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कर्नाटक के दो दोस्त, सात्विक एस और प्रदीप खंडेरी 'सुरक्षा मडब्लॉक (Suraksha Mud blocks)' नाम की एक कंपनी चलाते हैं, जहां इंटरलॉकिंग मड ब्रिक विधि से मिट्टी के घर बनाए जाते हैं। इससे पर्यावरण को नुकसान भी नहीं होता और खर्च भी कम होता है।
बढ़ते शहरीकरण का एक नकारात्मक पहलू यह है कि हम अक्सर उस पारंपरिक ज्ञान को भूल जाते हैं, जिसने सदियों से भारत में स्थायी जीवन को आकार दिया है। लेकिन बीतते समय के साथ, मिट्टी के घरों की संख्या तेजी से घटी है। 1971 में मिट्टी से बने घरों की संख्या 57 प्रतिशत थी, जो घटकर साल 2011 तक केवल 28.2 प्रतिशत रह गई।
आज अधिकतर लोग सीमेंट से बने घर बनाना पसंद करते हैं। यह पर्यावरण के लिए नुकसानदेह तो है ही, साथ ही इससे क्लाइमेट चेंज पर भी काफी असर पड़ता है। कर्नाटक के ये दोनों दोस्त, इसी हालात को उलटने और पारंपरिक मिट्टी के घरों को फिर से लोकप्रिय बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
पानी और पैसों दोनों की होती है बचत
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सात्विक एस, एक मैनेजमेंट प्रोफेशनल हैं, जबकि प्रदीप खंडेरी, एक ऑटोमोबाइल इंजीनियर हैं। दोनों दोस्तों ने 2016 में 'सुरक्षा मडब्लॉक' की शुरुआत की थी। यह कंपनी, इंटरलॉकिंग मड ब्लॉक ईंटों का उपयोग करके घर बनाती है और पर्यावरण के अनुकूल निर्माण प्रथाओं को बढ़ावा देती है।
द बेटर इंडिया के साथ बात करते हुए, सात्विक ने बताया कि एमबीए खत्म करने के बाद, उन्होंने केरल के कोझीकोड में एक पोल्ट्री उद्योग के साथ काम करना शुरू कर दिया। उसी दौरान, वह एक दौरे पर पय्यानूर क्षेत्र गए थे, जहां उन्हें इंटरलॉकिंग ईंटों से बने मिट्टी के घरों का पता चला। वह, यह जानकर काफी प्रभावित हुए कि इन घरों को पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए बनाया गया और इसमें खर्च भी कम आया है।”
घर बनाने के तरीके और इसके फायदे सुनकर सात्विक काफी प्रभावित हुए। उन्हें इस तकनीक के बारे में और जानने की उत्सुकता हुई। वह बताते हैं, “मैंने प्रक्रिया के बारे में और जानने के लिए पास के एक कारखाने का दौरा किया। वहां मैंने जाना कि यह कोई नई तकनीक नहीं, बल्कि निर्माण के सबसे पुराने और सबसे टिकाऊ तरीकों में से एक है।” उन्होंने बताया कि इस तकनीक का अभ्यास, अफ्रीका जैसे देशों में भी किया जाता है।
कैसे बनाते हैं Suraksha Mud blocks?
पर्यावरण और घर बनाने की बात करते हुए सात्विक कहते हैं, वैश्विक तापमान बढ़ रहा है और सीमेंट का उपयोग पृथ्वी को नुकसान पहुंचा रहा है। आज बहुत से लोग अपना खुद का घर बनाना चाहते हैं, लेकिन घर बनाने में ऐसी सामग्री और तरीके की तलाश में हैं, जिससे पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचे।
सात्विक बताते हैं, “साल 2015-2016 में, इस क्षेत्र के बहुत से लोगों को इस तरह के टिकाऊ निर्माण प्रथाओं के बारे में पता नहीं था। लेकिन वे पर्यावरण के अनुकूल विकल्प तलाश रहे थे, ताकि उनका घर गर्मियों के दौरान ठंडा रहे और सर्दियों के दौरान गर्म।”
इसके बाद सात्विक ने अपने पुराने दोस्त प्रदीप से संपर्क किया और दोनों ने मिलकर एक बिजनेस शुरु करने का फैसला किया। उन्होंने मिलकर एक फैक्ट्री शुरू की, जहां घर बनाने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले मड ब्लॉक बनाए जाते हैं।
इंटरलॉकिंग मड ब्लॉक की बनाने के बारे में बात करते हुए सात्विक कहते हैं, “सबसे पहले मिट्टी को साफ किया जाता है और छाना जाता है। मिट्टी की एक आवश्यक मात्रा को बैच मिक्सर में डाला जाता है, जहां इसमें बहुत कम मात्रा में सीमेंट मिलाया जाता है। इसके साथ ही न्यूनतम मात्रा में प्लास्टिसाइज़र, एक सिंथेटिक राल मिलाई जाती है, जो मिश्रण को लचीलापन देता है। फिर इसे स्थिर किया जाता है और सांचे में डालकर अच्छे से दबाया जाता है।”
क्या हैं Mud blocks के फायदे?
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ये इंटरलॉकिंग मड ब्लॉक ईंटें मिट्टी से बनाई जाती हैं। इनका एक अलग डिजाइन और अलग आकार होता है। इसका स्ट्रक्चर थोड़ा उभरा-दबा हुआ सा होता है, जो उन्हें इंटरलॉक करने में सक्षम बनाता है, जिससे दीवार को मजबूती मिलती है। इसके अलावा, ये पारंपरिक पके हुए ईंटों की तुलना में भारी होती हैं और इनका फैलाव 2.5 गुना ज्यादा होता है।
इस विधि में जुड़ाई या बॉन्डिंग के लिए 8 प्रतिशत सीमेंट का प्रयोग किया जाता है, जिससे लाखों लीटर पानी और काफी अधिक मात्रा में रेत व मोर्टार/मसाले की बचत होती है। इन ईटों को पकाने की भी ज़रूरत नहीं होती है। इन ईंटों को ज़रूरत के हिसाब से अलग-अलग आकार का बनाया जाता है।
पारंपरिक ईंटों की तुलना में ये ज्यादा मजबूत होते हैं और सूर्य की गर्मी को घर के अंदर नहीं आने देते। सात्विक कहते हैं, "इन ईंटों के इस्तेमाल से घर कम से कम 10 डिग्री ठंडा रहता है। साथ ही इसे बनाने में उपयोग किए गए मटेरियल के कारण वेंटिलेशन भी अच्छा होता है। यह सर्दियों में एक इन्सुलेटर की तरह काम करता है। इसके अलावा, इन ईंटों का उपयोग करके बनाई गई संरचनाएं स्वाभाविक रूप से खूबसूरत लगती हैं। यही वजह है कि इस घर पर पलस्तर या पेंटिंग करना जरूरी नहीं होता। इस तरह खर्च भी कम हो जाता है।”
20 फीसदी तक होती है पैसों की बचत
सात्विक के मुताबिक, इस प्रक्रिया से घर बनाने से करीब 20 फीसदी तक पैसों की बचत हो सकती है। वह कहते हैं, "उदाहरण के लिए, पारंपरिक तरीके से घर बनाने में अगर 10 लाख रुपये का खर्च आता है, तो हम इसे 7 लाख रुपये के में बना सकते हैं।"
लागत प्रभावी होने के अलावा, ईंटें विश्वसनीय और टिकाऊ हैं, कस्टमाइजेशन की अनुमति देती हैं और रख-रखाव पर पर ज्यादा खर्च भी नहीं आता। इस विधि से घर बनाने में समय भी कम लगता है।
सात्विक का कहना है कि मिट्टी के ब्लॉक का उपयोग करना प्रकृति से मिट्टी उधार लेने और उसे वापस करने के समान है। वह कहते हैं, “मिट्टी के ये ब्लॉक्स रिसायकल किए जा सकते हैं।" सात्विक बताते हैं, स्थापना के बाद से, कंपनी ने इन ईंटों का उपयोग करके 1,100 से अधिक घरों का निर्माण किया है।
महाराष्ट्र के आर्किटेक्ट प्रवीण मेल का कहना है कि इंटरलॉकिंग मड ब्लॉक ब्रिक्स तकनीक टिकाऊ है और इसका इस्तेमाल कई तरह की मिट्टी के लिए किया जा सकता है। वह कहते हैं, “जमीन की खुदाई के दौरान उपयोग की जाने वाली स्थानीय रूप से उपलब्ध मिट्टी का उपयोग करके भी इसे बनाया जा सकता है। यह रेत की खरीद के लिए परिवहन और खरीद लागत बचाता है।”
क्या हैं कमियां?
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इस तकनीक की सीमा के बारे में बताते हुए प्रवीण कहते हैं कि इस विधि का इस्तेमाल करते हए ऊंची इमारतें नहीं बनाई जा सकती हैं। वह कहते हैं, “हमने कई प्रयोग किए और ज्यादा गर्मी और ज्यादा बारिश में नुकसान होते देखा। इस समस्या को हल करने के लिए कुछ चीजों का ध्यान रखना होगा, जैसे लंबी या फैली हुई छतें रखें और भौगोलिक व जलवायु परिवर्तन के हिसाब से संशोधनों पर विचार करें।"
वह आगे कहते हैं, “दूसरी समस्या यह है कि इन ईंटों को केवल निर्माण उद्देश्यों के लिए फिर से तैयार किया जा सकता है, क्योंकि इनमें सीमेंट मिला हुआ है। इन ईंटों को पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए और अधिक रीसर्च और विकास की ज़रूरत है।”
प्रवीण का कहना है कि अभी के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को सीमेंट का इस्तेमाल कम करना चाहिए और पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को चुनना चाहिए।
वह कहते हैं, "पृथ्वी के पास सीमित प्राकृतिक संसाधन हैं और वैश्विक तापमान हर साल बढ़ रहा है। मनुष्य के रूप में, यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम एक स्थायी भविष्य की दिशा में कदम उठाएं और अपने इस ग्रह को बचाएं।”
मूल लेखः हिमांशु नित्नावरे
संपादनः अर्चना दुबे
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