हम और आप छाता, कम्बल, बेड जैसी चीजों को बड़ी आम चीज़ें मानते हैं, लेकिन आज भी न जाने कितने लोगों के लिए ये किसी लग्ज़री सुविधा से कम नहीं। मुंबई में रहनेवाले विमल चेरंगट्टू को भी साल 2018 में अपने जीवन के एक निजी अनुभव से इस बात का पता चला, तब उन्होंने सिर्फ अफ़सोस करने या दुखी होने के बजाय इस पर काम करने के बारे में सोचा।
हालांकि, किसी एक को ज़रूरत का सामान दे देना या मदद करना शायद समाज में कोई बड़ा बदलाव न ला सके। लेकिन इससे किसी एक ज़रूरतमंद के जीवन की थोड़ी मुश्किलें कम ज़रूर हो सकती हैं और इसी सोच के साथ विमल काम कर रहे हैं।
वह चार सालों से द कवर प्रोजेक्ट नाम से एक फेसबुक पेज के ज़रिए लोगों से डोनेशन जमा करते हैं, ताकि मुंबई की सड़कों पर रह रहे लाखों लोगों की किसी तरह से मदद कर सकें। उन्होंने इस काम की शुरुआत लोगों से उनके टूटे हुए या पुराने छाते जमा करने से की थी। वह पिछले चार सालों से लोगों से जमा किए टूटे छाते की मरम्मत करवाकर जरूरतमंदों तक पंहुचा रहे हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए विमल ने बताया, “मैं कोई NGO नहीं चलाता। मैं मात्र अपने सोशल मीडिया पेज के ज़रिए फंड और चीज़ें इकठ्ठी करता हूँ और उसे उन लोगों तक पहुंचाता हूँ, जिन्हें इसकी ज़रूरत है। मैंने शुरुआत सिर्फ छाता जमा करने और बांटने से की थी लेकिन हम, बिस्तर और दवाइयां जैसी चीज़ें भी लोगों तक मुफ्त में पंहुचा रहे हैं।”
एक बच्ची को छाता देने से शुरू हुआ था सफर
विमल एक आईटी कंपनी में मार्केटिंग का काम करते हैं। उन्हें कुछ सालों पहले तक शायद सड़क पर रहनेवाले लोगों की समस्याओं का कोई अंदाजा नहीं था। लेकिन वह कहते हैं न जीवन की एक छोटी सी घटना भी कभी-कभी बड़े बदलाव ला सकती है। ऐसा ही कुछ विमल के साथ भी हुआ।
एक बार मुंबई में ट्रेवल करते समय सड़क पर फूल बेचती एक छोटी बच्ची उनके पास आई और उनसे छाता मांगने लगी। वह बारिश का ही मौसम था, इसलिए विमल के पास एक छाता था। पहले तो विमल को आश्चर्य हुआ कि यह बच्ची छाता क्यों मांग रही है, लेकिन उन्होंने ज्यादा सोचे बिना उसे छाता दे दिया, जिसके बाद वह बच्ची बहुत खुश हो गई।
उस दिन उस छोटी बच्ची को देखकर विमल को लगा कि यह छाता इनके लिए किसी लक्ज़री चीज़ की तरह था, जिसे पाकर वह इतनी खुश हो गई। उसे देखकर कई और बच्चे उनके पास आए और छाता मांगने लगे।
एक फेसबुक पोस्ट ने किया कमाल
दरअसल, सड़क पर रहनेवाले ये लोग दिन भर जो कमाते हैं, उसी से खाना खरीदकर खा लेते हैं। अगर उनके पास 100 रुपये भी जमा होंगे, तो शायद ही कोई छाता खरीदने के बारे में सोचेगा। लेकिन हममें से ज्यादातर लोगों के घर में एक से ज्यादा ही छाते रहते हैं और कई बार तो हम पुराने छाते को बेकार समझकर फेंक भी देते हैं।
ऐसे में विमल ने अपने दोस्तों को इस बारे में बताया और फेसबुक के ज़रिए लोगों से इस समस्या के बारे में बात की। उन्होंने लोगों से अपना पुराना या टूटा छाता ज़रूरतमंद लोगों के लिए डोनेट करने की अपील की। विमल बताते हैं, “मेरी वह पोस्ट काफी वायरल हुई। शहर के कई बड़े सेलिब्रिटीज़ ने भी मेरे उस पोस्ट को शेयर किया, जिसके बाद पहले ही साल हमने 5000 छाते जमा करके ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंचाए।”
पहले ही साल इतने सारे छाते जमा करने के बाद, विमल को लगा कि शायद अब मुंबई की सड़कों पर रहनेवाले सभी लोगों को छाते मिल जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्योंकि जितने छाते उनके पास थे, ज़रूरतमंद उससे कहीं ज्यादा थे।
इस छाता पहल को दुनिया भर से मिला लोगों का प्यार और मदद
कई लोग विमल से पूछते कि एक छाता देकर गरीबी तो दूर नहीं हो सकती? लेकिन उस समय विमल को सड़क पर रहनेवाले एक बच्चे की कही बात याद आती है। वह बताते हैं, “2018 में छाता बांटते समय मैंने एक बच्चे से पूछा कि तुम बारिश के दिनों में स्कूल कैसे जाते हो, तो उसने जवाब दिया- दौड़कर। तभी मैंने सोच लिया कि हर साल मैं कोशिश करूंगा कि किसी बच्चे को भींगकर दौड़ते हुए स्कूल न जाना पड़े।”
साल 2018 से अब तक वह हर साल बारिश में छाता कैम्पेन करते हैं, जिसके लिए लोग उन्हें अपने टूटे छाते के साथ पैसों से भी मदद करते हैं। वहीं, वह बिस्तर और दवाइयों जैसी चीजों के लिए भी ऑनलाइन फण्ड इकट्ठा करते हैं। उनके इस काम में उनके ऑफिस, स्कूल, कॉलेज के कई दोस्त उनका साथ देते हैं। विमल ने बताया कि सोशल मीडिया के ज़रिए देशभर से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी लोग उनकी मदद के लिए सामने आए हैं।
हाल में उन्हें एक ऐसी कंपनी का पता चला है, जिसमें नेत्रहीन लोग छाता बना रहे हैं। अब वह इन नेत्रहीन लोगों के बने छाते ही खरीदकर ज़रूरतमंद लोगों में बांटने वाले हैं। आप भी विमल और उनकी टीम की किसी भी तरह की मदद करने के लिए उन्हें फेसबुक पर सम्पर्क कर सकते हैं।
संपादनः अर्चना दुबे
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