पिछले कुछ सालों में जिस तरह से पानी की कमी देश में बढ़ी है, वह किसी खतरे से कम नहीं है। हर साल किसी न किसी राज्य में सूखे के हालात होते हैं और न जाने कितने शहरों और गाँवों में भूजल बिल्कुल ही खत्म हो चूका है।
मदुरई के तिरुनगर में पले-बढ़े जे. चंद्रशेखरन को इस बात का एहसास तब हुआ, जब उन्होंने तमिलनाडु, आंध्र-प्रदेश और कर्नाटक के बहुत ही दूरगामी गाँवों की यात्रा की।
केमिस्ट्री में ग्रैजुएशन और प्लास्टिक टेक्नोलॉजी में डिप्लोमा करनेवाले चंद्रशेखरन, रीच फाउंडेशन के संस्थापकों में से एक हैं। यह फाउंडेशन हेरिटेज साइट्स को बचाने के लिए काम कर रही है।
“पिछले कई सालों में, मैंने लगभग 2000 गाँवों की यात्रा की, ताकि ऐसी हेरिटेज साइट्स का पता लगाएं, जिन्हें बचाने और बहाल करने की ज़रूरत है। यहाँ मैंने नोटिस किया कि सभी गाँवों के लोगों की समस्या एक है। पहली, पीने योग्य पानी की कमी, जिस वजह से उन्हें मिनरल वाटर बोतल पर निर्भर करना पड़ता है। और ये बोतल कहाँ से आ रही हैं, इसके सोर्स और गुणवत्ता के बारे में भी उन्हें कुछ नहीं पता। दूसरा, हमने नोटिस किया कि वहां कहीं भी ढंग के शौचालय नहीं थे। लोग शौच के लिए इधर-उधर एक मग लेकर जा रहे थे,” उन्होंने बताया।
इन हालातों ने चंद्रशेखरन को काफी प्रभावित किया और उन्होंने ठान लिया कि वह उनके लिए कुछ करेंगे। पांच सालों की रिसर्च के बाद उन्होंने साल 2013 में वाटसन (WATSAN) नाम से सोशल एंटरप्राइज शुरू किया।
“वाटसन, दो शब्दों से मिलकर बना है- वाटर और सैनिटेशन- ये वो दो मूलभूत ज़रूरतें हैं जो हम लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं,” उन्होंने कहा।
कम लागत का इको-फ्रेंडली सोल्यूशन
‘वाटसन’, टेराफिल वाटर प्योरीफायर बनाता और बांटता है। ये कम लागत वाले वाटर प्योरीफायर हैं, जिन्हें बिजली की ज़रूरत नहीं होती है। 2.5 लाख से भी ज्यादा परिवार फ़िलहाल यह वाटर प्योरीफायर इस्तेमाल कर रहे हैं।
वह आगे बताते हैं कि वाटर प्योरीफायर के लिए वे ऐसा विकल्प तलाश रहे थे जिसमें बिजली की ज़रूरत न पड़े। ऐसे में उनके मेंटर ने उन्हें बताया कि काउंसिल ऑफ़ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च- इंस्टिट्यूट ऑफ़ मिनरल्स एंड मैटेरियल्स टेक्नोलॉजी (CSIR-IMMT) ने मिट्टी की ऐसी मोमबत्ती बनायीं है जिसमें नैनोपोर्स (बहुत ही महीन छिद्र) होते हैं और यह वाटर-फ़िल्टर के तौर पर काम कर सकती है।
इसके बाद, उन्होंने वह मोमबत्ती बनाने का लाइसेंस लिया और कांचीपुरम के एक गाँव में स्थित वाटसन कंपनी की यूनिट में प्योरीफायर बनाना शुरू किया। कुछ सालों में उन्होंने ऐसे प्योरीफायर बनाना भी शुरू कर दिया जो कि पानी से फ्लुरोइड और आर्सेनिक जैसी अशुद्धियों को भी फ़िल्टर कर सकता है।
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अलग-अलग तरह के इस प्योरीफायर में दो कंटेनर रहते हैं। बहुत ही छोटे-छोटे मिट्टी के कणों से बनी टेराफिल कैंडल को पहले कंटेनर में रखा जाता है। प्योरीफायर का ऊपर का हिस्सा बैक्टीरिया-वायरस आदि को पानी से फ़िल्टर करता है। नीचे वाले कंटेनर में साफ़, शुद्ध और पीने योग्य पानी जमा होता है।
फ़िलहाल, वाटसन कंपनी की दो यूनिट है- एक मैन्युफैक्चरिंग, जो कि कांचीपुरम के एक गाँव में है और दूसरी, असेम्बलिंग यूनिट, जो कि चेन्नई में है। मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में 28 महिलाएं काम करती हैं, जिनमें से एक हैं 30 वर्षीय सुनंदा राजा, जोकि पिछले एक साल से इस कंपनी का हिस्सा हैं।
“मैं पहले एक घर में काम करती थी। पर उस कमाई से घर चलाने में बहुत मुश्किल हो रही थी। मेरे दो बेटे हैं और उनकी पूरी ज़िम्मेदारी मुझ पर है। मुझे ख़ुशी है कि मैंने यहाँ काम करना शुरू किया क्योंकि यहाँ तनख्वाह ज्यादा है और काम का समय भी बहुत सही है। जैसे ही मेरे बच्चे स्कूल जाते हैं, मैं यहाँ काम के लिए आ जाती हूँ। फिर जिस वक़्त तक वे स्कूल से वापिस आते हैं, तब तक मैं काम खत्म करके घर चली जाती हूँ। अब मुझे अपने बेटों के साथ ज्यादा वक़्त मिलता है,” सुनंदा ने द बेटर इंडिया को बताया।
यहाँ पर सभी औरतें ही काम करती हैं। “मैंने इन प्योरीफायर को पैकेज और असेम्बल करना सीखा है और साथ ही, इन्वेंट्री का ट्रैक रखना भी। मैं अपने घर पर भी यह प्योरीफायर इस्तेमाल करती हूँ। यहाँ काम करने से मैं खुद को सशक्त महसूस करती हूँ,” उन्होंने आगे कहा।
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केरल, उड़ीसा, और चेन्नई में जब बाढ़ आयीं तो वहां के स्वयं-सेवी संगठनों को वाटसन ने 5, 000 प्योरीफायर बेचे। उनके साथ 6 एनजीओ पार्टनरशिप में है, जो उनसे ये प्योरीफायर खरीद कर ज़रुरतमंदों तक पहुंचाते हैं। वाघा बॉर्डर के जवान भी यह इस्तेमाल कर रहे हैं।
वे ऑनलाइन फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म के साथ भी काम कर रहे हैं जो कि अपने क्लाउड किचन में उनका वाटर प्योरीफायर इस्तेमाल कर रहे हैं। वाटसन न सिर्फ अपने देश के बल्कि अन्य देश के लोगों के लिए भी काम कर रहा है। उनके पायलट प्रोजेक्ट रवांडा, तंजानिया, नाइजीरिया, केन्या, जिम्बावे और म्यांमार में भी चल रहे हैं।
शौचालय बनाना
वाटर फ़िल्टर के साथ-साथ, वाटसन ने वेस्ट फाइबरग्लास को रीसायकल करके 52 शौचालय भी बनाये हैं।
“मैंने देखा कि विंडमिल ब्लेड मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री में बहुत ज्यादा मात्रा में फाइबरग्लास वेस्ट होता है। विंडमिल ऊर्जा का अच्छा विकल्प है, लेकिन उन्हें बनाने के बाद बच जाने वाला यह वेस्ट डिस्पोज नहीं होता है। वाटसन को इस वेस्ट को इस्तेमाल करने का अच्छा विकल्प मिला और उन्होंने फाइबर रेंफोर्सड प्लास्टिक (FRP) से टॉयलेट बनाना शुरू किया,” चंद्रशेखरन ने बताया।
सीमेंट की बजाय FRP से शौचालय बनाना ज्यादा आसान है। साथ ही, यह ज्यादा मजबूत और वजन में हल्का भी होता है।
काम, चुनौतियां और प्रभाव:
बेशक, वाटसन के चलते काफी अच्छा बदलाव आया है पर अपने इस काम में उन्हें बहुत-सी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा। वह बताते हैं कि शौचालय बनाने का उनका आईडिया और डिजाईन भले ही तैयार था पर फिर भी कई जगह से अनुमति लेने के चलते उन्हें काफी समय लग गया।
जैसे ही उन्हें अप्रूवल मिला, उन्होंने टॉयलेट किट बनाना शुरू किया। इस किट में टॉयलेट के लिए छत, दीवारें, गेट, कमोड और पैर (जिससे की शौचालय बिना हिले एक जगह पर रहे) शामिल हैं। यहाँ तक कि उन्होंने तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की सीमा के पास पोदातुरपेट के एक बालिका अनाथ आश्रम में भी पायलट प्रोजेक्ट किया।
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उन्हें पता चला कि वहां की एक बच्ची जब खुले में शौच के लिए गयी तो उसे बिच्छू ने काट लिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। यहाँ पर उन्होंने 15 वाटसन टॉयलेट इनस्टॉल किए हैं।
“पर इन शौचालयों को ट्रांसपोर्ट करना बहुत मुश्किल काम था,” उन्होंने आगे कहा।
इसलिए उन्होंने तय किया कि वह खुद शौचालय बनाकर ट्रांसपोर्ट करें, इससे बेहतर है कि वह लोगों को रॉ मटेरियल उपलब्ध करवाकर उन्हें खुद टॉयलेट बनाना सिखाएं। नवंबर 2019 में उन्होंने तिरुतुरैपूंडी में स्वयं-सहायता समूह की 12 महिलाओं की मदद से 40 शौचालयों का निर्माण कार्य पूरा किया है।
वह कहते हैं कि उनके इस आईडिया ने सभी को प्रभावित किया है।
“मैं माननीय अतिथि के तौर पर ग्रेट लेक्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट गया था। जब वहां के छात्रों को मैंने बताया कि मैं क्या काम कर रहा हूँ तो उन्होंने क्राउडफण्ड करके पैसा इकट्ठा किया, इसमें मैंने भी अपना योगदान दिया। इस तरह से हमने एक शौचालय के निर्माण में मदद की,” उन्होंने आगे बताया।
तो, अब आगे वाटसन का क्या प्लान है?
चंद्रशेखरन अब ‘वाटर ऑन व्हील्स’ बनाने पर काम कर रहे हैं जोकि एक पोर्टेबल वाटर प्योरीफायर है। उन्हें उनके इस प्रोजेक्ट के लिए नासकॉम से 10 लाख रुपये की ग्रांट भी मिली है।
साल 2017 में वाटसन को कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्री से बेस्ट स्टार्टअप अवॉर्ड मिला था। उन्होंने 2018 में फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) का वाटरप्रेन्योर अवॉर्ड भी जीता था। अंत में वह बस इतना कहते हैं,
“मैं हमारे साथ काम करने के लिए और एक चेंजमेकर बनने के लिए किसी से कोई डिग्री या योग्यता नहीं चाहता। मैं ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को अपने साथ जोड़कर उन्हें स्किल और ट्रेनिंग देना चाहता हूँ ताकि वे जो पानी इस्तेमाल कर रही हैं उसे जांच सकें। मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ काम करना चाहता हूँ ताकि यह समाधान और आगे तक पहुंचे।”
संपादन – मानबी कटोच