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"जब तक हम किताबों के साथ होते हैं, हमें ज़मीनी हक़ीकत का अंदाज़ा नहीं होता। मुझे भी एमबीबीएस के पाँच सालों में कभी भी नहीं लगा था, कि मुझे सिविल सर्विस करने की ज़रूरत है। पर इंटर्नशिप के दौरान जिन हकीकतों से मेरा सामना हुआ, उन्हें देख कर मैंने तय किया कि मुझे प्रशासनिक सेवाओं में जाना ही चाहिए!"
- डॉ. रेहाना बशीर
डॉ. रेहाना बशीर ने ने यूपीएससी परीक्षा 2018 में 187वां रैंक हासिल किया है। पुंछ जिले के मेंढर तहसील के सलवा गाँव से ताल्लुक रखने वाली रेहाना पुंछ जिले और पीर पंजाल क्षेत्र की पहली लड़की है, जिसने यह मुकाम हासिल किया है।
आसान नहीं था यहाँ तक का सफ़र, बचपन में ही उठ गया था पिता का साया
रेहाना के पिता पुंछ के फोरेस्ट कॉर्पोरेशन में कार्यरत थे, और अपने परिवार के लिए मज़बूत सहारा थे। पर 2006 में उनके निधन के बाद रेहाना की माँ पर पूरे घर की ज़िम्मेदारी आ गयी। पर उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और अपने दोनों बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया। रेहाना के हर एक फ़ैसले में भी उनकी माँ का अहम योगदान रहा।
"हमें लगता था कि अब्बू ठीक हो जाएंगें, लेकिन फिर वो चले गये। मैं नौवीं क्लास में थी और आमिर 8वीं क्लास में था। लेकिन उस समय मेरी माँ मजबूती से खड़ी रहीं। उन्होंने हमसे सिर्फ़ एक बात कही कि तुम्हें जो भी चाहिए, मैं हर ज़रूरत पूरा करुँगी लेकिन तुम दोनों की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आनी चाहिए। उन्होंने जो कहा था, वह किया भी," रेहाना ने गर्व से कहा।
सफल डॉक्टर होने के बावजूद चुनी देश-सेवा की राह
जम्मू से एमबीबीएस कर चुकी रेहाना ने कभी नहीं सोचा था कि उन्हें यूपीएससी करना है। लेकिन जब अपनी इंटर्नशिप के दौरान वे ज़मीनी स्तर पर काम करने लगी, तो बहुत से ऐसे वाकये हुए, जिन्होंने उनकी सोच को बदल दिया।
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"अपनी इंटर्नशिप के दौरान मुझे अहसास हुआ कि शायद सिर्फ़ एक डॉक्टर होना ही काफ़ी नहीं है। लोगों के लिए और भी बहुत कुछ करने की ज़रूरत है। मैं अस्पताल में उनकी ज़िंदगी बचा सकती हूँ; लेकिन उन लोगों का क्या जो परिवाहन की व्यवस्था न होने के चलते अस्पताल ही नहीं पहुँच पाते हैं," रेहाना ने बताया।
इसके बाद उन्होंने फ़ैसला किया कि वे यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी करेंगी। साल 2016 में उनकी इंटर्नशिप खत्म हुई और इसके बाद से ही उन्होंने कॉमपिटीशन के लिए तैयारी शुरू कर दी। उनके इस फ़ैसले में उनकी माँ और भाई ने पूरा साथ दिया।
रेहाना के भाई आमिर बशीर, खुद भी एक आईआरएस अफ़सर हैं। उन्होंने भी पिछले ही साल यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। आमिर को हमेशा से ही सिविल सर्विस में जाना था और इसके लिए उन्होंने ग्रेजुएशन के दिनों से ही मेहनत करना शुरू कर दिया था। आमिर की तैयारी और उनके अनुभव ने रेहाना की पढ़ाई में काफ़ी मदद की। रेहाना कहती हैं कि उनके भाई के मार्गदर्शन से ही उनके लिए यह रास्ता काफ़ी आसान हो गया था।
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हालांकि, एक डॉक्टर होने के बावजूद अपनी प्रैक्टिस छोड़कर यूपीएससी की तैयारी करने का निर्णय बिल्कुल भी आसान नहीं रहा। सबसे पहले तो उनके अपने मन में कई तरह की उलझन थीं और फिर बहुत से ऐसे लोग थे, जिन्होंने उनसे कहा कि वे गलत कर रही हैं। लेकिन फिर भी खुद पर विश्वास करके रेहाना ने आगे बढ़ने का फैसला लिया।
साल 2017 में उन्होंने पहली बार यूपीएससी की परीक्षा में भाग लिया। साथ ही, उन्होंने राज्य स्तर पर भी केएएस की परीक्षा दी और NEET-PG की परीक्षा दी। उस समय रेहाना ने केएएस का प्रीलिम क्लियर किया और NEET-PG भी पास कर लिया। पर वे यूपीएससी में उत्तीर्ण नहीं हो पायी।
उन्होंने बताया कि मुझे दुःख तो हुआ, लेकिन फिर मैंने निश्चय किया कि मुझे और मेहनत करनी होगी। एक बार फिर से उन्होंने परीक्षा की तैयारी शुरू की। उन्होंने किसी भी तरह की कोई कोचिंग या फिर क्रैश कोर्स नहीं किया। बल्कि वे खुद पर ही निर्भर रहीं।
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इसी बीच, NEET-PG की काउंसलिंग की तारीख भी आ गयी। अब उन्हें मास्टर्स या फिर अपने यूपीएससी के सपने के बीच में किसी एक को चुनना था। बहुत जगह से उन्हें सुझाव मिला कि मास्टर्स में दाखिला ले लें और साथ में तैयारी करती रहें। पर रेहाना जानती थी कि यह मुमकिन नहीं हो पायेगा।
"मुश्किल तो था, लेकिन फिर मैंने खुद को एक और मौका देने की ठानी। मैं काउंसलिंग के लिए भी नहीं गयी और बस अपनी तैयारी में जुटी रही। मुझे उस समय बहुत से लोगों ने कहा कि हम एक अच्छा डॉक्टर खो रहे हैं। पर फिर ऐसे भी बहुत से लोग थे जिन्होंने कहा कि तुमने मिसाल कायम की है। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो सही समय पर इस तरह का फ़ैसला ले पाते हैं," रेहाना ने बताया।
रेहाना का यह निर्णय बिलकुल सही साबित हुआ और आख़िरकार उनकी मेहनत रंग लायी!
रेहाना के दायीं तरफ उनकी माँ हैं, जिन्होंने उन्हें हर कदम पर आगे बढ़ने का हौसला दिया
अपने शिक्षकों को देतीं हैं विशेष श्रेय
पिता के देहांत के बाद, रेहाना का परिवार जम्मू शहर में आकर रहने लगा था। यहाँ नए माहौल में अपने पिता के बगैर वे काफ़ी उदास रहती, पर उनकी माँ और भाई के अलावा उनके शिक्षकों का भी उनकी सफ़लता में बहुत बड़ा योगदान है।
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रेहाना बताती हैं कि उनके पिता के देहांत के बाद स्कूल में उनके शिक्षकों ने उनका काफ़ी ख्याल रखा। "मेरे सभी टीचर्स ने मुझे बहुत सपोर्ट किया। बहुत बार वे मेरे लिए खाना लाती और मुझे खुद खिलातीं थीं। अगर कभी मुझे सिर्फ़ पढ़ाई में ही घुसा पातीं, तो खुद अलग-अलग गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करतीं। उनके साथ की वजह से ही कभी भी मुझे कोई मानसिक तनाव नहीं हुआ।"
आज पूरे पुंछ को है अपनी बेटी पर गर्व!
अपनी सफलता के बारे में बात करते हुए रेहाना ने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि इस बार वे सफल हो जाएंगी, लेकिन फिर भी उन्होंने खुद को असफलता के लिए भी तैयार कर लिया था। उन्होंने हमेशा इस बात को भी ज़हन में रखा कि यदि परिणाम उनके हित में नहीं आया तो वे मायूस होने की बजाय, फिर से अपनी तैयारी शुरू करेंगी।
लेकिन जब लिस्ट में उनका नाम आया, तो न सिर्फ़ उनके परिवार को, बल्कि पूरे जिले को उन पर गर्व हुआ। जम्मू के आईएएस अधिकारी शाहिद चौधरी ने ट्विटर पर उन्हें बधाई दी। आज रेहाना न सिर्फ़ जम्मू, बल्कि पूरे देश की बेटियों के लिए एक प्रेरणा हैं।
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कैसे की तैयारी
यूपीएससी की परीक्षा पास करना बहुत मुश्किल है। 4-5 सालों तक तैयारी करने वाले लोग भी इसे क्रैक नहीं कर पाते और रेहाना ने मात्र एक-डेढ़ साल की पढ़ाई से ही इसे पास किया। इस पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि सभी प्रतिभागी परीक्षा के लिए एक ही कोर्स पढ़ते हैं। ऐसे में आपको इस बात पर ध्यान देना होता है कि आपका जवाब बाकी सबसे अलग कैसे हो।
"मैंने अपनी तैयारी के समय हमेशा ही पेपर चेक करने वाले व्यक्ति के नज़रिए से सोचा। इसलिए मैं हमेशा कोशिश करती कि किसी भी विषय पर इस तरह से लिखूं कि पढ़ने वाले को कुछ नया मिले और उसकी उत्सुकता बढ़े," रेहाना ने बताया।
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साथ ही, उन्होंने द बेटर इंडिया को भी ख़ास तौर पर श्रेय दिया। उन्होंने कहा कि वे काफ़ी समय से द बेटर इंडिया को फॉलो कर रही हैं और हमारी कहानियों से उन्हें बहुत-से विषयों पर मदद मिली। एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा,
"बहुत पहले मैंने द बेटर इंडिया पर इतिहास से किसी वीरांगना के बारे में पढ़ा था। बाद में, मैं जब नारी सशक्तिकरण जैसे विषयों पर लिख रही थी, तो उस कहानी को मैंने अपने उत्तर में जोड़ा। इस तरह से अलग-अलग उदाहरणों की मदद से आप अपने उत्तर को बाकी सबसे बेहतर बना सकते हैं। इससे पढ़ने वाले को भी लगेगा कि आपने विषय को न सिर्फ़ पढ़ा है, बल्कि उससे जुड़े विभिन्न उप-विषयों पर भी काम किया है।"
रेहाना के मुताबिक मेंस में जवाब लिखने के उनके अलग तरीके ने उन्हें सफलता दिलाई है। वे हमेशा से ही काफ़ी धीरे और आराम से लिखती हैं और इस बात का अहसास उन्हें मेडिकल की पढ़ाई के दौरान हुआ। इस समस्या के लिए उन्होंने अपनी लेखन-शैली पर काम किया। वे जल्दी-जल्दी पन्ने नहीं भर सकती थीं, इसलिए उन्होंने अपने लेखन को रचनात्मक बनाया, ताकि एग्जामिनर को कम शब्दों में भी उनका जवाब अच्छे से समझ में आ जाये।
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"आपका जवाब कितना सटीक और सही है, इसके साथ-साथ यह बात भी मायने रखती है कि वह कितनी सफाई से लिखा गया है। हम सभी इंसान हैं और इसलिए हमें दूसरे के नज़रिए को ध्यान में रखना चाहिए, कि आपकी लिखाई ऐसी हो कि पढ़ते समय किसी और को बहुत ज़्यादा परेशानी न हो।"
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यूपीएससी के भावी प्रतिभागियों के लिए रेहाना सिर्फ़ यही संदेश देती हैं कि सफलता और असफलता, हमारी ज़िंदगी का हिस्सा हैं। बस दोनों को किस तरह से लेना है, यह आपको समझना चाहिए। यदि आज आप असफल हुए हैं, तो बस उस उद्देश्य को याद करें, जिसके लिए आपने अपनी तैयारी शुरू की थी। जिस उद्देश्य के लिए आप प्रशासनिक अधिकारी बनना चाहते हैं, अगर आपको वह उद्देश्य हमेशा याद रहेगा, तो फिर कोई भी हार आपको जीतने से नहीं रोक सकती है।
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साथ ही, वे लड़कियों के लिए कहती हैं, "एक लड़की के आगे बढ़ने में न सिर्फ़ परिवार की, बल्कि उसके स्कूल, दोस्त और समाज, इन सभी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए आज वक़्त है कि हम लड़कियों को उनकी ज़िंदगी के फ़ैसले लेने का पूरा हक़ दें और उस फ़ैसले पर डटे रहने के लिए उसका प्रोत्साहन करें।"
रेहाना को विश्वास है कि आने वाले समय में परिस्थितियां और भी बेहतर होंगी। अंत में वे सिर्फ़ इतना कहती हैं कि उन्हें देश के किसी भी कोने में पोस्टिंग मिलें, उनका मुख्य उद्देश्य देश के नागरिकों की सेवा करना और अपनी सभी ज़िम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी से निभाना होगा।
संपादन - मानबी कटोच