ था और एक मेरा बैग खींच रहा था। कुछ सेकंड्स के बाद, वे दोनों चलती ट्रेन से कूद गये और मुझे भी साथ खींच लिया। वे भाग गये लेकिन मेरा पैर ट्रैक्स में फंस गया। ट्रेन के चार कोच मेरे ऊपर से गुजरे और इसके बाद किसी ने चैन खिंची।

मुझे अस्पताल ले जाया गया और वहां डॉक्टर्स ने कहा कि मेरे पैर को ठीक नहीं किया जा सकता और इसे काटना पड़ेगा। मैं टूट गयी थी और अगले एक महीने तक मैं बिस्तर पर ही थी। लेकिन फिर मुझे प्रोस्थेटिक लेग (कृत्रिम पैर) लगाया गया और मुझे महसूस हुआ जैसे कोई उम्मीद की किरण मिल गयी हो, मैंने पहली बार कुछ कदम चलकर भी देखा।

लेकिन एक बार रूटीन चेकअप के दौरान मैंने डॉक्टर को बताया कि मुझे हल्का-हल्का दर्द रहता है। पर उन्होंने बहुत ही लापरवाही से कहा कि कुछ स्टेपल्स को पूरी तरह नहीं निकाल पाए थे और वे मेरे पैर में ही रह गए हैं। उन्होंने यह भी कहा, 'तुम चल पाओगी। ये स्टेपल्स तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। बस तुम, दौड़ नहीं सकती...... इसलिए कोई फर्क नहीं पड़ता।'

publive-image
Credits: Humans of Bombay

तब मैंने महसूस किया कि मैं कभी भी प्रिविलेज्ड नहीं थी- मुझे हमेशा ही दूसरों से ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती थी, तो इसलिए मुझे इस परिस्थिति में भी यही करना था। मैंने फिर से काम करना शुरू किया और एक 'सामान्य' ज़िंदगी जीने के तरीके ढूंढने लगी।

अभी भी, मुझे लगता था कि मुझे और भी बहुत कुछ करना है, इसलिए मैं एक रिहैब सेंटर गयी, जो कि पैरा-एथलीट्स को ट्रेन करता है- मैंने तय किया कि मुझे ज़िंदगी में सर्फ़ चलना नहीं है... मैं दौड़ना चाहती थी और सबको गलत साबित करना चाहती थी।

मैंने ट्रेनिंग शुरू की और ज़्यादा से ज़्यादा मेहनत की। कुछ ही महीनों में, मैं दौड़ने लगी! मैंने एक मैराथन में भी हिस्सा लिया और 21 किमी तक दौड़ी। अपना एक अंग खोकर मैंने ज़िंदगी के अलग पहलु को जाना और अब मुझे ये करने में मज़ा आ रहा था।

अब मैं लगातार मैराथन दौड़ती हूँ और भारत की पहली महिला ब्लेड रनर बन गयी हूँ- मैं बता नहीं सकती कि मुझे कैसा लग रहा है।

मुझे पता है कि ज़िंदगी में बहुत कुछ ऐसा है जिस पर हमारा कंट्रोल नहीं है। ज़िंदगी का अगला पल, आपको बना सकता है या फिर गिरा भी सकता है। आपका कल, शायद वो दिन हो जो आपकी ज़िंदगी का रुख ही बदल दे। लेकिन ज़िंदगी में अचानक आयी इन परिस्थितियों को नकारात्मकता से देखने की बजाय... समझने की कोशिश करें कि यह कुछ नही है, बस ज़िंदगी तुम्हे एक मौका दे रही है -- फिर से एक विनर बनने का।"


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें [email protected] पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।