व्हील चेयर इस्तेमाल करने वाली काया रिवर राफ्टिंग करने की अपनी ख्वाहिश ज़ाहिर करे, तो उससे क्या कहेंगे आप? आंखों में रोशनी की ज़रा भी लौ न बाकी हो जिसकी, वही आपसे ताजमहल ‘दिखाने’ का अनुरोध करे तो ? और दूर देश से कोई मूक-बधिर ‘आवाज़ दे’ कि अपने देश के कोने-कोने में विराजमान बौद्ध स्मारकों/स्थलों की सैर करवा दो, तो मुंह मोड़ लेंगे क्या ? लेकिन चाहकर भी क्या कर पाएंगे ऐसे लोगों की घुमक्कड़ी के अरमानों को पूरा करने के लिए ?
शायद हम में से ज्यादातर कुछ न कर पाएं, लेकिन 34 साल की नेहा अरोड़ा के पास इरादों का ऐसा गज़ब का पुलिंदा है कि वह ऐसे तमाम लोगों की घुमक्कड़ी के इंतज़ाम को चुनौती की तरह लेती है।
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हरेक की घुमक्कड़ी की, एडवेंचर की छोटी-से-टी और बड़ी से बड़ी चाहत को पूरा करने का जुनून लिए नेहा खुद हर उस जगह की ‘रेकी’ करती है जहां वे लोग जाना चाहते हैं जो किसी न किसी अंग या कई अंगों की असामर्थ्य के चलते सामान्य व्यक्ति की तरह घूम-फिर नहीं सकते। फिर शुरू होती है ‘ज़मीनी जंग’ की तैयारी। अपनी टीम के साथ मिलकर वह ‘स्पेशल’ लोगों की स्पेशल फरमाइशों को पूरा करने के लिए विस्तृत योजना बनाती है। होटल से लेकर ट्रांसपोर्ट, ट्रैवल बडी या असिस्टैंट चुनने और जिसकी जैसी फरमाइश है उसके मुताबिक खास अनुभव का इंतज़ाम करने के लिए सर्विस पार्टनर/वैंडर चुनने का पूरा दारोमदार टीम का होता है।
नेहा कहती है, ''मुझे बड़ी चुनौती उस वक्त पेश आयी थी जब एक व्हील चेयर यूज़र ने रिवर राफ्टिंग की अपनी तमन्ना को पूरा करने की गुज़ारिश मुझसे की । और उस एक इच्छा को पूरी करने के लिए मैं ऋषिकेश में कितने ही सर्विस प्रोवाइडर्स को टटोल आयी थी। सामान्य इंसान भी ऐसे एडवेंचर में पड़ने से पहले दसियों पहलुओं को ठोंक-बजाता है और यहां मेरे सामने एक ऐसी महिला थीं जो अपने दम पर खड़ी भी नहीं हो सकती थीं। बहरहाल, हमने उनके इस सपने को अपना सपना बना लिया और ऐसा बंदोबस्त किया जिसमें उनके लिए न सिर्फ खास राफ्ट विदेश से मंगवायी गई बल्कि राफ्ट में सवार हर व्यक्ति के लिए एक लाइफगार्ड भी मौजूद था।''
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वह कहती है - ''मुझे हैरानी होती है कि 21वीं सदी में भी हम 'स्पेशल' लोगों की जरूरतों को पूरा करने के नाम पर रैंप बनाकर ही अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। कभी सोचा है मूक-बधिर ट्रैवलर की चुनौतियों को जो होटल में ठहरा है ? वह कैसे रूम सर्विस ऑर्डर कर सकता है ? या कोई नेत्रहीन बिना दूसरे की मदद लिए मैन्यू कार्ड कैसे पढ़ सकता है? व्हीलचेयर यूज़र कैसे बाथरूम के वॉशबेसिन तक पहुंच सकता है ? शरीर के निचले हिस्से में मोबिलिटी की समस्या के बावजूद अगर सैल्फ-ड्राइविंग का जुनून है तो कैसे पूरा हो सकता है? मुझे इन सवालों ने बेचैन कर डाला था मगर जवाब नदारद थे।''
जिस बदलाव की चाहत हो, वह खुद बन जाओ और इस संदेश को लेकर नेहा ने मैदान-ए-जंग में उतरने का फैसला कर लिया। उसने अपनी कार्पोरेट नौकरी छोड़कर ‘प्लेनेट एबल्ड’ की नींव रखी। शुरू में अपने ‘स्पेशल’ क्लाइंट्स को घुमाने के लिए वह अपने दोस्तों की मदद लेती थी, अकेले इस बड़ी जिम्मेदारी को निभाने का हौसला इन दोस्तों ने ही दिया। नेहा अपने जुनूनी सफर के शुरूआती दिनों को याद करती है, ‘‘मेरे दोस्त इन घुमक्कड़ों के ट्रैवल बडी बन गए थे। और वे इन लोगों की जरूरतों को कहीं ज्यादा संजीदगी से समझने लगे।''
शरीर की सीमाओं और अक्षमताओं को ठेंगा दिखाकर ‘बढ़े चलो’ का भरोसा वह इन यायावरों को देने लगी थी।
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''मुझे आज भी वो शाम नहीं भूलती जब मैंने दिल्ली के एक फैशनेबल कैफे में इन ‘खास घुमक्कड़ों के लिए गेट-टुगेदर का इंतज़ाम किया था। कोई अपनी व्हील चेयर पर चला आया था, तो किसी की वॉकिंग स्टिक और ट्रैवल बडी साथ था, जो सुन-बोल नहीं सकता था उसके साथ ‘इंटरप्रेटर’ था और कोई अपने शरीर की तरह-तरह की सीमाओं को भुलाकर उस महफिल का हिस्सा बनने आया था। और वो दिन यह बताने-जताने के लिए काफी था कि शारीरिक अक्षमताओं के बावजूद ये लोग जिंदगी की हर शै से खेलना चाहते हैं, अलग-अलग अनुभवों को अपना बना लेना चाहते हैं और यह तो कतई नहीं चाहते कि कोई उन पर तरस खाए।''
विकलांग माता-पिता के साथ बड़ी हुई नेहा अलग-अलग तरह की विकलांगताओं से ग्रस्त लोगों के लिए ट्रैवल का सपना सुगम बनाने में जुटी है। ''आसान नहीं होता अहमदाबाद के किसी विकलांग व्यक्ति को केरल के बैकवॉटर दिखाना या पुणे के किसी ऐसे युवा को लद्दाख ले जाना जिसके शरीर में विकलांगता का प्रतिशत 50 फीसदी से ज्यादा हो। मगर मैं सोचती हूं कि आसान तो कुछ भी नहीं होता, हर सवेरे नींद भुलाकर ऑफिस तक की भागमभाग भी तो आसान नहीं होती!’’
नेहा अपने इन बेहद खास यायावरों के लिए लोकल सिटी टूर के तहत् फूड, हेरिटेज, फेस्टिवल, शॉपिंग के अलावा दक्षिण एशिया में क्रूज़ ट्रिप और एडवेंचर पसंद करने वालों के लिए स्कींग, राफ्टिंग, जिपलाइनिंग जैसे अनुभवों के इंतज़ाम में लगी है।
प्लेनेट एबल्ड की उंगली थामकर अब तक दुनियाभर के 15 देशों के 500 से ज्यादा विकलांग सैर-सपाटे के अपने सपनों को जी चुके हैं। इनमें मूक-बधिर, नेत्रहीन, व्हीलचेयर यूज़र, ऑटिस्टिक, इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी के शिकार जन होते हैं तो सामान्य लोग भी होते हैं।
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प्लनेट एबल्ड के सफरी कारवां में कैंसर रोगी और बुजुर्ग नागरिक भी होते हैं। और शामिल होते हैं डिसेबल्ड कपल्स जो कभी एकांत की तलाश में तो कभी रोमांस की जुस्तजू में चले आते हैं। इंक्लुसिव ग्रुप टूर पर ज़ोर दिया जाता है। और ऐसा करने वाली प्लेनेट एबल्ड दुनिया की इकलौती कंपनी है! यूरोप से अमेरिका तक में आपको एक भी ऐसी कंपनी नहीं मिलेगी जो सभी के लिए ट्रैवल को एक्सेसिबल बना रही हो। आमतौर पर एक कंपनी एकाध तरह की विकलांगता से प्रभावित घुमक्कड़ों को साथ लेकर चलती है।
फिलहाल प्लनेट एबल्ड देश के 11 राज्यों में 35 मंजिलों तक सैर-सपाटे कराती है। हर मंजिल पर ये स्पेशल यात्री क्या कर सकते हैं, कहां जा सकते और कहां नहीं, कौन-सा आकर्षण उनकी पहुंच में है और किसे नहीं देखा जा सकता, इसकी पूरी खोजबीन कर उन्हें इस बारे में पहले से ‘एजुकेट’ किया जाता है।
‘बैरियर फ्री’ ट्रैवल के सपने को साकार करने की अपनी धुन में रहने वाली नेहा का मानना है कि संभावनाएं अनंत हैं और अवसर भी अनगिनत हैं। हाल में एक ‘डिसेबल्ड कपल’ के लिए रोमांटिक गैटअवे की घुमक्कड़ी को अंजाम देने के बाद नेहा ने बताया, - ‘’सबसे ज्यादा सुख हासिल होता है जब कोई कहता है कि मैंने उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा या नामुमकिन दिखने वाला ख्वाब पूरा किया है, या कोई प्यार से मैसेज बॉक्स में कह जाता है ‘यू हैव गिवन मी द ग्रेटेस्ट गिफ्ट ऑफ माइ लाइफ’। यकीन मानिए, उस दिन मैं अपने जुनून की सार्थकता महसूस करती हूं …. ''
नेहा से संपर्क करें-
Planet Abled
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