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किसान को सलाम: 150 से अधिक लोगों की बचा चुके हैं जान, आंख से लेकर किडनी तक कर चुके दान

Road Accident
किसान के जज्बे को सलाम: 150 से अधिक लोगों की बचा चुके हैं जान, आंख से लेकर किडनी तक कर चुके दान

भारत में सड़क हादसे (Road Accident In India) में हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती है। कुछ मामले ऐसे भी होते हैं कि यदि उन्हें सही समय पर इलाज मिल जाए, तो लोगों की जान बचाई जा सकती है। लेकिन, कानूनी उलझन में फंसने के डर से कई लोग मदद के लिए सामने नहीं आना चाहते हैं।

आज हम आपको एक ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने मानवीयता का परिचय देते हुए न सिर्फ 150 से अधिक लोगों की जान बचाई है, बल्कि हजारों दिव्यांग बच्चों को एक नई मजबूती देने में भी मदद की है।

यह कहानी है मध्य प्रदेश के देवास में रहने वाले मनोज पटेल की। मनोज मूल रूप से एक किसान हैं, लेकिन समाज में इनकी पहचान मुसीबत में फंसे लोगों की जान बचाने के लिए एक मददगार के तौर पर है।

मनोज ने द बेटर इंडिया को बताया, “हमने सड़क हादसे (Road Accident) में अभी तक 152 लोगों की जान बचाने के अलावा 11 हजार से अधिक बच्चों का मुफ्त में इलाज करवाने में भी मदद की है। साथ ही, लावारिस छोड़ गए छह नवजात बच्चों को अपना पालना गृह बनाकर, सरकार को भी दिया है।”

कैसे मिली प्रेरणा

इसके बारे में 39 वर्षीय मनोज ने बताया, “यह दो दशक से भी अधिक पुरानी बात है। तब मैं स्कूल में पढ़ता था। एक दिन स्कूल के मैदान में क्रिकेट खेलते हुए एक बच्चे को काफी चोट लग गई और वह बेहोश हो गया। मैं उसे अस्पताल लेकर गया। यह कुछ ऐसा अनुभव था, जिससे मुझे लोगों को मदद करने की प्रेरणा मिली।”

मनोज पटेल

वह कहते हैं, “आज कई लोग सड़क हादसे की चपेट में आए घायलों की मदद करने के बजाय, सिर्फ देखकर नजरअंदाज कर देते है। लेकिन, यदि घायलों को गोल्डन आवर यानी हादसे के एक घंटे के अंदर, इलाज मिल जाए तो खतरा कम होता है।”

मनोज के अनुसार, सड़क हादसे (Road Accident) में घायल मरीजों को बचाने का यह सिलसिला करीब 12 साल पहले शुरू हुआ। 

वह कहते हैं, “जब मैंने पहली बार सड़क हादसे (Road Accident) में घायल शख्स को बचाया था, तो उनका काफी खून बह रहा था। मैं उन्हें अस्पताल लेकर गया, तो डॉक्टर ने कहा कि यदि 10-15 मिनट और देर हो जाती तो जान बचाना मुश्किल था।”

कैसे करते हैं काम

मनोज कहते हैं, “मैं लोगों को बचाने की अपनी कहानी सोशल मीडिया पर पोस्ट करता था। इससे कई लोगों को प्रेरणा मिली और वे मेरी इस पहल से जुड़ गए। मेरी टीम में फिलहाल मध्य प्रदेश के 150 से अधिक लोग हैं।”

वह बताते हैं, “यदि हम कहीं से गुजर रहे होते हैं और सड़क हादसे में कोई शख्स घायल हो जाता है, तो हम उन्हें तुरंत नजदीकी अस्पताल पहुंचाते हैं, चाहे निजी हो या सरकारी। आज निजी अस्पतालों में भी घायलों को फर्स्ट एड आसानी से मिल जाता है। हम अपनी टीम को व्हाट्सएप ग्रुप के जरिए चलाते हैं।”

इसके अलावा, मनोज के पास कई जगहों से मदद के लिए फोन भी आते हैं। ऐसे में वह तुरंत एम्बुलेंस सेवा के लिए फोन करते हैं।

वह बताते हैं, “मैंने अपनी गाड़ी को भी एम्बुलेंस का रूप दे दिया है। इलाके में मेरा फोन नंबर सबको पता है। यदि उन्हें किसी मदद की जरूरत होती है, तो वे मुझे तुरंत फोन करते हैं और मैं उन्हें अस्पताल पहुंचा देता हूं।”

मनोज की मदद से शख्स को मिला नकली हाथ

वहीं, सड़क हादसों (Road Accident) में घायलों के अलावा मनोज ने 11 हजार से अधिक दिव्यांग बच्चों को भी इलाज करवाने में मदद की है।

वह बताते हैं, “ऐसे बच्चों की मदद के लिए मैं ‘ऑरेंजेज’ नाम से एक एनजीओ को भी चलाता हूं। इसके तहत हमारा संबंध कुछ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों के अलावा निजी अस्पतालों के कुछ डॉक्टरों से भी है। हम बच्चों को उन तक पहुंचा देते हैं, जहां उनका मुफ्त में इलाज होता है।”

वह आगे बताते हैं, “कई लोग बच्चे के जन्म के बाद, उन्हें सड़क पर छोड़ देते हैं। यह बेहद चिंताजनक बात है। हमने स्थानीय सरकारी अस्पताल में एक पालना घर बनाया है, जिसमें लोग अपने अनचाहे बच्चे को छोड़ कर जा सकते हैं। फिर हम उन बच्चों को सरकार को सौंप देते हैं। इस तरह हमने अभी तक कुल छह बच्चों को बचाया है।”

मनोज से मदद पाने वालों में शामिल, इंदौर के रहने वाले 29 वर्षीय जीवन कहते हैं, “यह करीब 10-11 साल पुरानी बात है। मैं अपने दोस्तों के साथ सड़क पार कर रहा था। तभी एक वाहन से मेरे दाहिने पैर में काफी चोट लग गई। कुछ दिनों के बाद डॉक्टर ने कहा कि पैर में इंफेक्शन हो गया है और इसे काटना पड़ा। हमारा परिवार खेती करता है और हमारे लिए खर्च उठाना काफी मुश्किल था। फिर, मेरे पिता जी ने मनोज से बात की और उन्होंने हमारी काफी मदद की। उनकी कोशिशों के बाद ही, छह-सात महीने बाद हमारा नकली पैर लग पाया।”

मनोज ने अपनी कार को दिया एंबुलेंस का रूप

मनोज को अपने इन कार्यों के लिए माय एफएम 94.5 की ओर से ‘जीयो दिल से अवार्ड’, ‘राष्ट्रीय रत्न अवॉर्ड – 2020’ जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

हालांकि, उन्हें अपने इन प्रयासों के कारण कई परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है।

वह कहते हैं, “हमें इन कार्यों के लिए मामूली खर्च का सामना करना पड़ता है, जिसे हम आपस में ही मिल कर जुटाते हैं। हम खेती-किसानी करने वाले लोग हैं, जिस वजह से हमें कभी-कभी थोड़े पैसों की दिक्कत होने के साथ ही, वक्त की कमी भी रहती है। लेकिन हम लोगों की मदद करने से कभी पीछे नहीं हटते हैं। इस प्रयास में परिवार का भी पूरा सहयोग रहता है।”

जागरूकता जरूरी 

मनोज कहते हैं, “कई लोगों को लगता है कि यदि वे घायलों की मदद करेंगे, तो वे कानूनी मसले में फंस जाएंगे। लेकिन मुझे आजतक ऐसी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ा।”

वह आगे कहते हैं, “सरकार ने सड़क हादसे (Road Accident) के शिकार लोगों की मदद को बढ़ावा देने के लिए ‘गुड समैरिटन‘ स्कीम की शुरुआत की है। जिसके तहत गोल्डन आवर में घायलों को अस्पताल पहुंचाने वाले शख्स को इनाम के तौर पर 5000 रुपए दिए जाएंगे। इस योजना की शुरुआत इसी साल हुई है।”

वह बताते हैं कि इस योजना के तहत एक साल में सबसे अधिक लोगों को बचाने वाले शख्स को पांच लाख रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा। जबकि, दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाले को क्रमशः 3 लाख और 1 लाख रुपया का पुरस्कार दिया जाएगा। यदि इस स्कीम को बढ़ावा दिया जाए, तो देश में सड़क हादसे में मारे गए लोगों की संख्या में जरूर कमी आएगी।

ट्रेनिंग पर देना होगा जोर

मनोज बताते हैं, “भारत में वाहनों की संख्या, पूरी दुनिया के मुकाबले सिर्फ एक फीसदी ही है। लेकिन सड़क हादसों में यह आंकड़ा 11 फीसदी है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि स्थिति कितनी भयावह है।”

हजारों दिव्यांग बच्चों को मनोज ने दी है नई उम्मीद

वह आगे कहते हैं, “सड़क हादसों (Road Accident) का सबसे बड़ा कारण, खराब सड़कों के साथ ही अच्छी ट्रेनिंग में कमी भी है। अक्सर देखा जाता है कि यहां लोगों को बिना अच्छी ट्रेनिंग के भी ड्राइविंग लाइसेंस मिल जाता है। सबसे खतरनाक नाबालिगों का वाहन चलाना है।”

वह कहते हैं, “ड्राइविंग को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल कर, छठी क्लास से ही बच्चों को सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूक करना एक बेहतर विकल्प हो सकता है।”

क्या करते हैं अपील

मनोज लोगों से अपील करते हैं, “हमने काफी सीमित संसाधनों में लोगों की मदद की है। जरूरी नहीं है कि आप हमेशा बड़े पैमाने पर ही लोगों की मदद करें। यदि आप एक शख्स की भी मदद करने में सक्षम हैं, तो आपको जरूर करना चाहिए।”

वह अंत में बताते हैं, “मैंने जीवन के बाद भी लोगों की मदद के लिए अपनी आंख, किडनी, हृदय से लेकर लीवर तक को दान कर दिया है।”

आशा है कि मनोज पटेल की इस कहानी से आप सभी को प्रेरणा मिली होगी। मनोज ने लोगों की मदद के लिए जो जिम्मा उठाया है, वह काबिल-ए-तारीफ है। द बेटर इंडिया उनके जज्बे को सलाम करता है।

आप मनोज पटेल से morangessws@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

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