गाड़ी चलाते हुए अब नहीं आएगी नींद की झपकी, यह ऐप पहले ही कर देगा अलर्ट

3 Engineering students invented a device which will prevent road accidents

विशाखापट्टनम के तीन दोस्तों ने मिलकर एक ऐसा एआई पावर्ड डिवाइस बनाया है, जो गाड़ी चलाते समय झपकी आते ही आपको अलर्ट कर देगा।

लंबे सफर पर ड्राइव करते हुए अक्सर थकान और नींद से हमारी आंखे बोझिल होने लगती हैं। हम थोड़ा ब्रेक लेते हैं, चेहरे को पानी से धोते हैं और फिर फ्रेश होकर आगे के सफर पर निकल पड़ते हैं। लेकिन कुछ लोग इस पर ध्यान नहीं देते और यह ग़लती दुर्घटना का एक बड़ा कारण बन जाती है। 

साल 2017 में आंध्र प्रदेश में, ड्राइवर को गाड़ी चलाते हुए नींद आ जाने की वजह से दो भयंकर बस दुर्घटनाएं हुई थीं। एक बस, सैलानियों को ले जा रही थी और दूसरी एक स्कूल बस थी, जिसमें टीचर्स और बच्चे सवार थे। इसमें कई लोगों की जान चली गई थी। 

सड़क दुर्घटनाओं से बैचेन छात्रों ने ढूंढा समाधान 

उस ख़बर ने, बाकी लोगों की तरह ही विशाखापट्टनम में इंजीनियरिंग के छात्र प्रदीप वर्मा को भी खासा परेशान कर दिया था। 22 साल के प्रदीप, सोचने के लिए मजबूर हो गए कि आखिर इन दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कोई तकनीक क्यों नहीं है? उस समय वह विशाखापट्टनम के गायत्री विद्या परिषद कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में पढ़ाई कर रहे थे। 

उन्होंने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया, “काफी रिसर्च करने के बाद, मैंने महसूस किया कि मौजूदा समय में बाहरी दुर्घटनाओं का पता लगाने और पहले से ही उनकी जानकारी के लिए कई तकनीक हैं। लेकिन गाड़ी चलाते समय ड्राइवर के सो जाने की समस्या के लिए कुछ भी नहीं किया गया।” राहुल ने अपने दो दोस्तों रोहित के. और ज्ञान साई के साथ मिलकर एक ऐसी तकनीक पर काम करना शुरू किया, जो इस तरह की घटनाओं को रोकने में मददगार साबित हो सके।

Pradeep Varma, innovater of an AI-powered device that can prevent road accidents
Pradeep Varma, innovater of an AI-powered device

वे एक ऐसा सिस्टम बनाना चाहते थे, जो ड्राइवर और सड़क, दोनों की निगरानी कर सके। डिवाइस बनाने के लिए उन तीनों ने कुछ फंड जमा किए और साथ ही कॉलेज की सुविधाओं का भी इस्तेमाल किया। उन्होंने डिवाइस में इंडस्ट्रियल ग्रेड कैमरे लगाए, ताकि ड्राइवर के साथ-साथ सड़क पर भी नजर रखी जा सके। ये एआई पावर्ड कैमरे थे, जिन्हें ड्राइवर की पलक झपकने की गति की निगरानी के लिए प्रोग्राम किया गया था।

बनाया स्लीप पैटर्न ट्रेस करने वाला डिवाइस

प्रदीप कहते हैं, “अगर पलक झपकने की गति धीमी पड़ती है, तो इसका सीधा सा मतलब है ड्राइवर सोने वाला है। ऐसी स्थिति में ड्राइवर को अलर्ट करने के लिए डिवाइस से एक तेज आवाज़ निकालेगी। ड्राइवर के माइक्रो स्लीप पैटर्न को ट्रेस करने के लिए भी इसे प्रोग्राम किया गया है।” माइक्रो स्लीप पैटर्न, यह निर्धारित करता है कि कोई व्यक्ति कितने सेकंड के लिए बिना रियलाइजेशन के सो रहा है।

यह सिस्टम पूरी तरह से इंटरनेट से जुड़ा हुआ है। इसमें लोकेशन ट्रैक करने के लिए जीपीएस भी लगाया गया है। एकत्रित डाटा को क्लाउड पर अपलोड किया जाता है और फिर इस सारी जानकारी को ऐप के जरिए एक्सेस किया जा सकता है। इसके अलावा, ड्राइवर सुरक्षित तरीके से गाड़ी चला रहा है या नहीं इसके बारे में भी ऐप जानकारी देता है। साथ ही यह ड्राइविंग को बेहतर बनाने के तरीके भी बताता है। 

चंद्रबाबू नायडू ने भी की सराहना

The prototype of the AI-powered device that will stop drivers from falling asleep while driving
The prototype of the AI-powered device

साल 2018 में, प्रदीप के इस डिवाइस ने इंटरनेशनल इनोवेशन फेयर, साउथ जोन में स्वर्ण पदक जीता था। उन्हें राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने काफी सराहा था। इससे तीनों दोस्तों को अपने इनोवेशन पर और ज्यादा काम करने व इसे कमर्शियल समाधान बनाने के लिए प्रोत्साहन मिला। 

2019 में उन्होंने  Kshemin Labs नाम से एक स्टार्टअप लॉन्च किया और डिवाइस पर काम शुरू कर दिया। इन तीनों ने बिज़नेस प्रबंधन के कामकाज को सीखने के लिए ट्री टाइप के 18 हफ्ते के एक कार्यक्रम को भी ज्वॉइन किया था। प्रदीप ने बताया, “हम डिवाइस पर लगातार काम करते रहे हैं। एक निजी पर्यटक बस ऑपरेटर पर इसका टेस्ट भी किया गया। मगर रिज़ल्ट वैसा नहीं रहा, जैसा हमने सोचा था। डिवाइस में कुछ बदलाव करने जरुरी थे।”

वह आगे कहते हैं, “महामारी के कारण, काफी दिनों तक हम इस पर काम नहीं कर पाए थे।” हालांकि अब इन तीनों ने डिवाइस पर दुबारा काम करना शुरू कर दिया है और जो भी जरूरी बदलाव थे, उन्हें पूरा कर लिया गया है। इसे अंतिम रूप देने के लिए बाहरी सलाहकार की मदद भी ली गई है। डिवाइस की टेस्टिंग के लिए फिलहाल इंटरनेशनल स्कूल और राज्य परिवहन के साथ बातचीत चल रही है।

इस बारे में और ज्यादा जानकारी के लिए उनकी वेबसाइट पर जाएं।

मूल लेखः रौशनी मुथुकुमार

संपादनः अर्चना दुबे

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