Placeholder canvas

सेलेब्रल पाल्सी की बीमारी भी नहीं बन सकी रुकावट, ऑटो डाइवर की बेटी अब बनेगी डॉक्टर

yashi

गोरखपुर की रहने वाली यशी कुमारी के पिता ऑटो ड्राइवर हैं और यशी को बचपन से सेलेब्रल पाल्सी जैसी गंभीर बीमारी थी। लेकिन इन सब मुश्किलों से लड़कर उन्होंने पहले ही प्रयास में नीट के ज़रिए एक प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया।

मंज़िल की ओर पूरी मेहनत, लगन और समर्पण के साथ कदम बढ़ाए जा रहे हों तो शारीरिक अक्षमता कभी रुकावट नहीं बन सकती। यह बात गोरखपुर की रहनेवाली यशी कुमारी पर पूरी तरह फिट बैठती है। वह अब तक लाइलाज मानी जाने वाली बीमारी, सेरेब्रल पाल्सी से जूझ रही थीं। सात साल की उम्र तक उनके हाथ-पैर काम नहीं करते थे और वह हर वक्त बिस्तर पर ही पड़ी रहती थीं। लेकिन आज वही यशी न सिर्फ़ अपने पैरों पर खड़ी हुई हैं, बल्कि मेडिकल कॉलेज में उसका सेलेक्शन भी हो गया है। 

एमबीबीएस कोर्स में एडमिशन के लिए यशी को पहली ही कोशिश में बड़ी कामयाबी मिली है। वह खुद चल-फिर सकने में लाचार थीं, अब डॉक्टर बनकर अपने जैसे तमाम दिव्यांग बच्चों का इलाज करेंगी, ताकि वे भी आत्मनिर्भर बन सकें।  

यशी की यह उपलब्धि, दूसरे बच्चों और दिव्यांगजनों के लिए प्रेरणा बन चुकी है।

शारीरिक और आर्थिक तंगी को हराकर हासिल की सफलता

Yashi with her family
Yashi with her family

किसी भी गंभीर बीमारी के इलाज में ढेरों पैसे लगते हैं। लेकिन यशी किसी अमीर परिवार से नहीं, बल्कि एक सामान्य मिडिल क्लास फैमिली से ताल्लुक़ रखती हैं। उनके पिता एक ऑटो ड्राइवर हैं। इसके बावजूद पिता मनोज ने यशी का इलाज कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बचपन में यशी को ज़िंदगी जीने में भले ही कितनी मुश्किलें आईं हों, लेकिन उनको शिक्षा हासिल करने की लगन थी और इसी के दम पर उन्होंने अपने जीवन की राह बनाई। 

दिन भर बिस्तर पर पड़े रहने के बावजूद यशी ने कभी हिम्मत नहीं हारी और अपनी कमज़ोरी को ही ताकत बनाया। कुछ साल पहले, यशी के परिवार वाले प्रयागराज उसका इलाज कराने पहुंचे। इसके बाद उनके शरीर में कुछ सुधार होने की शुरुआत हुई। फिर यशी ने स्कूल जाना शुरू किया। वह पढ़ने में इतनी अच्छी थीं कि स्कूल की हर परीक्षा में फर्स्ट डिवीजन पास होतीं। इतना ही नहीं, जब मेडिकल की प्रवेश परीक्षा के लिए आवेदन किया तब भी उन्होंने जी-जान से मेहनत की और पहले ही अटेम्प्ट में उन्हें सफलता मिल गई। 

बारहवीं के बाद अब उसका सेलेक्शन देश के सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेजों में से एक में हुआ है। अब यशी लाचार नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर हैं और जल्द ही दूसरों का इलाज करके उनकी भी जीवन में आगे बढ़ने में मदद करेंगी।  

उनकी कहानी हर इंसान के लिए प्रेरणा है।  

संपादन- भावना श्रीवास्तव 

यह भी देखेंः चार बार फेल होने के बावजूद नहीं मानी हार, IAS संजीता मोहापात्रा ने हासिल की सफलता


We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X