आज हम आपको एक ऐसे आर्किटेक्ट के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने न केवल भारत में बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्से में एक लाख से अधिक ग्रीन बिल्डिंग्स का निर्माण किया है। पद्मश्री से सम्मानित आर्किटेक्ट गोपाल शंकर को उनके सस्टेनेबल और इको-फ्रेंडली निर्माण के लिए जाना जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनका सस्टेनेबल आर्किटेक्चर चंद लोगों तक सीमित नहीं है बल्कि वह आम आदमी के लिए प्रकृति के अनुकूल घर बनाते हैं। शायद इसलिए ही उन्हें ‘People’s Architect’ यानी कि आम आदमी का आर्किटेक्ट कहा जाता है।
साल 1995 में कोयम्बटूर में ग्रीन बिल्डिंग तकनीक से 600 घर, एक कम्युनिटी सेंटर और मंदिर वाली पहली टाउनशिप बनाने से लेकर बांग्लादेश में 6 लाख स्क्वायर फीट में सबसे बड़ी अर्थ बिल्डिंग बनाने तक, शंकर ने सस्टेनेबल आर्किटेक्चर को हर एक कदम पर नयी पहचान दी है।
केरल के तिरुवनंतपुरम में उनका ऑफिस है और आज स्थानीय सब्ज़ी वाले, मछली पकड़ने वाले लोग उनके यहाँ आकर अपना घर डिज़ाइन करवाते हैं। शंकर इन लोगों के आर्किटेक्ट हैं, जिनके लिए घर बनाना एक ऐसा सपना होता है, जिसके लिए वह जिंदगीभर मेहनत करते हैं।

आर्किटेक्ट शंकर का जन्म तंजानिया में हुआ था, जहाँ उन के पिता, ब्रिटिश सरकार के प्रशासनिक अधिकारी थे और उनकी माँ एक शिक्षिका। जब भारत को स्वतंत्रता मिली तो उनके परिवार को इंग्लैंड में जाकर बसने का विकल्प मिला लेकिन उन्होंने भारत लौटने का निर्णय किया। उनका परिवार केरल के तिरुवनंतपुरम में बस गया। शंकर ने अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री केरल के कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग से हासिल की और हाउसिंग में मास्टर्स डिग्री के लिए लंदन गए।
बचपन से ही करना चाहते थे ज़रुरतमंदों के लिए काम
शंकर ने द बेटर इंडिया को बताया, “जब हम भारत लौटे थे तो मुझे दो तरह की समस्या से जूझना पड़ा। एक तो मैं हकलाता था और दूसरा, मुझे मलयालम नहीं आती थी। लेकिन अपने आँगन में मिट्टी पर मलयालम के अक्षर लिख-लिख कर मैंने यह भाषा सीख ली, लेकिन हकलाने की समस्या आज भी है।”
शंकर बचपन से ही मेधावी थे। वह कम उम्र में ही केरल शास्त्र साहित्य परिषद से जुड़ गए थे, जो लोगों को विज्ञान के फायदे और सही ज्ञान के बारे में जागरूक करता है। वह अक्सर निरक्षर और अनपढ़ लोगों को लिखना-पढ़ना सिखाते थे। गरीबों के लिए धुंआरहित चुल्हा बाज़ार में बेचते थे। इस तरह से बहुत कम उम्र में ही वह समाज के गरीब और ज़रूरतमंद तबके से जुड़ गए थे और वहीं से उनके लिए कुछ करने की भावना उनके मन में बस गई थी।
शंकर ने 13 साल की उम्र में ही फैसला किया कि वह आम लोगों के जीवन में सुधार लाने के लिए काम करेंगे। इस भावना ने सस्टेनेबल आर्किटेक्चर की राह पर उन्हें आगे बढ़ने का हौसला दिया। वह कहते हैं, “आर्किटेक्चर के ज़रिए मैं लाखों लोगों तक पहुँच सकता हूँ और उनका हाथ थाम सकता हूँ। यह मेरे लिए एक बेहतर इंजीनियरिंग का विषय था।”
निर्माण के समय रखते हैं इन बातों का ध्यान:
आगे उनके आर्किटेक्चर और डिज़ाइन की बात करें तो वह बताते हैं कि किसी भी प्रोजेक्ट के लिए वह सबसे पहले स्थानीय जगहों से ही निर्माण मटेरियल लेने में विश्वास रखते हैं। यह सबसे मूल नियम है सस्टेनेबल आर्किटेक्चर का। स्थानीय मटेरियल और साधन सबसे ज्यादा ज़रूरी होते हैं। लोकल मटेरियल के साथ-साथ लोकल लोगों को ही निर्माण कार्य में जोड़ने की बात भी महत्वपूर्ण है। इसके बाद, आप जो बना रहे हैं वह प्रकृति के अनुकूल होना चाहिए। साथ ही, यह ऊर्जा और लागत, दोनों मामलों में ही किफायती होना चाहिए।
“उदाहरण के तौर पर जब मैं केरल में कोई निर्माण करता हूँ तो बांस का इस्तेमाल करता हूँ क्योंकि यह स्थानीय तौर पर उपलब्ध है और साथ ही, इसमें वह ताकत भी है जो चाहिए। यह स्टील का एक बहुत ही अच्छा विकल्प है,” उन्होंने आगे कहा।
स्टील के बाद निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण होता है सीमेंट! लेकिन सीमेंट को बनाने में बहुत ही ज्यादा ऊर्जा की खपत होती है और यह पर्यावरण की दृष्टि से भी अनुकूल नहीं है। इसलिए शंकर अपने सभी प्रोजेक्ट में सीमेंट की जगह चूने का इस्तेमाल करते हैं। उनकी कोशिश ऐसे साधन इस्तेमाल करने की है जिससे घर किफायती बने और साथ ही, घर में ठंडक भी रहे। उनका अपना 6 मंजिल का ऑफिस, पूरी तरह से मिट्टी से बना है। गर्मियों में ऑफिस के बाहर कितनी भी गर्मी हो लेकिन अंदर एकदम ठंडा रहता है।
क्या वह अपने घर में कोई खास जगह चाहता है जैसे पढ़ाई की या योगा की या फिर कुछ और। इसके लिए वह घर में प्राकृतिक उजाले और वेंटिलेशन पर भी ध्यान देते हैं। “मैं लोगों से बात करता हूँ और समझता हूँ कि वह हैं कौन। मेरे घर सीमेंट या गारे से नहीं बनते बल्कि प्यार, स्नेह और लगाव से बनते हैं,” उन्होंने आगे कहा।
शुरू किया हैबिटैट टेक्नोलॉजी ग्रुप:
वह कहते हैं कि पारंपरिक आर्किटेक्चर किसी भी जगह और वहाँ के जनसाधारण से जुड़ा होता है। इसके लिए हजारों सालों की रिसर्च और डेवलपमेंट चाहिए होती है। केरल में इस तरह के आर्किटेक्चर की भव्य विरासत है और वक़्त के साथ-साथ यह और विकसित हुई है। लेकिन लोगों ने पैसे और लालच में इसके मायने बिल्कुल बदल दिए हैं।

अपनी मास्टर्स की डिग्री पूरी करने बाद वह लंदन से जब भारत लौटे तो पहले उन्होंने दिल्ली में काम किया। पर यहाँ उनका मन नहीं लगा और वह पहुँच गए केरल। यहाँ उन्होंने केरल सरकार के साथ काम किया पर जल्दी ही, उन्हें महसूस हुआ कि जो वह करना चाहते हैं, यह उससे अलग है। इसके बाद उन्होंने खुद अपना रास्ता तय करने की ठानी।
साल 1987 में उन्होंने एक कमरे से अकेले अपनी शुरूआत की। अपना खुद का काम शुरू करने के 6 महीने बाद उन्हें पहला प्रोजेक्ट मिला और उन्होंने एक आम बैंक क्लर्क के लिए घर बनाया। इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मात्र एक साल में ही उनका काम इतना बढ़ा कि 1990 आते-आते वह साल भर में लगभग 1500 घरों का निर्माण कर रहे थे। आज उनके इस नॉन-प्रॉफिट संगठन से 400 आर्किटेक्ट, इंजीनियर और सोशल वर्कर जुड़े हुए हैं। लगभग 35 हज़ार अव्वल कारीगर उनके साथ हैं और 34 क्षेत्रीय ऑफिस हैं उनके भारत में और नाइजीरिया, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों में भी उनेक प्रोजेक्ट ऑफिस हैं।
प्राकृतिक आपदा के बाद लोगों के लिए बनाए घर:
उन्होंने भोपाल गैस घटना में हजारों लोगों को फिर से बसाया तो 1999 में ओडिशा के सुपर सायक्लोन के बाद लोगों के घरों का फिर से निर्माण किया। श्रीलंका में सुनामी के बाद भी उन्होंने यादगार काम किया। जर्मन सरकार के साथ मिलकर उन्होंने श्रीलंका में 95 हज़ार घरों का निर्माण किया था। शायद यह पूरे विश्व में सबसे बड़ा रिहैबिलिटेशन प्रोजेक्ट हो।
केरल में भयंकर बाढ़ के बाद उन्होंने CSR मदद के ज़रिए लोगों को फिर से बसाने का काम शुरू कर दिया। एस्टर ग्रुप के साथ मिलकर उन्होंने 1500 से भी ज्यादा घर बनाए। इस प्रोजेक्ट को नैशनल अवॉर्ड भी मिला है। इसके अलावा, उन्होंने केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों में आदिवासियों, मछुआरों और दूसरे ज़रूरतमंद समुदायों को बसाने के लिए हाउसिंग कॉलोनी बनाई हैं।

वह कहते हैं कि फ़िलहाल, केरल सरकार के लाइफ मिशन पर वह काम कर रहे हैं। इसके ज़रिए, उनका उद्देश्य लोगों को सस्ते और ऊर्जा के मामले मे किफायती घर बनाकर देना है। लॉकडाउन के दौरान, जहां दूसरे बिल्डर्स के पास काम की कमी है, वहीं शंकर को हर दिन नए प्रोजेक्ट्स पर काम करना है। वह कहते हैं, “अब लोगों को प्रकृति की और इसके अनुकूल बने घरों का महत्व भी समझ में आ रहा है। हमारे पास अभी कई अच्छे प्रोजेक्ट्स हैं काम करने के लिए। फ़िलहाल, सबसे ज्यादा फोकस छोटे घरों पर है।”
उन्हें अपने काम के लिए कई बार भारत सरकार और दूसरी जगहों से सम्मान मिल चुका है। अभी भी वह सस्टेनेबल आर्किटेक्चर के क्षेत्र में लगातार काम कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि इस क्षेत्र में अभी भी बहुत कुछ करना है।
“जलवायु परिवर्तन के लिए, हम आर्किटेक्चर सबसे ज्यादा ज़िम्मेदार हैं। क्योंकि हम वातावरण बनाने के लिए ज़िम्मेदार हैं। पिछले 30 सालों से सस्टेनेबिलिटी की बात हो रही है पर अफ़सोस की बात है कि हमने कुछ नहीं सीखा और विश्व के पास अब विकल्प खत्म हो रहे हैं। अबसे हम जो बनाएं वह पर्यावरण के अनुकूल, ऊर्जा और लागत में किफायती और लोगों के हिसाब से होना चाहिए, नहीं तो हम हार जाएँगे,” उन्होंने अंत में कहा।
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मूल स्त्रोत: रिंचेन नोरबू वांगचुक
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