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अपनी मुफलिसी के दिनों को आज भी नहीं भूले अनिल, हर दिन सैकड़ों भूखे लोगों को खिलाते हैं खाना

anil singh
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भूख की समझ उसे ही होती है, जिसने खुद कभी कोई रात भूखे पेट बिताई हो। गोंडा (उत्तर प्रदेश) में हर रात ‘युवा सोच’ नाम की एक संस्था के लोग मसीहा बनकर जरूरतमंद लोगों को कम्बल और खाना बाँटने के लिए निकल पड़ते हैं। शहर के रेलवे स्टेशन से लेकर बस स्टैंड तक उन्हें जो भी जरूरतमंद दिखता है,  यह टीम उनकी मदद की हर संभव कोशिश करती है। 

इस संस्था को गोंडा के अनिल सिंह चलाते हैं। अनिल एक नर्सिंग कॉलेज में पढ़ाने के साथ-साथ, समाज सेवा के काम से भी जुड़े हैं। दरअसल,  उनके जीवन के अनुभवों ने ही उन्हें जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए प्रेरित किया था। 

मूल रूप से प्रतापगढ़ के रहनेवाले अनिल ने ग्वालियर से एमएससी नर्सिंग की पढ़ाई पूरी की, जिसके बाद  साल 2013 में वह नौकरी की तलाश में लखनऊ आ आ गए। उस दौरान वह नौकरी की तलाश में दिनभर भटकते और शाम को डालीगंज स्थित आश्रय गृह में रात बिताते। 

वहां पर कई रिक्शा चालक मजदूर भी ठहरते थे। उन रिक्शा चालकों ने उन दिनों अनिल की काफी मदद की थी।  उस आश्रम में रहते हुए ही अनिल ने लोगों की मजबूरियों की करीब से देखा। कुछ दिनों बाद, उन्हें एक मेडिकल कॉलेज में शिक्षक के रूप में नौकरी मिल गई। 

कुछ सालों बाद, अनिल सिंह गोंडा आए और यहीं रहने लगे। सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन एक बार रास्ते पर एक बुजुर्ग इंसान से उनसे खाना माँगा। उस अनजान शख्स की मदद करने के बाद, उन्हें महसूस हुआ कि ऐसे कई लोग हर दिन भूखे ही रह जाते हैं। इसी सोच के साथ उनकी संस्था ‘युवा सोच’ की शुरुआत हुई।  

Anil Singh

कोरोना के समय भी वह अपनी छोटी सी टीम के साथ काम करते थे। फिलहाल उनकी संस्था से 5000 युवा, कार्यकर्ता के रूप में जुड़े हैं। ये सभी गोंडा और आस-पास के शहरों व गांवो में काम करते हैं। आज अपनी संस्था के ज़रिए, अनिल हर दिन सैकड़ों लोगों तक मदद पंहुचा रहे हैं। 

अनिल खुद भी हर दिन करीबन 200 लोगों का खाना पैक कर, गोंडा शहर के चौराहों, बस स्टैंड सहित कई सार्वजनिक जगहों पर पर भोजन वितरण के लिए निकलते हैं। आने वाले समय में अनिल, जरूरतमंद लोगों के लिए एक अस्पताल भी खोलने वाले हैं, जहां हर कोई मात्र 20 रुपये का टोकन लेकर इलाज करा सकेगा। अनिल के इन कामों में शहर के कई वरिष्ठ अधिकारी और पुलिस महकमे से जुड़े लोग भी पूरा सहयोग देते हैं।  

अनिल के प्रयासों को देख, यह कहना गलत नहीं होगा कि अनिल जैसे युवा ही सही मायनों में देश के हीरो हैं।  

संपादनः अर्चना दुबे

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